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अन्याय और अनीति का बढ़ता दायरा 

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सुसंस्कृति परिहार

 

आजकल देश में जिस तरह अन्याय और अनीति का दबदबा अपना विस्तार कर रहा है वह देश की सेहत के लिए ठीक नहीं है।इतिहास बताता है कि जब जब जिस जिस देश में अन्याय और अनीति ने ज़ोर पकड़ा है तब तब वहां की जनता ने अपने अपने तरीके से उसका सशक्त विरोध किया है,भारत भी अपवाद नहीं है।

भारत में लगभग एक दशक पूर्ण होने वाला है तब से देश में राजनैतिक अनैतिकता, संविधान वा कानून की अवज्ञा, वादाखिलाफी और अन्याय का ग्राफ अपने चरम पर है। 2014के चुनाव के दौरान स्वच्छ  प्रशासन और जनता की खुशहाली के जो वादे किए गए उन्हे जुमला  कहकर नकार  दिया गया उस समय के एक कथित बाबा का यह वायदा कि मोदी राज में टैक्स नहीं देना पड़ेगा और पेट्रोल ₹20 लीटर मिलेगा, आज भी अखबार के पन्नों पर सुरक्षित है और यदा- कदा सोशल मीडिया पर प्रकट होता है।इन सालों में  कांग्रेस और उनके पुरखों को कोसने के अलावा कुछ नहीं हुआ।काला धन वापस आएगा,15लाख खाते में आएंगे,प्रत्येक वर्ष 2करोड़ लोगों को रोज़गार मिलेगा सब बातें हवा हवाई जुमला साबित हो गई।भाजपा की  सरकार से जनता ऊब गई। उसने हराने का मन बना लिया था, किंतु  पुलवामा हमला, सर्जिकल  स्ट्राइक और ईवीएम ने मिलकर सरकार की 2019में पुनर्वापसी कर दी। इन मामलों  पर कभी विचार नहीं किया गया कोई सुनवाई भी नहीं हुई। जनविरोध भले नहीं हुआ लेकिन जनता के दिल में यह सवाल उठ रहा है।

जैसा कि हम सब जानते हैं,वर्तमान केंद्र सरकार की बुनियाद 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस और 2002 के गुजरात नरसंहार पर है। उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म के निर्वाह की सलाह दी थी इससे स्पष्ट है की मोदी जी ने ना तब राज धर्म का निर्वहन किया था और ना आज कर रहे हैं। इनके सत्ता तक पहुंचने में अंतिम निर्णायक भूमिका संघ प्रायोजित अन्ना आंदोलन ने निभाई।

 वास्तव में 2002 का गुजरात नरसंहार संघ की प्रयोगशाला से निकला था एक ऐसा जिन्न था जिसने आगे  चलकर पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया यहीं से न्याय पालिका को अपने मनोनुकूल होने के लिए बाध्य करने का सिलसिला शुरू हुआ। गुजरात में न्याय मिलने की उम्मीद छिन्न-भिन्न होने लगी और अनेकों पीड़ितों ने अपने मामले की गुजरात के बाहर सुनवाई की गुहार लगाई और सर्वोच्च न्यायालय ने उसे स्वीकार भी किया।जज लोया की हत्या के बाद दबाव का स्थान आतंक ने ले लिया।इन सारे घटनाक्रमों से एक सिलसिला यह शुरू हुआ कि जो सत्ता की अपेक्षा पर ज खरे उतरे उन्हें सेवानिवृत्त होने के बाद पदों से नवाजा गया।

आइए अब एक नज़र उन मामलों पर भी डाल ली जाए जो शायद आप भूल गए होंगे  उन्हें याद करें और समझ लें कि अन्यान्य को किस तरह ज़िंदा रखने में हमारे चंद न्यायाधीशों ने सरकार के मनमाफिक फैसले दिए और बाद में इनाम के हकदार बने। सबसे पहले राममंदिर फैसले को देख लीजिए उस केस में सीजेआई रंजन गोगोई जिन पर यौन शोषण का आरोप लगा वे उससे बरी हुए उसके बाद उनकी अगुवाई में बनी पांच सदस्यीय पीठ ने  सर्वसम्मति के यह  फैसला  दिया कि अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी गई।इसके तत्काल बाद सेवानिवृत्त होने पर रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य बनाया।इसी बैंच में शामिल जस्टिस अब्दुल नज़ीर को आंध्रप्रदेश का भी राज्यपाल बनाया गया। आखिरकार  क्यों?

यहां यह भी याद करना ज़रूरी है कि फेंक एकांउटर केस में अमित शाह के वकील यू यू ललित  सीजेआई बनाए गए।एक जज साहिब सदाशिवम भी रहे जिन्होंने इसी केस में अमित शाह को बरी किया। सेवानिवृत्त होने के बाद इन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया। इसी तरह सहारा बिड़ला मामले में मोदी-शाह को बरी करने वाले जज के वी चौधरी को सेवानिवृत्त होने पर केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त बनाया गया।यह भी याद कीजिए गुजरात दंगों में पुलिस जांच से जुड़े  राजेश अस्थाना को सीबीआई का स्पेशल डायरेक्टर बनाकर उपकृत किया गया।यह फेहरिस्त बहुत बड़ी है।इससे साबित होता है न्याय व्यवस्था पर कितना जबरदस्त दवाब सरकार का हुआ जिससे अन्यान्य को प्रश्रय मिला।

  जब 2014 में कांग्रेस सरकार की विदाई जनता ने कर दी और एक नई सरकार को जनता ने भारत और अपना भविष्य सौंप दिया था तब लगा था कि देश में  बदलाव होगा , कुछ अच्छे परिवर्तन आयेंगे हैं पर, आज बदलाव का ये आलम है कि वह शहरों और रेलवे स्टेशनों ,राशन और दल-बदल में ही  सिमट के रह गया ।लोग कहते हैं कि जब मोदी जी इतने लोकप्रिय और शक्तिशाली हैं अब राम मंदिर भी बन गया है तो बैलेट पेपर से चुनाव कराने से डर क्यों रहे हैं।देखा गया है जहां ईवीएम  से भी पूरा नहीं पड़ा तो कांग्रेस तथा अन्य पार्टी के लोगों को खरीद कर सरकार बनाई जाती रही। इस सबके बावजूद दिसंबर 23 के राज्य विधानसभा चुनावों में जिस तरह के परिणाम सामने आए उसे देखकर तो लोगों को काठ मार गया।यह ईवीएम का कमाल था।जब 99%पत्रकार जिसमें गोदी मीडिया भी शामिल रहा भाजपा के डूबने की बात कर रहा था तो परिणाम आने के पहले सिर्फ दो चैनलों ने जो परिणाम दिखाएं वहीं परिणाम आए।यह इस बात का प्रमाण है कि मामला गंभीर है। दूसरी बात यह है कि सरकारी कर्मचारी जो गांव से शहर तक लोगों से जुड़े रहते हैं उनकी बैलेट वोट में सभी जगह कांग्रेस बहुत आगे थी।इसका दूसरा प्रमाण है।तीसरी बात आपका इतना बहुमत है तो दल-बदल,राम जी का सहारा और ईडी, सीबीआई की दबिश प्रतिद्वंद्वी पार्टी पर क्यों?मतलब साफ़ है उन्हें अंदर की हकीकत मालूम है कि वे कितने गहरे पानी में हैं?उन्हें ख़तरा है कि बहुसंख्यक लोग उनकी हकीकत जान चुके हैं इसलिए यदि ईवीएम हट गई तो 400का आंकड़ा कैसे छू पाएंगे?

इसीलिए,आज देश में वादाखिलाफी के ख़िलाफ़ किसान आंदोलन अपने किसानों की जान जोखिम में डालकर बड़े पैमाने पर चल रहा है। ईवीएम की निष्पक्षता से भी जनता का जो भरोसा उठा है आज वे अपने आप लाखों की तादाद में सुको के वकीलों द्वारा आयोजित ‘बैलेट से चुनाव  कराओ ईवीएम’ हटाओ आंदोलन में शामिल हैं परंतु जन आवाज़ कुचलने का प्रयास जारी है।ऐसे गर्म माहौल में कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा भी जारी है।ये आंदोलन देश की आवाज हैं इसे सुना जाना चाहिए।

दूसरी तरफ़ अनीति का बोलबाला है कानून और संविधान की हर जगह फजीहत हो रही है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति मामले में जिस तरह सुको की अवज्ञा करके सदन में बिल पास हुआ वह संविधान सम्मत नहीं। इसे एक जनहित में कांग्रेस  नेत्री जया ठाकुर द्वारा एक याचिका के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है जिसे न्यायालय ने  सुनवाई हेतु स्वीकृत कर लिया है और संबंधितों को नोटिस भी जारी कर दिया है। जनता द्वारा चुने हुए शताधिक सदस्यों को सवाल पूछने पर  सदन से निकालना,ईडी सीबीआई आदि एजेंसियों का दुरुपयोग। जनआंदोलन को कुचलना तथा देश के भाईचारा को बिगाड़ने की कोशिश, मणिपुर जैसे राज्य की अशांति, कश्मीर में चुनाव ना होना, विपक्ष को खत्म करने की बात, गोदी मीडिया ये तमाम बातें।  लोकतांत्रिक व्यवस्था के ख़िलाफ़ हैं अनीतिपूर्ण है। देशवासियों के साथ इस तरह का व्यवहार कोई संविधान  पर भरोसा रखने वाला नहीं कर सकता।इसलिए जो देश का भला चाहते हैं उन्हें ये सब समझना और समझाना होगा तभी अन्यान्य के ख़िलाफ़ न्याय को विजय श्री मिल पाएगी। डेसमंड टूटू के कथन को आज समझने की ज़रूरत है “आप यदि अन्यान्य की  स्थितियों में तटस्थ हैं तो आपने उत्पीड़क का पक्ष चुना हैं”

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