अग्नि आलोक
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काल के प्रवाह में ब्रह्मा तक नगण्य, मनुष्य की क्या विसात

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डॉ. विकास मानव
यस्य भूमिः प्रमाऽन्तरिक्षमतोदरम्।
दिवं यश्चक्रे मूर्धानं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः॥१॥
यस्य सूर्यश्चक्षुश्चन्द्रमाश्च पुनर्णवः।
अग्नि यश्चक्र आस्यं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः॥२॥
यस्य वातः प्राणापानी चक्षुरङ्गिरसोऽभवन्।
दिशो यश्चक्रे प्रज्ञानीस्तरमै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः॥३॥
यः श्रमात् तपसो जातो लोकान्सर्वान्त्समानशे।
सोमं यश्चक्रे केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः॥४॥
यो भूतं च भव्यं च सर्व यश्चाधितिष्ठति।
स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः॥५॥
~अथर्ववेद (काण्ड १०, सूक्त ७, ८)

सरोवर चारी हंस पर विराजमान चतुर्मुख ब्रह्मा भूतल एवं पर्वतचारी बैल पर आसीन पञ्चमुख शिव। तथा गगनचारी गरुण पर आरुढ़ विष्णु का ध्यान करते हुए मैं तत्संबंधी रहस्य का उद्घाटन करता हूँ।
आकाश में विचरण करने, उड़ने वाले यान (तीव्रगामी वायुयान, अतितीव्रगामी अन्तरिक्षयान, उपमहादि तथा मन्दगामी हेलीकाप्टर) गरुण हैं। इनमें/पर बैठ कर जो लोग यात्रा करते हैं, वे विष्णु हैं।
चार पहिये वाले धरती पर चलने वाले यान (मोटर कार, बस, रेलकोच) बैल हैं। इनमें/पर बैठ कर यात्रा करने वाले शिव हैं। नौका पोतदि यान जो जल की सतह पर तैरते हुए चलते हैं जल यान कहलाते हैं।
इनमें बैठ कर यात्रा करने वाले ब्रह्मा हैं। संसार में कितने ब्रह्मा, विष्णु वा शिव है, इनकी गणना कौन करे ? वायुयान गरुण हैं। भूतलयान वृषभ हैं। जलयान हंस हैं। इनके स्वामी/ प्रयोक्ता विष्णु वा वैष्णव है, शिव वा शैव हैं, ब्रह्मा वा ब्राह्म हैं।
सृजनकर्मा-सन्तान उत्पन्न करने वाले, ग्रन्थों का प्रणयन करने वाले, हस्तशिल्पी आदि बया है। पालन कर्मा-अपने परिवार वा आश्रितों का भरणपोषण रक्षण करने वाले, पुष्टि कार्य करने वाले विष्णु हैं।
विश्व के सौन्दर्य को बिगाड़ने वालों का उच्छेद/ नाश करने वाले शिव हैं। जिसे जरा/पुरानापन, जीर्णता/ फटापन का आधिक्य सह्य नहीं, वह शिव है। ये तीनों गुण सभी में होते हैं। इसलिये सब लोग अपने आप में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव है। यह संसार त्रिदेवमय है। मैं सर्वत्र इन देवों का दर्शन करता हूँ।

ब्रह्मा व्यक्ति नहीं। विष्णु व्यक्ति नहीं। शिव व्यक्ति नहीं तो क्या ? ब्रह्मा एक पद है। विष्णु एक पद है। शिव एक पद है। जो इस पद के योग्य है, वह ब्रह्मा है, विष्णु है, शिव है। इस प्रकार ब्रह्मात्व विष्णुत्व एवं शिवत्व सबमें सर्वत्र है। यही इन त्रिदेवों की व्यापकता, शाश्वतता एवं सर्वशक्तिमत्ता है।
कोई भी व्यक्ति ब्रह्मा विष्णु शिव है। ब्रह्मा के सहस्रनाम हैं। विष्णु के सहस्रनाम हैं। शिव के सहस्रनाम हैं। इनका अर्थ क्या है ? अनन्त ब्रह्मा हैं। अनन्त विष्णु हैं। अनन्त शिव हैं। अनन्त = असंख्य ।
पुराणों में अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों की चर्चा है। प्रत्येक ब्रह्माण्ड में एक ब्रह्मा, एक विष्णु, एक शिव का पद है। एक ब्रह्माण्ड में अनेको सौरमण्डल हैं। उनमें से प्रत्येक सौरमण्डल में एक ब्रह्मा एक विष्णु एक शिव का पद है। एक सौर मण्डल में अनेक लोक हैं। उनमें से प्रत्येक लोक में एक ब्रह्मा, एक विष्णु, एक शिव का पद है। प्रत्येक लोक में अनेक सृष्टियों हैं।

प्रत्येक सृष्टि में एक ब्रह्मा, एक विष्णु, एक शिव है। हर सृष्टि में असंख्य प्राणी (चराचर जीव) है। प्रत्येक प्राणी में एक ब्रह्मा, एक विष्णु, एक शिव विराजमान है।
अतः हम सब में एक ब्रह्मा एक विष्णु एक शिव का सतत वास है। हम त्रिमूर्तिस्वरूप हैं। इस लिये हमारा हम को प्रणाम हमारा प्रत्येक प्राणी को प्रणाम हम सब एक है, आन्तर दृष्टि से हम सब अनेक है, बाह्य वा माया दृष्टि से इसे जो जाने सो पण्डित है।
ब्रह्मा पूर्ण पुरुष है, पत्नी युक्त है। बह्मा की भार्या का नाम वाणी है। इसके चार स्वरूप हैं। यह अपने परा पश्यन्ती मध्यमा एवं वैखरी रूपों में ब्रह्मा के चारों मुखों में निवास करती है। यह आँखों से दिखायी नहीं पड़ती। इसे कानों से देखा (सुना जाता है।
ब्रह्मा वाक्प्रेमी देव है। यह अपनी पत्नी से कभी विलग नहीं होता। पत्नी इसकी दासी है। यह अपनी पत्नी का दास है। बह्मा जब भोजन करता है तो इसकी पत्नी अपने चारों रूपों के साथ ब्रह्मा के हृदय के चारों प्रकोष्ठों में चली जाती है। ऐसे ब्रह्मा जी की में वन्दना करता हूँ। ब्रह्मा वाक् सिद्ध पुरुष है। यह वाणी के परा स्वरूप से संगम कर सारीसृष्टि रचता है।
मन में संकल्प का उठना परा वाक्/वाणी है। ब्रह्मा जी अपने संकल्प से सृष्टि रचते हैं।

पालनकर्ता विष्णु सपत्नीक पूर्ण पुरुष हैं। इनकी प्रिया का नाम श्री है। लक्ष्मी का सूक्ष्म रूप ‘श्री’ है। विष्णु जी इसे अपनी छाती से चिपकाये रहते हैं। इससे कभी विलग नहीं होते। विष्णु के वक्षस्थल में श्रीवत्स का चिन्ह है। यह चिन्ह सम्पूर्ण ऐश्वयों की खान है। लक्ष्मी आँखों से दृश्य है।
जिस पर विष्णु कृपा करते हैं। वह श्रीमान् हो जाता है। श्रीमान् संसार में सुख भोगता है, सम्मान पाता है, पालन कर्ता होता है। ऐसा व्यक्ति राजा/राष्ट्राध्यक्ष होता है। ऐसे विष्णु को मैं सहस्रनामों से भजता हूँ।
शिव जी पूर्ण हैं- आधा स्त्री, आधापुरुष सतत पत्नी से युक्त होने से इन्हें न पुरुष कहा जा सकता न स्त्री। ये जब से नारीश्वराअर्द्ध हुए हैं, तब से घोरकर्मा हैं। शिवजी ने संहार का काम चुना। ये प्राणियों को मार-मार कर उन्हें गृहहीन, परिवार हीन, सम्पत्तिहीन करते रहते हैं।
इस लिये ऐसे शिव से सभी प्राणी भयभीत रहते हैं। सभी लोग शिव को इसी भयवश उपासते हैं।
इन तीन देवों में ब्रह्मा जी का स्थान प्रथम है। सृजन कर्ता नहीं है तो पालन कर्ता एवं संहर्ता का प्रश्न ही नहीं उठता। सृष्टि पहले है। इसके बाद पालन की समस्या आती है। अधिकता एवं कुरूपता रुग्णता को समाप्त करने के लिये संहार किया जाता है। पुराणों में ब्रह्मा की आयु १०० वर्ष बतायी गई है।
इसमें सब को भ्रम है। ब्रह्मा अनादि अनन्त अजर अमर स्वयंभू हैं। इनकी मृत्यु का प्रश्न ही नहीं उठता। यह १०० वर्ष ब्रह्मा की आयु न हो कर उनका कार्यकाल है। प्रत्येक ब्रह्मा की नियुक्ति काल द्वारा १०० वर्ष के लिये होती है। इसके बाद उसे उस पद से हटना पड़ता है। इसी प्रकार विष्णु एवं शिव का पदकाल भी १०० वर्ष का होता है।
इन पदों पर आसीन होने की योग्यता एकमात्र तप है। जो जीवन तप में सर्वाधिक बढ़ा चढ़ा है, वही इस पद के योग्य समझा जाता है। अब मैं ब्रह्मा के पद की आयु का गणितीय ढंग से वर्णन करता हूँ। ऐसा ही विष्णु एवं शिव के पद की शतायुता के सन्दर्भ में समझना चाहिये।
देव अजर अमर होते हैं। इन की आयु की गणना नहीं की जाती। मैं तो इन के पद काल की गणना करता हूँ।

युग प्रमाण :
१. कलियुग = ४३२००० वर्ष।
【४+३+२+०+०+० = ९ = पूर्ण ।】
२. द्वापर = ४३२,००० x २ = ८,६४,००० वर्ष ।
【८+६+४+०+०+० – १८=१+८=९ पूर्ण】
३. त्रेता = ४,३२,०००x३ = १२,९६,००० वर्ष ।
【१ +२ +९+६ + ० +० + =१८ = १ +८=९=पूर्ण】
४. सतयुग =४,३२,०००x४ = १७,२८००० वर्ष ।
【१+७+२+८+०+०+०=१८=१+८=९=पूर्ण】

एकचतुर्युग एक/ महायुग = ४,३२,०००+८,६४,०००+१२,९६,०००+१७,२८,०००।
एकमहायुग = ४२,३२,००० वर्ष।
१००० महायुग = ४२,३२,०००×१०००
एक कल्प = ४२,३२,००,००० वर्ष।
=ब्रह्म का १ दिन
= ब्रह्म की एक रात्रि।

२×३६० कल्प = ब्रह्म का १ वर्ष।
ब्रह्म की आयु = १०० वर्ष।
७१ महायुग = १ मन्वंतर
= १ मनु का कार्यकाल।
=४२,३२,०००×७१
=३०,६७,२०,००० वर्ष।
【३+०+६+७+२+०+०+०+०=१८=१+८=९=पूर्ण।】
ब्रह्मा जी के १ दिन में १४ मनु (मन्वन्तर) होते हैं।

‘ब्रह्माणो दिवसे विप्रा मनवः स्युश्चतुर्दश स्वायम्भुवादयः।
~कूर्म पुराण (५/१२)
‘युगानां सप्ततिः सैका मन्वन्तरमिहोच्यते।
कृताब्द संख्या तस्यान्ते सन्धिः प्रोक्तो जलप्लवः॥’

  • सूर्य सिद्धान्त (१/१८
    इकहत्तर महायुगों का एक मन्वन्तर अर्थात् मनु के आरम्भ और समाप्ति के अन्तर का प्रमाण होता है। उस मनु के अन्त में कृतयुग के प्रमाण के तुल्य सन्धि होती है। इस सन्ध्या काल में सारी पृथ्वी जल से पूर्ण रहती है। ‘ससन्धयस्ते मनवः कल्पे ज्ञेयाश्चतुर्दश। कृतप्रमाणः कल्पादी सन्धिः पञ्चदशः स्मृतः॥’
    ~सूर्य सिद्धान्त (१ । १९ )
    एक कल्प में अपनी अपनी सन्धि के सहित १४ मनु होते हैं। कल्प के आदि में सत्यग के प्रमाण तुल्य सन्धि होती है। अर्थात् मनु के आदि एवं अन्त में एक-एक सन्धि होती है। इस प्रकार कल्प में १४ मनु और १५ सन्धियों होती हैं।
    १४ मनु ये हैं :
    १. स्वायम्भुवमनु ।
    २. स्वारोचिष मनु ।
    ३. औत्तमि मनु ।
    ४. तामस मनु ।
    ५. रैवत मनु ।
    ६. चाक्षुष मनु ।
    ७. वैवस्वत मनु ।
    ८. सावर्णि मनु ।
    ९. दक्षसावर्णि ।
    १०. ब्रह्म सावर्णि।
    ११. धर्म सावर्णि।
    १२. रुद्र सावर्णि ।
    १३. देव सावर्णि।
    १४. इन्द्र सावर्णि ।
    अब तक ६ मनु बीत चुके हैं। सातवें मनु का शासन चल रहा है। ७१ महायुग पर्यन्त एक मनु का शासन चलता है। सातवें वैवस्वत मनु के शासन में २७ महायुग बीत गये हैं। यह २८ वाँ महायुग चल रहा है। इस २८ वें महायुग में भी ३ युग (कृतयुग त्रेता द्वापर) व्यतीत हो चुका है। चौथा युग-कलियुग वर्तमान है। सम्प्रति कलि का प्रथम चरण है। संकल्प में हम कहते हैं : ‘वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे’ संकल्प में ‘द्वितीय परार्धे’ भी आता है। ‘पर’ क्या है ?
    पर = १०० वर्ष । परार्ध = परस्य अर्थः १०० + २ ५० वर्ष प्रथम परार्थ अर्थात् ५० वर्ष गत हो चुके हैं। ब्रह्मा जी की आयु का द्वितीय परार्ध अर्थात् ५१ वाँ वर्ष चल रहा है। ब्रह्मा जी की सम्पूर्ण आयु (कार्यकाल) की गणना मानुष वर्षों में करना असम्भव है।
    १५ निमेष = १ काष्ठा।
    ३० काष्ठा = १ कला ।
    ३० कला = १ मुहूर्त ।
    ३० मुहूर्त = १ होरा[अहोरात्र / दिन]
    ३० होरा = १ मास।
    ६ मास= १ अयन।
    २ अयन = १ वर्ष।
    उत्तर अयन देवताओं का दिन।
    दक्षिण अयन = देवों की रात ।
    १ वर्ष (मानुष वर्ष) देवताओं का १ होरा | अहोरात्र / दिन | अर्थात् ३६० मानुष होरा = १ दिव्य होरा/देवताओं का दिन।
    ३६० मानुष वर्ष = १ दिव्य वर्ष / देवों का वर्ष ।

जो देवों का वर्ष है, वही दैत्यों का भी वर्ष प्रमाण है। अन्तर केवल यह है कि देवों की रात्रि = दैत्यों का दिन तथा दैत्यों की रात्रि = देवों का दिन। अर्थात् इनके रात दिन विपर्यय से होते हैं। १२००० दिव्य वर्षों का एक चतुर्युग वा एक महायुग होता है।
इसी महायुग में ४३,२०,००० वर्ष सौरमान से होते हैं। इस प्रकार दिव्य/ आसुर वर्ष एवं मानुष वा सौरवर्ष का अनुपात हुआ। १२,००० : ४३,२०,००० = ४१२०००/ ४३,२०००० = १/३६० = १ : ३६० ।
चारों युगों का मान धर्म पाद के अनुसार होता है। कलियुग में धर्म का १ पाद, द्वापर में धर्म के दो पाद, त्रेता में धर्म के ३ पाद तथा सतयुग में धर्म के ४ पाद होते हैं। इस लिये कलियुग का २ गुना द्वापर, तीन गुना त्रेता तथा ४ गुना सतयुग का मान होता है।

कलियुग = १२०० दिव्य वर्ष।
द्वापर= १२०० x २ = २४०० दिव्य वर्ष।
त्रेता = १२००x३ = ३६०० दिव्य वर्ष।
सत्ययुग = १२००x४ = ४८०० दिव्य वर्ष।
एक चतुर्युग= १२०० + २४००+ ३६००+४८०० = १२००० दिव्य वर्ष।
७१ महायुग = १ मन्वन्तर ७१x१२००० दिव्यवर्ष । = ९६२००० दिव्यवर्ष।
१००० महायुग = १ कल्प = १०००×१२००० दिव्यवर्ष । = १,२०००००० दिव्यवर्ष = ब्रह्मा का एक दिन।

जैसे दिन और रात के बीच संधि (संध्या) होती है, वैसे ही दो युगों के मध्य सन्धि होती है। दिन मान का दशांश प्रातः, संध्या की संधियाँ होती है। जैसे दिनमान = ३० घटी तथा रात्रिमान = ३० घटी तो अहोरात्र = ३०+३० = ६० घटी १ होरा में प्रातः एवं सायं की दो संधियाँ होती हैं।
प्रातः संधि = ३० ÷ १० = ३ घटी। सायं संधि = ३० ÷ १० = ३ घटी। संधिमान = ३+३ = ६ घटी। यह ६० घटी का दशांश है। जितने युग प्रमाण का ब्रह्मा का एक दिन होता है, उतने ही युग प्रमाण को ब्रह्मा की एक रात्रि होती है।
दिन में बह्मा सृजन कर्म करते और रात्रि में विश्राम करते, शयन करते हैं। यही दशा विष्णु एवं शिव की भी होती है। कलियुग का मान बिना संधि के = १०००, दिव्य वर्ष।
१००० ÷ १० = १०० दिव्य वर्ष १ संधि १०० x २ = २०० दिव्यवर्ष की दोनों संधियाँ।
इस प्रकार संसंधि कलियुग का मान हुआ, १००० + २०० १२०० दिव्यवर्ष।
बिना संधि कलियुग का सौरवर्ष में मान १००० x ३६० वर्ष = ३,६०००० वर्ष।

दिव्यवर्ष प्रमाण से युगमान बोधक चक्र :
(कलियुग = १०००) + (आद्यन्त सन्धि प्रमाण = २००) = १२००।
(द्वापर = २०००) + (आद्यन्त सन्धि प्रमाण =४००) = २४०० |
(त्रेता = ३०००) + (आद्यन्त सन्धि प्रमाण = ६००) = ३६०० |
(कृतयुग = ४०००) + (आद्यन्त सन्धि प्रमाण = ८००) = ४८०० ।
योग = १००००+२००० = १२००० ससंधि प्रमाण।

सौरवर्ष प्रमाण से युगमान चक्र :
(कलियुग = ३६००००) + (आद्यन्त संधि = ७२०००) = ४३२००० ।
( द्वापर = ७,१००००) + (आद्यन्त संधि = १,४४०००) = ८६४००० |
त्रेता = १०८००००) + (आद्यन्त संधि = २१६०००) = १२९६००० |
(सत्ययुग = १४,४००००) + (आद्यन्त संधि = २८८०००) = १७२८००० |
योग = ३६०००००+७२००० ४३,३०००० ससंधिमान।
ब्रह्मा के कार्यकाल का यह ५१ वाँ दिव्यवर्ष चल रहा है। ब्रह्मा की आधी आयु तो व्यतीत हो चुकी है । यह शेष आधी आयु का पहला दिन है। इस वर्तमान कल्प/दिन के आरंभ से अपनी ७ संधियों के साथ ६ मनु (स्वायम्भुव, स्वारोचिष, औन्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष) व्यतीत हो गये।
वर्तमान सातवें वैवस्वतमनु के भी २७ महायुग बीत गये। वर्तमान २८ वें महायुग के आरंभ से तीन युग (कृतयुग, त्रेता, द्वापर) भी गत हो चुके हैं। अभी कलयुग चल रहा है।

कलियुग के प्रारंभ से पूर्व तक इस मनु के वर्षों की गणना :
१ महायुग २७ महायुग = ४३,२०००० वर्ष।
२७ महायुग= २७x४३,२०००० वर्ष।
= ११६६,४०००० वर्ष
१ सतयुग= १७२८००० वर्ष ।
१ त्रेतायुग = १२९६००० वर्ष ।
१ द्वापरयुग= ८६४००० वर्ष ।
कुल योग =१२,०५,२८,००० वर्ष।
【यहाँ १+२+०+५+२+८+०+०+०=१८=९= पूर्ण】
अब बीते हुए ६ मनुओं के काल की गणना करता हूँ।
१ महायुग = ४३,२०००० वर्ष।
७१ महायुग / १ मन्वन्तर = ७१x४३,३०००० वर्ष।
१ मन्वन्तर= ३०६७,२०००० वर्ष।
६ मन्वन्तर = ६×३०६७,२०००० वर्ष।
= १८,४०,३,२०,००० वर्ष। (क)
१ सन्धि = १७,२८,००० वर्ष।
७ सन्धि =७× १,२०१६००० वर्ष। (ख) = ६ मनुओं का कार्य काल =क + ख वर्ष= १८५,२४,१६००० वर्ष।
【 यहाँ १+८+५+२+४+१+६+०+०+० = २७= २+७= ९=पूर्ण】
कलियुग के पूर्व तक बह्मा के वर्तमान दिन/कल्प का समय= १८५,२४,१६०००+१२०५,२८,००० = १,९७,२९,४४००० वर्ष।

【यहाँ १+९+७+२+९+४+४+०+०+७ = ३६ = ३+६=९= पूर्ण 】
कलियुग के प्रारंभ हुए ५१२४ वर्ष हो चुके हैं।
अतः वर्तमान में ब्रह्मा का गत दिन काल = १९७,२९,४४००० + ५१२४ वर्ष।
= १,९७,२९,४९१२४ वर्ष। (१)
ब्रह्मा के १ दिन (कल्प) का मान = ४३,३२,००,००,००० वर्ष । (२)
इन दोनों संख्याओं की तुलना करने पर अभी ब्रह्मा जी के दिन का मध्याह्नकाल नहीं आया है। ब्रह्मा जो मध्याह से पूर्व की स्थिति में रह कर अपने सृजनात्मक धर्म का पालन कर रहे हैं।
ब्रह्मा की रात्रि का प्रमाण भी १००० महायुग होता है। इस प्रकार, दो हजार महायुग ब्रह्मा के अहोरात्र का प्रमाण है। अहोरात्र के प्रमाण से ब्रह्मा की परमायु १०० वर्ष है।
२००० महायुग = २ कल्प = १ अहोरात्र ब्रह्मा जी का।
७२० कल्प = ३६० दिन + ३६० रात्रि = १वर्ष।
७२० x १००० महायुग =७२,००० महायुग= १ वर्ष।
ब्रह्मा की आयु = ७,२००,००x१०० महायुग। =७,२०००००० महायुग / चतुर्युगी।

ब्रह्मा जी की आयु =७,२०००००० कृतयुग + ७२०००००० त्रेता + ७२००००० द्वापर + ७,२०००००० कलियुग। = २७८०००००० कलियुग द्वापर त्रेता सतयुग।
[यहाँ २+८+८+०+०+०+०+ = १८ = १+८ = ९ = पूर्ण ]
यह उस ब्रह्मा की आयु (कार्य काल) है, जो इस भूलोक के स्रष्टा हैं।
ब्रह्मा का कार्यकाल = ७,२०,०००,०० महायुग।
मनु का कार्य काल = ७१ महायुग।

इसलिये ब्रह्मा के सम्पूर्ण कार्य काल में ब्रह्मा द्वारा नियुक्त किये गये मनुओं की संख्या ७२,०००,००० ÷ ७१ = ११४८४ तथा शेष ३६ महायुग।
【यहाँ १+१+४+८+४ = १८ = १+८ = ९ पूर्ण 】तथा【 शेष ३६ महायुग = ३+६= ९ – पूर्ण 】
इन शेष ३६ महायुगों में ब्रह्मा अपना कार्य भार किसी दूसरे ब्रह्मा को सौंप कर पदमुक्त / सेवानिवृत्त होता है। इस अवधि में विष्णु एवं शिव भी बदलते हैं। यह परिवर्तन का विशिष्ट काल है। आचिंत्य काल पुरुष ही इसे जानता है। हम तुच्छ जीव क्या जानें ?
३६ शेष होने का अर्थ है कि यह बीज है। आगे की सृष्टि के लिये शेष आवश्यक है। शेष के अभाव में बीज समाप्त वा सृष्टि कार्य स्थगित। किन्तु ऐसा सम्भव नहीं। यह शेष भी पूर्ण है। यह इस बात का द्योतक है कि आगे होने वाले ब्रह्मा की सृष्टि भी पूर्ण होगी। सारी विधि व्यवस्था अंकों/संख्याओं पर नाच रही है।
काल देव इसे नचा रहे हैं। इस खेल के रहस्य को वे ही समझते हैं। यह सब हम सब के परे है। ऋषिप्रसाद से इसका किश्चित प्रवचन किया, मैं ने।

१००० महायुग = ब्रह्मा का १ दिन दिनमान।
७१ महायुग = १ मन्वन्तर = मनुमान।
इसलिये ब्रह्मा के १ दिन में मनुओं को संख्या=१०००÷ ७१ = १४ .१०/७१।
यहाँ १०/ ७१ की उपेक्षा करने पर १४ मनु आते हैं।
१०/७१ मन्वन्तर = १० महायुग = ४३२००००० वर्ष ।
१४ मन्वन्तरों में १५ सन्धियाँ होती हैं।
अतः १ संधिकाल = महायुग १०/ १५ ४,३२,०००००÷ १५ =२८८०,००० वर्ष।
【 यहाँ २+८+८+०+०+०+० = १८ = १+८ = १ = पूर्ण 】

जब एक मनु दूसरे मनु से कार्य भार ग्रहण करता एवं देता है तो वह काल मात्र २८८०००० वर्षो का है। यह प्रखण्ड प्रलय है।
ब्रह्मा जी जब सो कर उठते हैं तो अपने पूरे एक दिन के लिये एक इन्द्र की नियुक्ति करते हैं। ब्रह्मा जी के शयन करने के पूर्व तक इसका कार्य काल होता है। १ इन्द्र का कार्यकाल = १ कल्प = १००० महायुग=४३२००००००० वर्ष । वर्तमान में जो प्राणी इन्द्र पद पर सुशोभित है, उसका नाम पुरन्दर है। ब्रह्मा जी की आयु के जितने दिन हैं, उतने इन्द्र होते हैं। इन्द्र देवताओं का अधिपति होता है। इस पद पर देव, राक्षस, मनुष्य कोई भी प्रतिष्ठित होता है। इस पद की अर्हता तप मात्र है।
एक कथा है। शिव जी पार्वती के संग पर्यटन कर रहे थे। उन्होंने एक चौटे को देखा और पार्वती से कहा- हे प्रिये, यह चींटा २१ बार इन्द्र के पद पर रह चुका है। इन्द्र का पद भोग का पद है। भोग से तप नष्ट हो जाता है। तप के नाश से पतन निश्चित है। इस दैव एवं मानुष जगत का मूल तप है।
‘तपोमूलमिदं सर्वं दैवमानुषकं जगत् ।'(मनुस्मृति ११/२३३)
निरन्तर तपशील का पतन कैसे हो सकता है ? तपिने नमः।

ब्रह्मा विष्णु शिव तथा जीव काल के ही द्वारा रचे जाते हैं, प्रसे जाते हैं :
‘एवं ब्रह्मा च भूतानि वासुदेवोऽपि शंकरः।
कालेनैव तु सृज्यन्ते स एव ग्रसते पुनः।।’
अनेकों ब्रह्मा हैं। अनेकों विष्णु हैं। अनेकों शिव हैं। इनकी गणना को ही नहीं जा सकती। काल भगवान् एक हैं, ईश हैं, सर्वग्य हैं। यह श्रुतिसम्मत है।

कूर्म पुराण का श्लोक है :
‘ब्रह्मणो बहवो रुद्रा ह्यन्ये नारायणादयः। एकोहि भगवानीशः कालः कविरिति श्रुतिः ॥८।२१
इस समय ब्रह्मा जी का एक परार्ध (५० वर्ष) बीत चुका है। अब उनका दूसरा परार्ध चल रहा है। उस द्वितीय परार्ध का यह आठवाँ कल्प (दिन) है। इस कल्प को वाराह कल्प’ कहते हैं।
ब्रह्मा जी के कल्प को श्वेत एवं कृष्ण नाम से दो कहा गया है। ब्रह्मा जी के जागने का कल्प श्वेत तथा सोने का कल्प कृष्ण होता है। दिन श्वेत वर्ण का माना गया है। तथा रात कृष्ण वर्ण की। इस समय ब्रह्मा जी जाग रहे हैं। यह ब्रह्मा का दिवा कल्प है। इस लिये वर्तमान कल्प को ‘श्वेत बाराह कल्प’ कहते हैं।
यह सब संकल्प मे कहा/ पढ़ा जाता है। संकल्प की भाषा कितनी सारगर्भित एवं पूर्ण हैं.
अद्य ब्रह्मणोऽह्नि, द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराह कल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे, बौद्धावतारे, भूलोंके, जम्बूद्वीपे भारत खण्डे भारतवर्षे. क्षेत्रे/नगरे / ग्रामे नाम संवत्सरे… मासे… शुक्ल / कृष्ण पक्षेतिथी वासरे_गोत्र शर्मा / वर्मा/ गुप्तोऽहम् प्रातः / सयम् भगवत्प्रीत्यर्थं पूजां यज्ञं वा करिष्ये।’
ब्रह्मा की आयु गणना करने का उद्देश्य यही है कि काल के प्रवाह में ब्रह्मादि देव नगण्य हैं तो मनुष्य किस खेत की मूली है ? सबको हटना है, मिटना है, जाना है। मूढ़ मनुष्य इस सत्य को जान कर भी काल देव की शरण में नहीं जाता। राम का चिन्तन नहीं करता।
कृष्ण को नहीं भजता। वह कई पीढ़ियों के लिये पाप कर्म करके धन इकट्ठा करता है। वह अट्टालिकाएं खड़ी करता है, भोग विलास की सामग्री जुटाता रहता है। यह हतभाग्य मानव का उपक्रम है ! (चेतना विकास मिशन)

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