सनत जैन
आयकर विभाग ने कांग्रेस को अभी तक आयकर के जो नोटिस भेजे हैं। उसके अनुसार आयकर विभाग ने 3567 करोड़ रुपए का जुर्माना और टैक्स कांग्रेस पार्टी पर निकाला है। कांग्रेस पार्टी ने रामलीला मैदान में स्पष्ट रूप से कहा, उन्हें शनिवार को भी एक नया नोटिस मिला है। जिसमें 1745 करोड रुपए की डिमांड कांग्रेस पार्टी से की गई है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है, कि आयकर विभाग नियम विरुद्ध कार्रवाई कर रहा है। आयकर विभाग खुद अपने ही नियमों का पालन नहीं कर रहा है।
वर्ष 94-95 का मामला निकालकर जब पार्टी के अध्यक्ष सीताराम केसरी थे। उस समय का 53 करोड़ 90 लाख रुपए टैक्स लगाया गया है। आयकर विभाग ने 2014-15 के लिए 663.05 करोड़, 2015-16 के लिए 663.89 करोड़, 2016-17 के लिए 417.31 करोड़, वर्ष 2017-18 के लिए 181.99 करोड़, वर्ष 2018-19 के लिए 178.73 करोड़, वर्ष 2019-20 के लिए 918.45 करोड़ तथा 2020-21 के लिए 490.01 करोड रुपए के नोटिस भेजे हैं। यह सब राशि मिलकर 3567 करोड़ रुपए होती है। आयकर विभाग ने कांग्रेस पार्टी के सभी खातों क़ी निकासी पर रोक लगा दी है। कांग्रेस पार्टी के खाते से आयकर विभाग ने 135 करोड़ रुपए निकालकर आयकर विभाग में जमा कर लिए हैं । भारत में राजनीतिक दलों के ऊपर कोई इनकम टैक्स नहीं लगता है।
कांग्रेस पार्टी ने जो रिटर्न जमा किया है, उसमें कुछ गलतियां थीं। उन्हीं गलतियों के आधार पर आयकर विभाग ने कांग्रेस पार्टी पर टैक्स और जुर्माना लगाया है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के घर से छापे के दौरान आयकर विभाग ने एक डायरी जप्त की थी। उस डायरी में कांग्रेस पार्टी के लेनदेन पर टैक्स लगाया गया है। कांग्रेस पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव आयोग में जो रिटर्न दाखिल किया है। उसमें कांग्रेस पार्टी की जो गलतियां आयकर विभाग ने निकालकर टैक्स और जुर्माना लगाया है। भारतीय जनता पार्टी पर उसी तरह की गलती पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। उसी आधार पर यदि भाजपा पर कार्रवाई की जाएगी तो आयकर को 4300 करोड रुपए से ज्यादा का टैक्स जुर्माना भाजपा से वसूल करने का नोटिस जारी करने और खाते बंद करना चाहिए था। कांग्रेस का आरोप है, लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस पार्टी पर यह कार्रवाई इसलिए की गई है, ताकि कांग्रेस लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ पाए।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का यह भी कहना था, आयकर विभाग द्वारा जानबूझकर भाजपा नेताओं के इशारे पर यह कार्रवाई की गई है। आयकर विभाग ने स्वयं अपने नियम और कानून का उल्लंघन करके कांग्रेस के खाते पर रोक लगाई है। लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत कांग्रेस को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सरकार द्वारा कांग्रेस पर यह कार्रवाई की गई है। कांग्रेस पार्टी जिस तरह से इस मामले को लेकर सरकार, भारतीय जनता पार्टी और चुनाव आयोग को घेर रही है।
स्वतंत्रता के 75 वर्षों के इतिहास में यह पहली बार है। जब किसी राजनीतिक दल के खातों पर आयकर विभाग ने रोक लगाई गई हो। कांग्रेस पार्टी अपने पोस्टर बैनर नहीं छपवा रही है। अपने कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों को आर्थिक सहायता नहीं दे पा रही है। जिसके कारण लोकसभा का चुनाव प्रचार करना तो दूर, कांग्रेस के नेताओं को आयकर विभाग ट्रिब्यूनल और अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। रविवार को रामलीला मैदान में इंडिया गठबंधन की रैली हुई। इसमें भी यह सबसे बड़ा मुद्दा था। हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर भी अब आम जनता के मन में विपक्षी दलों के प्रति सहानुभूति देखने को मिलने लगी है। कांग्रेस के उम्मीदवार वोट के साथ मतदाताओं से नोट की भी मांग कर रहे हैं। मतदाताओं को बता रहे हैं, कि सरकार द्वारा उन्हें किस तरीके से चुनाव लड़ने से रोका जा रहा है।
मतदाताओं के बीच में भी इसकी सहानुभूति देखने को मिलने लगी है। आम जनता कांग्रेस के उम्मीदवारों को 1 रूपये से लेकर 500 रूपये के नोट जनसंपर्क के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार और कांग्रेस के नेताओं को दे रही है। जिससे लगता है, आम जनता की सहानुभूति भी कांग्रेस के साथ जुड़ने लगी है। राहुल गांधी का यह आरोप भी लोगों को सच लगने लगा है, चुनाव के दौरान इस तरह की कार्रवाई इसलिए की गई है कि कांग्रेस पार्टी चुनाव नहीं लड़ पाए। कांग्रेस के ऊपर आयकर विभाग द्वारा जो टैक्स लगाया गया है। खातों से राशि निकालने में जिस तरह से रोक लगाई गई है। यह पूरी तरीके से असंवैधानिक है। कोर्ट कचहरी में कई महीने निकल जाएंगे, तब तक चुनाव पूरा हो जाएगा। इंडिया गठबंधन की रैली में जिसमें 27 राजनैतिक दलों के नेता थे। रामलीला मैदान से चुनाव आयोग को भी कटघरे पर खड़ा किया गया है।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और निष्पक्षता को लेकर विपक्षी दल पहिले से ही चुनौती दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला लंबित है। चुनाव आयोग विपक्ष की शिकायत पर कोई कायर्वाही नहीं करता है। चुनाव आयोग सरकार की कार्यवाही पर आंख मूंदकर बैठी हुई है। निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। चुनाव आयोग मौन है। यदि जनता की सहानुभूति विपक्षी दलों के साथ जुड़ने लगी तो ऐसी स्थिति में सत्तारूढ़ भाजपा को लोकसभा के चुनाव में नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।