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अतृप्ति जनित अपूर्णता है बार-बार जन्म और मृत्यु का कारण 

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डॉ. विकास मानव

     _तुम शरीर मे हो. तुम शरीर नहीं हो. कितने ही ऐसे शरीरों को पहने हो और शमशान/कब्र मे उनका अंत हुआ है. आगे भी ऐसे ही घिसटोगे, अगर इस सत्य का अनुभव कर के ख़ुद को तृप्त नहीं कर लिए तो._
     जीव अपने जीवन की लम्बी यात्रा अकेले नहीं करता है। पूर्व जन्मों से चले आ रहे आपस के संपर्क के कारण मनुष्य संसार के विभिन्न देशों में, प्रदेशों में जन्मे हुए व्यक्तियों और विभिन्न परिस्थितियों के संपर्क में आता है।
  _आत्मा के विकास-क्रम में यदि अपने से अधिक उन्नत किसी और मनुष्य से हमारा परिचय हुआ हो और संयोगवश यदि कभी किसी जन्म में हमने उसकी सहायता भी की हो तब वर्तमान जन्म में हम उसकी ओर अनायास ही आकर्षित हो जाते हैं और उससे हमारा घनिष्ठ सम्बन्ध भी स्थापित हो जाता है।_
     इसी सम्बन्ध के कारण वर्तमान जन्म में भी हम उन सन्त, महात्मा, योगी, सिद्ध, साधक जैसे व्यक्तियों की ओर आकर्षित होते हैं और इस अनुपम और अलौकिक संयोग के कारण ही हमारे अन्दर नवीन शक्तियां उत्पन्न होती हैं। यही सामर्थ्य, यही शक्ति प्रत्येक जन्म में हमारी आत्मिक उन्नति का चिन्ह और पहचान होती है।
    _पूर्व जन्मों में की गयी सेवा तथा सद्व्यवहार के फलस्वरूप उससे भी श्रेष्ठ तथा दीर्घकालीन परोपकार करने का अधिकार मिलता है। ऐसी दशा में महापुरुषों के दर्शन में हमको लाभ पहुँचता है, अनुपम ज्ञान प्राप्त होता है तथा उसीके फलस्वरूप हमारे पवित्र सम्बन्ध जन्म-जन्मान्तर तक बने रहते हैं तथा हमारी आत्मा परस्पर सहयोग और ज्ञान के कारण उन्नति की ओर अग्रसर होती है।_
    प्रत्येक व्यक्तिगत सम्बन्ध भले ही वह प्रेम का हो अथवा घृणा-द्वेष का हो--हमें एक दूसरे से जोड़ता है। वर्तमान जन्म की क्रिया-प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हम भावी जन्मों में प्रस्तुत होने वाले व्यक्तिगत संबंधों को सुदृढ़ बनाते हैं।
   _इस जन्म के प्रेम-भाव और उस प्रेम-भाव से प्रेरित कार्यों के कारण भविष्य में उन व्यक्तियों के साथ जिनके प्रति हमने सद्भाव प्रदर्शित किया है, पुनर्जन्म लेना निश्चित होता है। इस प्रकार वंशगत सम्बन्धों के बाहर एक सच्चा परिवार स्थापित करने और अपनी प्राचीन कड़ियों को सुदृढ़ बनाने के लिए मनुष्य बार बार जन्म लेता है।_
   पश्चिम के परामनोवैज्ञानिक पुनर्जन्म की खोज और शोध में लगे हुए हैं जिनके आश्चर्यजनक परिणाम सामने हैं और वे परिणाम योग-तंत्र की रहस्यमयी विद्याओं और सिद्धियों को प्रमाणित करते हैं।
   _मस्तिष्क में सवा करोड़ ऐसी कोशिकाएं हैं जिनमें मनुष्य की पिछले सैकड़ों जन्मों की स्मृतियाँ भरी हुई हैं। इसी प्रकार लगभग दो करोड़ ऐसी कोशिकाएं भी हैं जिनमें मनुष्य के आगामी सैकड़ों जन्मों का इतिहास संगृहीत है जिनको योग-बल या विशेष सम्मोहन-विद्या द्वारा प्रकाश में लाया जा सकता है।_
  सम्मोहन-विद्या योगपरक तंत्र की एक परम रहस्यमयी विद्या है। पश्चिम के परामनोवैज्ञानिकों ने इस विद्या का आश्रय लेकर मनुष्य के पिछले जन्मों की स्मृतियों को तो जागृत करने में सफलता प्राप्त की ही है, इसके आलावा 'प्रोग्रेशन' द्वारा भविष्य-दर्शन से आने वाले समय में घटित होने वाली घटनाओं को भी जानने-समझने लगे हैं।
  _एक परामनोवैज्ञानिक (अल्वर्ट डी. रोशा )ने सबसे पहले सम्मोहन-विद्या के सम्बन्ध में प्रयोग किया था और सफलता भी पायी थी। वे लोगों को सम्मोहित करने के बाद उन्हें अपनी आयु से भी पहले के समय में ले जाते और फिर अपने पूर्व जन्म के वातावरण में घटित घटनाओं को वे पुनः जीने लगते।_
   इसी प्रकार कुछ लोगों को भविष्य के समय में भी ले जाने में उन्हें सफलता मिली थी और उसी सफलता ने मनुष्य को अगले जन्म के जीवन-काल में ले जाने के द्वार खोल दिए। उसमें भी रोशा को सफलता प्राप्त हुई।
  _यह निश्चित है कि जब अवचेतन मन शरीर और चेतन मन से मुक्त हो जाता है तो वह समय के किसी भी खण्ड में  यात्रा कर सकता है। वह अतीत और भविष्य दोनों को देख सकता है। वह बीते हुए जन्मों को और आगे आने वाले जन्मों को चलचित्र की तरह स्पष्ट देख सकता है और अनुभव भी कर सकता है।_
{ध्यानप्रशिक्षक लेखक चेतना विकास मिशन के निदेशक हैं.)
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