नई दिल्ली। भारत के शहर हर साल दो बेहद खतरनाक लेकिन अक्सर नजरअंदाज किए जाने वाले खतरे भीषण गर्मी और जहरीली हवा को झेलते हैं। जब ये दोनों एक साथ आती हैं तो उनका प्रभाव न सिर्फ घातक होता है बल्कि मौत के खतरे को कई गुना तक बढ़ा देता है।
स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल मेडिसिन का अध्ययन बताता है कि जिन दिनों में वायु प्रदूषण और अत्यधिक तापमान एक साथ चरम पर होते हैं, उन दिनों मृत्युदर में अप्रत्याशित इजाफा होता है। यह प्रभाव उस स्थिति से कई गुना अधिक होता है जब केवल एक ही कारक या तो गर्मी या प्रदूषण मौजूद हो। यह महत्वपूर्ण अध्ययन ‘एनवायरमेंट इंटरनेशनल’ जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
तापमान का ट्रेंड और बढ़ती चुनौती…
हाल के मौसम संबंधी आंकड़े भी इस दिशा में खतरे की घंटी बजा रहे हैं। वर्ष 2025 की फरवरी अब तक की सबसे गर्म रही और मार्च में गर्मी ने समय से पहले ही दस्तक दे दी। 15 मार्च को ओडिशा के बौध में तापमान 43.6 डिग्री तक पहुंच गया, जो चिंताजनक है।
तत्काल प्रयासों की जरूरत…
शोध से जुड़े प्रोफेसर जेरोन डी बोंट के अनुसार यह संयुक्त प्रभाव विशेष रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में बेहद खतरनाक साबित होते है, जहां लोग पहले से ही स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझते हैं। यही कारण है कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के स्रोतों को नियंत्रित करने के लिए तत्काल और सुसंगत प्रयासों की जरूरत है। भारत को चाहिए कि वह इस दोहरे खतरे को नजरअंदाज करने के बजाय इसे नीति निर्धारण की प्राथमिकता बनाए। यदि अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट न केवल पर्यावरणीय बल्कि लाखों लोगों के जीवन पर सीधा असर डालेगा।
भारत जैसे देशों में गर्मी और प्रदूषण साल-दर-साल चरम पर पहुंच रही हैं। शोधकर्ताओं ने 2008 से 2019 के बीच भारत के 10 बड़े शहरों में 36 लाख से अधिक मौतों का विश्लेषण किया। शोध में सामने आया कि जब तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है और उसी समय पीएम2.5 कणों का स्तर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर बढ़ता है, तो मृत्यु दर में 4.6% की वृद्धि हो जाती है। यह उस वृद्धि से कई गुना ज्यादा है जो केवल गर्मी या केवल प्रदूषण के प्रभाव में देखी जाती है। यहां तक कि जब पीएम2.5 का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंचता है, तो मृत्यु का जोखिम 64% तक बढ़ जाता है।
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