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राष्ट्रपति चुनाव में17 विपक्षी सांसदों और 104 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की,विपक्ष की एकता पर चोट

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नई दिल्ली:द्रौपदी मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। गुरुवार को आए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में उन्होंने तीसरे राउंड में ही विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को मात दे दी। ऐसे नतीजे आएंगे इसकी पहले से ही उम्मीद थी लेकिन इस चुनाव में कई विपक्षी सांसद भी क्रॉस वोटिंगकरेंगे इसकी उम्मीद कम थी। विधायकों के क्रॉस वोटिंग की खबर तो वोटिंग वाले दिन ही सामने आ गई थी जब कांग्रेस समेत कई दूसरे विपक्षी दलों के विधायकों ने खुलेआम इसकी घोषणा कर दी कि उन्होंने द्रौपदी मुर्मू को वोट किया है। हालांकि उस वक्त कितने विधायक होंगे इसका पता नहीं था। गुरुवार आए नतीजों के बाद जो खबर सामने आई उसमें 17 विपक्षी सांसदों और 104 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है। यह क्रॉस वोटिंग विपक्ष की एकता पर चोटहै साथ ही उपराष्ट्रपति चुनाव में भी इसका असर देखने को मिलेगा।

विधायक ही नहीं सांसदों के क्रॉस वोटिंग के क्या मायने हैं
राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने कुल 6,76,803 मतों के साथ जीत दर्ज की। वहीं विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को कुल 3,80,177 वोट मिले। चौथे चरण की मतगणना के बाद निर्वाचन अधिकारी पी. सी. मोदी ने मुर्मू के 64.03 फीसदी मतों के साथ चुनाव जीतने की आधिकारिक घोषणा की। यशवंत सिन्हा को कुल वैध मतों के 36 फीसदी वोट मिले। मुर्मू को 540 सांसदों सहित कुल 2824 मतदाताओं के वोट मिले जबकि यशवंत सिन्हा को 208 सांसदों सहित 1,877 मतदाताओं के वोट मिले।

नतीजों के बाद यह खबर सामने आई कि विपक्षी दलों के 17 सांसदों ने द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में क्रॉस वोटिंग की है। सांसदों के अलावा 104 विपक्षी दलों के विधायकों की ओर से भी क्रॉस वोटिंग की गई है। आंध्र प्रदेश के सभी विधायकों ने मुर्मू के पक्ष में मतदान किया, जबकि अरुणाचल प्रदेश में उन्हें चार को छोड़कर सभी विधायकों के मत मिले। साउथ से भी जमकर द्रौपदी मुर्मू को समर्थन मिला वहीं तीन राज्यों में यशवंत सिन्हा को शून्य वोट मिले। आम आदमी पार्टी के भी 4 विधायकों के वोट इनवैलिड हुए हैं। 17 सांसदों के क्रॉस वोटिंग का मतलब है कि उन्होंने अपने पार्टी के नेता और दल के खिलाफ जाकर वोटिंग की है। ऐसे में एक बार फिर विपक्षी दलों की एकता और उनके दावों को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।

बीजेपी के सूत्रों ने दावा किया कि 125 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। मतगणना में भी सामने आया है कि मुर्मू को 17 सांसदों की क्रॉस वोटिंग का लाभ मिला। असम, झारखंड और मध्य प्रदेश के विपक्षी दलों के विधायकों की अच्छी खासी संख्या ने भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया। माना जा रहा है कि असम के 22 और मध्य प्रदेश के 20 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। बिहार और छत्तीसगढ़ के छह-छह, गोवा के चार और गुजरात के 10 विधायकों ने भी क्रॉस वोटिंग की होगी।

राष्ट्रपति पद के चुनाव में पड़े कुल 53 अवैध मतों में से 28 प्रतिशत वोट सांसदों के थे जबकि ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ में सांसदों की ओर से डाले गए मतों का योगदान महज 16 प्रतिशत होता है। इस चुनाव में बिहार और छत्तीसगढ़ समेत 13 राज्यों के विधानसभा सदस्यों की ओर से डाला गया एक भी मत अवैध नहीं था। इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 4,809 मत थे, जिनमें से 776 (16 प्रतिशत) सांसदों के थे।

विपक्ष की ताकत लगातार हो रही कमजोर

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष की रणनीति शुरू से ही कमजोर नजर आई। पहले उम्मीदवार चयन को लेकर और उसके बाद कई विपक्षी दल इस धर्म संकट में फंस गए कि वो अब क्या करें। रही सही कसर चुनाव से कुछ दिन पहले शिवसेना के ऐलान से पूरी हो गई जब उद्धव ठाकरे की ओर से कहा गया कि उनका दल द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेगा। हालांकि शिंदे गुट पहले ही इसकी घोषणा कर चुका था। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी द्रौपदी मुर्मू का विरोध नहीं कर पाए।

इन सबके बीच सबसे बड़ा बयान बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से आया जिन्होंने इस पूरे मुहिम की अगुवाई की थी। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने अपने उम्मीदवार का ऐलान पहले किया होता उस पर सर्वसम्मति बन सकती थी। शुरुआत में जिस तरीके से वो राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अगुवाई करती नजर आईं वो बाद में धीरे-धीरे पीछे हटती गईं। कभी शरद पवार तो कभी कोई और विपक्ष की ओर से दम लगाता नजर आया लेकिन वो आखिरकार खानापूर्ति ही साबित हुई। विपक्षी एकजुटता की बात सभी विरोधी राजनीतिक दल करते हैं लेकिन वो दिनोंदिन मजबूत होने की बजाय कमजोर होता चला जा रहा है।

उपराष्ट्रपति के चुनाव पर भी पड़ेगा असर
इस चुनाव नतीजे का असर उपराष्ट्रपति के चुनाव पर जरूर पड़ेगा। इसकी शुरुआत राष्ट्रपति चुनाव नतीजे के दिन से ही शुरू हो गई। ममता बनर्जी की पार्टी की ओर से ऐलान किया गया कि वह इस चुनाव से दूर रहेगी। 6 अगस्त को उपराष्ट्रपति का चुनाव है और विपक्ष की ओर से मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया गया है। उनके सामने एनडीए की ओर से जगदीप धनखड़ हैं। एनसीपी चीफ शरद पवार ने इसी रविवार को मार्गरेट अल्वा के नाम का ऐलान किया था। उनके नाम का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा कि 17 विपक्षी दलों की मंजूरी उनके नाम को लेकर है। शरद पवार ने कहा कि हमने पश्चिम बंगाल CM ममता बनर्जी से बात करने की कोशिश की लेकिन वे व्यस्त थीं।

वहीं राष्ट्रपति चुनाव नतीजे वाले दिन ही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति चुनाव से दूरी बनाने का फैसला किया है। टीएमसी की बैठक के बाद पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने ऐलान किया कि तृणमूल कांग्रेस उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहेगी। उपराष्ट्रपति चुनाव में विधायकों को वोट नहीं देना है और पहले ही एनडीए की जीत लगभग तय है और उससे पहले विपक्षी दलों में फूट के बाद मार्गरेट अल्वा लड़ाई में और भी कमजोर नजर आ रही हैं। हो सकता है कि आने वाले दिन में विपक्षी दलों में से कोई और भी पीछे न हो जाए।

एक बार फिर पीएम मोदी के फैसले पर लगी मुहर

2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद बीजेपी की ओर से कई चौंकाने वाले फैसले हुए हैं। उनके फैसलों की काट विपक्ष भी नहीं खोज पाया है। द्रौपदी मुर्मू के नाम के ऐलान के साथ ही यह बात तय हो गई थी कि एनडीए उम्मीदवार का विरोध आसान नहीं होगा। और जैसे-जैसे चुनाव करीब आता चला गया यह बात सच भी साबित हुई। द्रौपदी मुर्मू की जीत के साथ ही पीएम मोदी के फैसले पर एक बार फिर मुहर लगी है। द्रौपदी मुर्मू की जीत इसलिए भी बड़ी है क्योंकि सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्षी दलों की ओर से भी वोट मिले हैं।

ऐसे में अभी से ही 2024 की लड़ाई को लेकर यह सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या विपक्ष उस चुनाव में एकजुट रह पाएगा। वहीं दूसरी ओर पीएम मोदी की स्वीकार्यता विपक्षी दलों में भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में विपक्ष कितना एकजुट रह पाएगा यह बहुत बड़ा सवाल है।

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