अग्नि आलोक
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जिंदा लौट आया हूँ मैं !

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ना कोई जंग लड़ी है मैंने ?
ना खाना पीना छोड़ा है मैंने ?
बस अपने ही देश से
जिंदा लौट आया हूँ मैं !

अपने ही लोगों से डरता हूँ मैं !
काम ही ऐसे करता हूँ मैं !
सारे देश को बेचकर
जिंदा लौट आया हूँ मैं !

झूठ की चादर ओढ़कर
फकीर बना फिरता हूँ मैं !
सच्चाई से मुँह फेरकर
जिंदा लौट आया हूँ मैं !

पूरे देश को जातीय व
धार्मिक वैमनस्यता
में सदा बाँटता रहता हूँ मैं !
जानबूझकर ना विकास किया मैं !
ना मंहगाई, बेरोजगारी घटाया
जिंदा लौट आया हूँ मैं !

ना ईमानदारी से अपना फर्ज निभाया मैं !
जो सामना और विरोध का किया
उल्टा उन्हें बदनाम किया मैं
जिंदा लौट आया मैं !

जिन्होंने मुझे प्रधान बनाया
इस मुकाम तक पंहुचाया
उन का विश्वास तोड़ कर
जिंदा लौट आया मैं !

प्रजातंत्र को खत्म कर
तानाशाह बनना पसंद है मुझे !
इस लिए प्रजा से डर कर
जिंदा लौट आया मैं !

अपने ही देश में असुरक्षित मैं
तो प्रधान कैसे कह पाऊ मैं
सभी जिम्मेदारी छोडकर
जिंदा लौट आया मैं !

दुश्मन देश
पाकिस्तान की बिरयानी
बिन बुलाए खा आऊँ मैं
लेकिन जिसका उपजाया खाऊँ
उन्हीं से डर जाऊँ मैं !
जिंदा लौट आया मैं !

साभार – अज्ञात

संकलन – निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,

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