अग्नि आलोक
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*नर्मदा- सरदार सरोवर की, बिना पुनर्वास, अवैध डूब 2024 में होगी नामंजूर*

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*धरना-उपवास के बाद, आश्वासनों पर कार्यवाही का नियोजन नहीं।*

*‘‘ जलस्तर ‘‘ रोकेंगे नही तो ‘‘ जलसत्याग्रह ‘‘ ही होगा आधार।*

*क्या मध्यप्रदेश राज्यहित में वित्तीय कार्यवाही करने में सफल है या अंसफल?*

           सरदार सरोवर के विस्थापितों के पुनर्वास में 39 साल चले अहिंसक, सत्याग्रही जनआंदोलन के द्वारा उठाये मुद्दों पर कई सारे शासकीय और न्यायालयीन आदेश निकले और हजारो परिवारों को पुनर्वास के लाभ मिले। लेकिन म.प्रदेश में कुछ हजार परिवार, बिना क्तपुनर्वास संपत्ति डूबायी गयी, इसलिए अन्याय आज तक भुगत रहे हैं। यह नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसले का निर्देश रहा कि ‘‘ किसी भी स्थिति में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र का कोई भी क्षेत्र डूबग्रस्त नही किया जा सकता जब तक कि भू-अर्जन के तहत् भूमी तथा संपत्ति का संपूर्ण मुआवजा, खर्च और लागत का भुगतान होकर, वहॉ के विस्थापितों के इस आदेश के आधार पर पुनर्वास की पूरी व्यवस्था होकर, उन्हें सूचित नही  किया जाता है। ‘‘ सर्वोच्च अदालत का 2000 के प्रथम और विस्तृत आदेश के अनुसार, ट्रिब्यूनल फैसला एवम् राज्य से घोषित अधिक प्रावधानों की उदार पुनर्वास नीति का पूर्ण पालन जरूरी है। इनके तहत् नर्मदा बचाओ आंदोलन की कानूनी कार्यवाही तथा सत्याग्रही संघर्ष बढते हुए, सरदार सरोवर के विस्थापितों ने कई अधिकार पाये, जो नर्मदा घाटी के तथा भारत या अन्य देश के भी किसी परियोजना के विस्थापितों ने हासिल नहीं किये हैं।

            इसके बावजूद क्यों संघर्षरत् रहना पडा है, नर्मदा घाटी के आंदोलनकारियों को? इसीलिए कि 1994 से डूब में आये कुछ पहाडी गावों के तथा 2000 से भूअर्जन होकर डूबे निमाड के हजारो परिवार आज भी संपूर्ण पुनर्वास के बिना वंचित छोड दिये हैं। 2017 में बांध का कार्य, ‘‘ पुनर्वास किसी का बाकी नहीं ‘‘ यह झूठा दावा 2009 से करते आए, वही दोहराते, पूरा किया गया, तब भी करीबन् 31000 परिवार डूबग्रस्त में निवासरत थे। इनमें से 15946 परिवारों को ‘‘ डूब से बाहर ‘‘ घोषित कर, अधूरे लाभ देने पर वंचित रखा, उन्ही के घर सामान, मवेशी, कुछ इन्सान ध्वस्त या मृत हुए, वह कैसे? 1984 में केन्द्रीय जल आयोग ने निश्चित किये बॅक वॉटर लेव्हल्स कम दिखाने से तथा बाढ के पानी का, ओंकारेश्वर और सरदार सरोवर के गेट्स समय पर सही मात्रा में खोलकर , नियमन करने में केन्द्रीय नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण तथा म.प्रदेश और गुजरात की संबंधित संस्थाओं की विफलता साबित होने से!

                    2023 के बाद 2024 में भी ध्वस्त होना नामंजूर!

              यही हकीकत मानकर 2023 में डूब भुगते अधिकांश परिवारों को राहत राशि मिली लेकिन संपूर्ण नुकसान की भरपाई नही! पुनर्वास के लाभ पाये बिना किसान, मजदूर, मछुआरे, केवट, व्यापारी, कुम्हार, जो आज भी वंचना ही क्या, दलित-आदिवासी अत्याचार भुगत रहे हैं, वे अन्याय 2024 के वर्षाकाल में भी फिर भुगतेने, यह गंभीर मुद्दा लेकर जून महिने में आंदोलनकारी उपवास और धरने पर उतरे और 8 दिनों के उपवास के दौरान ठोस आश्वासन देने पर उसे छुडवाया।

                  क्या हुआ और हो रहा है, विस्थापितों के पुनर्वास का?

               इस संघर्ष में जिल्हावार रखी गयी मांगों पर 27 जून के रोज निसरपुर में सैंकडो विस्थापित और स्थानीय जन-प्रतिनिधियों की उपस्थिति में न.घा.वि.प्रा. के आयुक्त महोदय तथा जिल्हाधिकारीयों से सुनवाई हुई तब भी फिर मिले आश्वासन, लेकिन किसी मुद्दे पर ठोस कारवाई नही हुई है। 2019 से टीनशेड में रखे गये सैंकडो परिवार, वैकल्पिक जमीन का अधिकार 60 लाख रू के अनुदान द्वारा प्राप्त होना बाकी परिवार, म.प्र.या गुजरात में खेतीलायक अतिक्रमणरहित भूमी आबंटित करने में ‘‘ फसाये ‘‘ गये परिवार, तथा विविध भूमीहीन परिवारों के पात्रतानुसार लाभ युध्दस्तर पर होना बाकी और जरूरी है। अधिकारियों की बैठकों में लिए निर्णयों की जानकारी नही दी जा रही है। मछुआरों की सहाकारी समितियों होते हुए, तीन राज्यों की ‘‘ बोर्ड ‘‘/संस्था गठित करके उसी के द्वारा मत्स्यव्यवसाय, सरदार सरोवर में चलाने का निर्णय कैसे मंजूर किया? राज्य के मत्स्यव्यवसाय नीति के खिलाफ और मछुआरों के अहित में है।

              विशेष यह कि धार और बडवानी जिले के विधायकों ने विधानसभा में मुद्दों पर आवाज उठाने के तथा बडवानी के सांसद गजेंद्र पटेलजी ने मुख्यमंत्रीजी को लिखित ज्ञापन सौंपने के बाद, उन्हें भी जवाब नही मिला है। आंदोलन ने ही सतत संवाद और आवेदनों के द्वारा शासन के समक्ष रखे मुददे ही जनप्रतिनिधियों ने प्रस्तुत करने पर भी, स्थिति में कोई बदलाव नही है।

             यह जरूर कि जून में हुए 8 दिन के धरना-उपवास के बाद कोई न कोई अधिकारी अनेक बडवानी, धार, खरगोन जिले के कुछ गावों में पहुंचे, जहॉ कुछ लोगों की सुनवाई और 5.80 लाख रू के अनुदान के भुगतान जैसे उर्वरित कार्य पर आवेदन भरके लिए। जबकि अधिकारी न.घा.वि.प्रा. के ही नही थे, कोई जनपद तो कोई नगरपालिका के भी थे और आवेदन का फॉर्म भी त्रुटीपूर्ण था, तो कैसे माना जा सकता है कि ये ‘‘ शिबिर ‘‘ थे और इनसे निर्णायक कार्यवाही होगी? इस तरह की दिखावट के बदले हर जिलाधिकारी विशेष बैठक लेकर तथा आयुक्त महोदय और सभी अधिकारियों की बैठक/चर्चा हमारे साथ आयोजित करके निर्णय लिये जाए। टीनशेड मामले में धरातल पर सुनवाई और निर्णय तथा जरूरी हो वहॉ संयुक्त जॉच करके निर्णय लिया जाए।

              नर्मदा का जलस्तर आज भले ही 119.300 मीटर हो, मध्यप्रदेश में घाटी के सभी जिलों में एक साथ बारिश कभी भी होने का ‘‘ अलर्ट ‘‘ शासन ने समझना तथा जलप्रवाह के बाढ की स्थिति में भी गेट खुले रखकर, हर दिन और घंटे की जानकारी लेते हुए जलनियमन् कानूनन् जिम्मेदारी है, शासनकर्ताओं की। 2023 में संबंधित अधिकारी और गुजरात- म.प्र. शासन ने ढिलाई और असंवेदना बरती, जो फिर से हो तो वे आरोपग्रस्त हो जाएंगे। यह हम सह नही सकते! 24/10/2019 के सर्वोच्च अदालत फैसले का भी सही पालन नही हुआ, तो हम ही तय करेंगे जलस्तर, जो 122 मीटर रखकर गेट खुले रखने का निर्णय बाढ आने के पहले होना क्या जरूरी नहीं है?

*बालाराम यादव, कैलाश यादव, सुरेश प्रधान, धनराज अवास्या, गेदालाल उचावले, देवीसिंह तोमर, श्यामा मछुआरा, राहुल यादव, मुकेश भगोरिया, मेधा पाटकर*

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