अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

भारी पड़ेगा तमिलनाडु पर NEET थोपना

Share

बी सिवरामन

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने पिछले रविवार को चेन्नई में दिन भर की भूख हड़ताल आयोजित की। इस समय तमिलनाडु में डीएमके की ही सरकार है और वह केंद्र सरकार से नीट (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) की परीक्षा प्रणाली को खत्म करने की मांग कर रही है। इस भूख हड़ताल में सरकार के सभी मंत्रियों ने हिस्सेदारी की। राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (नीट) राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली एक ऐसी आम प्रवेश परीक्षा है जिसके माध्यम से एमबीबीएस और बीडीएस की मेडिकल और दंत विज्ञान की पढ़ाई के लिए भारत भर के कॉलेजों में दाखिला मिलता है। इस प्रक्रिया ने तमिलनाडु और केंद्र की सरकार के बीच टकराहट की स्थिति पैदा कर दी है।

नीट को कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार ने 2013 में प्रस्तुत किया था। उस समय तमिलनाडु में डीएमके की करुणानिधि की सरकार थी, और उसे इस प्रावधान से छूट मिली हुई थी। लेकिन, 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के बाद 2017 में इसे सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी बना दिया गया। दरअसल, राज्यों ने इस संदर्भ में अपनी अलग-अलग परीक्षा कराने की याचिका दाखिल कर रखी थी।

तमिलनाडु का विरोध यहीं से शुरू हुआ। उसका कहना है कि यह राज्य की स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था के प्रबंधन के स्वतंत्र अधिकार का हनन है। सिर्फ डीएमके सरकार ही इसका विरोध नहीं कर रही है। इसका विरोध आम लोगों की तरफ से भी आ रहा है, जिसमें छात्र, अध्यापक और युवा शामिल हैं। यह बढ़ता विरोध जल्लीकट्टू जैसा ही है। भाजपा को छोड़ लगभग सभी पार्टियां नीट-विरोधी आंदोलन का हिस्सा बन रही हैं। यहां तक कि एआईएडीएमके ने डीएमके सरकार को नीट से बाहर आने के लिए कानून बनाने का समर्थन करने का भी वादा किया है।

तमिलनाडु में नीट का क्यों हो रहा है विरोध?

तमिलनाडु में विरोध उठने का केंद्रीय बिंदु यही है कि यह राज्य सरकार तय करे कि कौन सा छात्र मेडिकल और दंत विज्ञान के अध्ययन में जायेगा। यह अधिकार केंद्र सरकार परीक्षा के माध्यम से नहीं छीन सकती। 

नीट की परीक्षा का आधार सीबीएसई का पाठ्यक्रम है। तमिलनाडु में छात्रों का व्यापक हिस्सा राज्य की बोर्ड पाठ्यक्रम की पढ़ाई करता है जो सीबीएसई से कई स्तरों पर अलग है। ऐसे में सीबीएसई का पाठ्यक्रम होने से छात्रों का नुकसान होगा। नीट के पहले राज्य की अपनी प्रवेश परीक्षा होती थी जिसमें कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा में हासिल किए गये अंक को ध्यान में रखा जाता था। यह प्रणाली उन सरकारी स्कूलों, गांव के छात्रों और तमिल माध्यम से पढे़ छात्रों के लिए ज्यादा लाभकारी थी। आज उन्हें सीबीएसई के अंग्रेजी माध्यम वाले पाठ्यक्रम के साथ भिड़ा दिया गया है। इसीलिए नीट का विरोध करने वाले मानते हैं कि यह प्रणाली छंटाई करने वाली और भेदभावपूर्ण है।

नीट उन लोगों के लिए तो अच्छा है जो अच्छे घरों से आते हैं और सीबीएसई पाठ्यक्रम आधारित अंग्रेजी माध्यम वाले निजी स्कूलों से पढ़कर आ रहे हैं। और, साथ ही प्रवेश परीक्षा के लिए महंगी कोचिंग भी कर रहे हैं। जो गांव के गरीब, दलित और पिछड़े समुदाय से आने वाले छात्र हैं वे न तो सीबीएसई वाले स्कूलों की और न ही निजी कोचिंग में पढ़ने का भार उठा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के ज्यादातर छात्र सस्ते सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं।

तमिलनाडु में नीट के विरोध का परिप्रेक्ष्य सामाजिक न्याय भी

ऐसा नहीं है कि तमिलनाडु के छात्र शैक्षिक तौर पर पिछड़े हैं और वे नीट के मानकों पर खरे नहीं उतर सकते। उदाहरण के लिए, 2023 में नीट की परीक्षा में तमिलनाडु से 1,44,516 छात्र शामिल हुए, जिसमें 78,693 छात्रों ने प्रवेश परीक्षा पास कर ली। यह 54.45 प्रतिशत होता है। यह भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी अच्छा प्रदर्शन था।

लेकिन, यहां समस्या यह है कि इसमें केवल 12,997 छात्र तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों से पढ़े हुए थे और 2023 के इस नीट परीक्षा में सरकारी स्कूलों के 3982 छात्र ही इसे पास कर पाये। यह सरकारी स्कूलों से पढ़े छात्रों का जो परीक्षा में शामिल हुए थे, का केवल 36 प्रतिशत है। यह परिणाम स्पष्टतः दिखाता है कि नीट परीक्षा निजी स्कूलों के छात्रों के पक्ष में है और गरीब पृष्ठभूमि से आये और सरकारी स्कूलों से पढ़े छात्रों के प्रति भेदभाव का रुख लिए हुए है।

नीट के विरोध में खड़े लोगों का तर्क है कि चुनाव आधारित प्रवेश परीक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे गांव और निम्न समुदाय से आने वाले छात्रों, जो ज्यादातर सरकारी स्कूलों से पढ़कर आते हैं, को भी वह बराबरी का अवसर मिले जिससे वे डॉक्टर वो दंत विज्ञान की पढ़ाई में दाखिला ले सकें। इस तरह यह जो नीट का विरोध है उसमें सामाजिक न्याय का दृष्टिकोण भी शामिल है।

सच्चाई यही है कि तमिलनाडु के छात्र अन्य राज्यों के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। तमिलनाडु में एमबीबीएस में केवल 7400 सीट और दंत विज्ञान की पढ़ाई के लिए 2873 सीटें ही उपलब्ध हैं। इस संख्या से अधिक हुए छात्रों को दाखिला उनकी क्षमता के आधार पर निश्चय ही अन्य राज्यों में मिलेगा। इसके बावजूद भी नीट का विरोध इसलिए हो रहा है कि यह राज्य की स्वायत्तता का भी मसला है। उनका कहना है, आप हमारा निर्णय करने वाले कौन होते हैं? यह विरोध का केंद्रीय पक्ष है।

तमिलनाडु के गवर्नर की मनमानी 

13 सितम्बर, 2021 को तमिलनाडु सरकार ने ‘तमिलनाडु स्नातक मेडिकल डिग्री कोर्स प्रवेश बिल, 2021’ को राज्य की विधायिका में पास किया, जिससे तमिलनाडु को नीट की प्रवेश परीक्षा से छूट मिल सके। लेकिन, गवर्नर आरएन रवि ने इसे आगे बढ़ाने से मना कर दिया और राष्ट्रपति की सहमति के लिए उनके पास भेजने से इनकार कर दिया। इस तरह पांच महीने गुजारने के बाद इस बिल को बिना पास किये वापस भेज दिया गया। उन्होंने कहा, “मैं नीट-विरोधी बिल को राष्ट्रपति के पास कभी नहीं भेजूंगा।” तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस असंवैधानिक और तानाशाही पूर्ण व्यवहार की भर्त्सना की है।

तमिलनाडु की विधायिका ने एक बार फिर इस बिल को 8 फरवरी, 2022 को संवैधानिक जरूरतों के मद्देनजर पास किया। इस बार, संवैधानिक उसूलों के आधार पर गवर्नर के सामने इस बिल को राष्ट्रपति के पास भेजने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। यह बिल अब भी राष्ट्रपति की सहमति के इंतजार में है।

14 अगस्त, 2023 को एमके स्टालिन ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस बिल को स्वीकार करने के लिए कहा जिससे छात्रों की आत्महत्याओं को रोका जा सके। इससे तमिलनाडु में 2022 में नीट की परीक्षा में जो छात्र शामिल हुए थे, वे और जो 2023 में बिल के पास होने के बाद परीक्षा में शामिल हुए हैं, वे भी परीक्षाओं में शामिल हो सकें। लेकिन ऐसा लगता है कि नीट पर चल रहा विवाद फिलहाल खत्म नहीं होने जा रहा है। 

नीट पक्षकारों के तर्क 

नीट के पक्षकारों का तर्क है कि मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के दौरान अखिल भारतीय स्तर पर जो पक्षपात और भ्रष्टाचार होता था वह इससे खत्म हो जायेगा। इसके पहले सिर्फ राज्य ही नहीं, विभिन्न कॉलेज भी अपनी-अपनी प्रवेश परीक्षा कराते थे। इससे प्रवेश के लिए वसूला जाने वाला प्रति छात्र शुल्क का अंत हो गया। छात्रों को कई स्तरों पर परीक्षा देनी पड़ती थी और ऐसे में छात्र कई प्रवेश परीक्षा दे ही नहीं पाते थे। नीट की एक परीक्षा ने इन सबका अंत कर दिया।

अब चूंकि मेडिकल कॉलेजों की प्रवेश परीक्षा एक ही होती है, ऐसे में छात्रों की भर्ती का अवसर अब बढ़ गया है। इस तरह भले ही राज्यों की अपनी आरक्षण प्रणाली है लेकिन मेरिट का महत्व बढ़ गया है।

नीट विरोधी आंदोलन के तर्क

नीट का विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं का तर्क है कि तमिलनाडु के सुदूर गांव के एक गरीब छात्र को सभी राज्यों से आये उन उत्कृष्ट छात्रों से भिड़ना होता है, जो खाये-पिये परिवारों से एक लाभकारी अंग्रेजी माध्यम से पढ़कर आये हुए होते हैं। और नीट के लिए महंगे कोचिंग में तैयारी किये हुए होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो गरीब, पिछड़े, दलित समुदाय से आने वाले छात्रों को शहरी अभिजात की धनी जाति के छात्रों के साथ अखिल भारतीय स्तर पर भिड़ना होता है।

गरीब छात्रों के लिए खुद नीट ही एक महंगा मसला है। सामान्य श्रेणी के लिए इसकी फीस 1500 रुपये और आरक्षित श्रेणी के लिए 800 रुपये है। एक गरीब छात्र के लिए यह एक बड़ा शुल्क है। तमिलनाडु सरकार ने सेवानिवृत्त जज एके राजन की अध्यक्षता में राज्य में नीट का मेडिकल की शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन के लिए एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने नीट की अखिल भारतीय परीक्षा प्रणाली का विरोध किया और कहा कि यह राज्य की भाषा में पढ़ने वाले और गरीब छात्रों के खिलाफ है।

बहरहाल, यह केंद्र की सरकार कौन होती है जो तय करे कि राज्यों में मेडिकल की पढ़ाई कौन करे? तमिलनाडु पहले से ही एक अच्छी उच्चस्तरीय मेडिकल की व्यवस्था से लैस है और मेडिकल की पढ़ाई भी इसका हिस्सा है। दूसरे राज्यों के मरीज भी बड़ी संख्या में इलाज के लिए तमिलनाडु आते हैं। तमिलनाडु सरकार के अस्पतालों में दूसरे राज्यों से भी आने वाले मरीजों का लगभग मुफ्त इलाज होता है। यहां बहुत से लोग विदेशों से भी आते हैं। अब यह डर बन रहा है कि केंद्र द्वारा नीट को जबर्दस्ती लाद देने से राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली में क्षरण न आने लगे।

तमिलनाडु में नीट की वजह से आत्महत्याएं

तमिलनाडु में गरीबी की पृष्ठभूमि वाले बहुत से छात्र जो नीट की प्रवेश परीक्षा में सफल नहीं हुए क्योंकि वे सीबीएसई के पाठ्यक्रम से अवगत नहीं थे। इसकी वजह से वे गहरी निराशा में चले गये और उनमें से कुछ ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली। पहली घटना, अरियालूर की एक दलित छात्रा अनिथा की है। इस छात्रा ने नीट के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में मामला दर्ज कर रखा था। वह यह केस हार गई और उसने 2017 में आत्महत्या कर ली।

अनिथा तमिल माध्यम से पढ़ने वाली छात्रा थी, जिसने 12 की अंतिम परीक्षा में 1200 में से 1176 अंक ले आयी थी। उसे आसानी से पुरानी प्रवेश की व्यवस्था में मेडिकल की पढ़ाई में सीट मिल जाती। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। उसने नीट की परीक्षा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक अपील दायर की, लेकिन शीर्ष न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया। वह टूट गई और उसने आत्महत्या कर ली। इस घटना ने पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया। उसकी याद में तमिलनाडु सरकार ने अरियालूर मेडिकल कॉलेज में 22 करोड़ की लागत से 850 सीटों वाला एक ऑडीटोरियम का निर्माण कराया है।

अनिथा की तरह तमिलनाडु में 15 और छात्रों ने नीट की प्रवेश परीक्षा में हुई असफलता के कारण आत्महत्या कर लिया। ये वे छात्र थे जो पुरानी व्यवस्था में 12वीं में हासिल अंक के आधार पर मेडिकल की सीट हासिल कर सकते थे। दैनिक काम करके जीविका कमाने वाले एक मजदूर की 17 साल की बेटी ने नीट की परीक्षा में आई असफलता की वजह से 2021 में आत्महत्या कर लिया। उसे 12वीं कक्षा में 84.9 प्रतिशत अंक मिले थे। पुरानी प्रवेश प्रणाली में उसे आसानी से मेडिकल की सीट मिल जाती। उसकी यही गलती थी कि उसने राज्य बोर्ड का पाठ्यक्रम पढ़ रखा था। 2021 में आत्महत्या करने वाले कुल 6 छात्रों में से 4 छात्र दैनिक मजदूरी करने वाले परिवारों से आते थे।

2024 का चुनाव सिर पर और सामने हैं नीट से हो रही बर्बादियां

नीट की वजह से 2019 से अब तक 16 आत्महत्याएं हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री स्टालिन ने बेहद आग्रह के साथ अपील किया है छात्र आत्महत्या न करें, लेकिन वो इस संदर्भ में कुछ न कर पाने की हताशा में हैं, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में नीट अनिवार्य है। न्यायाधिकरण ने इस मसले पर जो बाधा खड़ी कर रखी है उससे निपटने के लिए विधायिका में पास किया गया बिल अब भी राष्ट्रपति की सहमति के इंतजार में है। 

गृहमंत्रालय, जिसे इस बिल को राष्ट्रपति कार्यालय में भेजना होता है, वह इसे आयुष मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और उच्च-शिक्षा विभाग और अन्य द्वारा ली जा रही जानकारी के नाम पर रोककर रखे हुए है।

अब छात्र आगामी नीट की प्रवेश परीक्षा को लेकर आंदोलित होने और विशाल प्रदर्शन की तैयारी में लग गये हैं। संयोग से उसी दौरान लोकसभा का चुनाव भी होना है। हमने जल्लिकट्टू को लेकर उठे विरोध का चुनाव पर असर देखा है। इसका असर व्यापक था। यह राज्यों के अधिकारों से जुड़ा मसला ही था। चुनाव के दौरान निश्चय ही राज्य के अधिकारों का मसला असर कारक होता है। अब नीट को लेकर तमिलनाडु में भाजपा को धूल चाटना पड़ सकता है।

(बी सिवरामन शोधकर्ता हैं। लेख का अनुवाद अंजनी कुमार ने किया है।)

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें