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संघ और भाजपा में बढ़ती तकरार : संघ बेकरार 

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-सुसंस्कृति परिहार

पिछले दिनों कथित नागपुर के अंबेडकर वादी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक  अध्यक्ष जनार्दन मून  ने प्रेस कांफ्रेंस कर इंडिया गठबंधन को समर्थन देने की जो घोषणा की है वह बताया जा रहा है वह आरएसएस का नहीं है उसे कथित तौर पर भाजपा का वैचारिक संगठन कहा जा है।उसके द्वारा वायरल वीडियो भले सच ना हो किंतु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि संघ परिवार के कर्मठ स्वयं सेवक भाजपा से नाराज़ हैं।

 भाजपा  संघ के समर्पित स्वयं सेवकों की जिस तरह उपेक्षा कर रहा है उससे संघ के अंदर जबरदस्त खौल है। पिछले साल के अंत में हुए विधानसभा चुनावों में भी यह बात उभर कर सामने आई थी जब आरएसएस के कई पूर्व सदस्यों ने चुनावी राज्य मध्यप्रदेश में ‘जनहित’ नाम से अपनी एक पार्टी बनाई थी। ये सभी कभी संघ में सक्रिय हुआ करते थे, लेकिन लगभग 9 साल से अधिक समय पहले इन्होंने संघ छोड़ दिया था और अब खुद की पार्टी बना ली है। उनका लक्ष्य कांग्रेस-भाजपा की राजनीति के एकाधिकार को तोड़ना और राज्य में जनता को एक नया विकल्प देना है। उनका कहना है कि भाजपा अपनी मूल वैचारिक मान्यताओं से भटक गई है इन संस्थापकों ने भाजपा पर केंद्रीकृत होने और दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों को त्यागने का आरोप लगाया था।

इससे पूर्व उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान संघ और भाजपा में इतनी ठन गई थी कि मोदी की चुनाव सभाओं को सीमित कर दिया गया था संघ भगवा वस्त्र धारी योगी आदित्यनाथ में भारत के प्रधानमंत्री का चेहरा देखने लगा था लेकिन एक बड़े स्टार प्रचारक मोदी ने इस चेहरे की धज्जियां उड़ा दीं और तीसरी बार चार सौ पार का लक्ष्य रख दिया। जिससे संघ की नींद उड़ गई है।

संघ ने अपने कथित ईमानदार और लोकप्रिय मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को आगे बढ़ाने का उपक्रम किया।पी एम के ख़िलाफ़ लगातार उन्होंने इतना सख्त बोला कि कि वे भी भारत सरकार की ईडी के शिकंजे में फंसते चले गए और आज जमानत को तरस रहे हैं । दिल्ली पुलिस और उपराज्यपाल ने उन्हें हमेशा परेशान रखा।विशेष बात ये कि मोदी जी ने शराब की नई शराब आबकारी नीति में कथित भ्रष्टाचार के तहत उनके महत्वपूर्ण साथियों को भी गिरफ्तार किया।सुको ने हाल ही में सांसद संजय सिंह को जमानत दे दी है किंतु दो अन्य मंत्रियों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। भाजपा ने संघ की इस बी टीम पर जबरदस्त कुठाराघात किया। लगता है संघ की अनुमति से ही केजरीवाल  इंडिया गठबंधन की पहली  बैठक पटना में बिना आमंत्रण पहुंचे।यही से इंडिया गठबंधन से संघ ने दूरियां कम करने की कोशिश की हैं।

 इससे पहले भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले साल के अपने कार्यक्रमों में अपनी सोच में बदलाव की बात दिखाई दी।जो भाजपा से मोहभंग दर्शाता है ।संघ प्रमुख ने एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण जारी रखने का समर्थन किया।तो आश्चर्य हुआ उन्होंने कहा, “जब तक समाज में भेदभाव है आरक्षण भी बरकरार रहना चाहिए.संविधान सम्मत जितना आरक्षण है उसका संघ के लोग समर्थन करते हैं.”उन्होंने भाईचारा कायम रखने सबके एक डीएनए की बात कही।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए इससे ज़्यादा चिंता की – और अपमानजनक – बात क्या हो सकती है कि जिस काँग्रेस को उन्होंने दिन-रात कड़ी मेहनत करके लगभग एक कोने में समेट दिया है, उसे आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ख़ुद प्राणवायु देने को तैयार हैं?भारतीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का एक वक्तव्य इन दिनों चर्चा में है। मोहन भागवत ने कहा था कि संघ हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश का पक्षधर नहीं है। ज्ञानवापी विवाद के संदर्भ में उन्होंने नागपुर में संघ के एक प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही। मोहन भागवत ने कहा, ‘ज्ञानवापी विवाद में आस्था के कुछ मुद्दे शामिल हैं। इस पर अदालत का निर्णय सर्वमान्य होना चाहिए। हर मस्जिद में शिवलिंग तलाशने और रोजाना नया विवाद खड़ा करने की जरूरत नहीं है। समय के साथ उदार दृष्टिकोण के जरिए देखने की आवश्यकता है।’

2014 में अखंड भारत और हिंदू राष्ट्र का सपना संजोये आरएसएस के लिए ये बहुत राहत की बात थी कि उनके प्रयासों से भाजपा सत्तारुढ़ हुई थी। उन्होंने गुजरात में नरसंहार के कथित जिम्मेदार सरकार के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री घोषित किया तथा तड़ीपार को भाजपाध्यक्ष स्वीकार किया।उसी गलती का आज वे प्रायश्चित कर रहे हैं। गुजरात लाबी ने जिस तरह महाराष्ट्र लाबी को किनारे कर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ा कर लिया है उससे संघ के आय स्रोत कम हुए हैं।साथ ही साथ कथित हिंदुत्ववादी छवि का हरण भी गुजरात लाबी ने कर लिया है। नितिन गडकरी और देवेन्द्र फ़ड़नवीस की हालत भी किसी ने छिपी नहीं है। इसलिए चोट खाया संघ अपने सिद्धांतों से परे हटने की बात करके इंडिया गठबंधन के साथ खड़ा भी हो सकता है ।यह तय है कि मोदी के रहते संघ की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है।संघ की रीति नीति बड़ी जटिल है फिलहाल उसे अपनी तबियत सुधारनी है वह कुछ भी करने की स्थिति में है।वायरल वीडियो भी इस कमज़ोरी का ही परिणाम है।देखना यह है कि संघ किस ओर मुखातिब होता है।

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