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भारत भूला पंचशील सिद्धांत की अहमियत

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सनत जैन

29 अप्रैल 1954 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पंचशील के सिद्धांत की स्थापना की थी। भारत,चीन और म्यांमार के बीच की सीमा विवाद सुलझाने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तीनों देशों के नेताओं के साथ मिलकर पंचशील के सिद्धांत पर 1954 में सहमति बनाई थी। संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, आपसी सम्मान,आपसी गैर आक्रामकता, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर हस्तक्षेप, समानता के आधार पर पारस्परिक लाभ, शांतिपूर्ण अस्तित्व, पंचशील के सिद्धांत हैं।

इसी सिद्धांत पर भारत ने अपनी विदेश नीति बनाई। पिछले 70 वर्षों में यह सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया। भारत ने 60 वर्ष तक पंचशील के सिद्धांत की नीति पर काम किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका को समय समय पर सराहा गया। जब भी दुनिया के देशों के बीच मतभेद युद्ध के स्तर तक पहुंचे। उस समय भारत ने पंचशील सिद्धांत के आधार पर विश्व मंच पर अपनी भूमिका निभाई। संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद में भारत की भूमिका हमेशा समन्वय की रही है।

इसी नीति के कारण भारत की सारे विश्व में विशिष्ट पहचान रही है। 28 जून 2024 को पंचशील सिद्धांतों की 70वीं वर्षगांठ का आयोजन किया गया था। इसमें भारत को भी आमंत्रित किया गया था। इस आयोजन में भारत की कोई सहभागिता नहीं रही। जबकि इसका आयोजन भारत सरकार को ही करना चाहिए था। इस आयोजन में चीन के राष्ट्रपति, श्रीलंका के राष्ट्रपति, गयाना के राष्ट्रपति और एशियाई देशों के कई राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए। इस समारोह में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दुनिया में बढ़ रहे संघर्ष को रोकने के लिए पंचशील सिद्धांतों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा पिछले 70 सालों में बार-बार साबित हुआ है। पंचशील के सिद्धांतों से ही सभी प्रकार की चुनौतियों से निपटा जा सकता है। एकता, सहयोग, आपस का संवाद और समझ दुनिया के सभी देशों के बीच में जरूरी है। दुनिया का विकास, शांति से ही संभव है।

शांति ओर साझा विकास को बढ़ावा देने के लिए पंचशील के सिद्धांत ही सारी दुनिया को बेहतर दिशा दे सकते हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत को पंचशील के सिद्धांतों की याद दिलाते हुए, भारत की भूमिका याद दिलाई। पंचशील के सिद्धांत की स्थापना भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाउ एनलाई के संयुक्त प्रयास से यह सिद्धांत अस्तित्व में आया था। एशियाई देशों के विवादों को सुलझाने के लिए इस सिद्धांत पर काम किया गया। इसके सार्थक परिणाम निकले। बाद में अंतरराष्ट्रीय विवादों में पंचशील के सिद्धांतों पर आधारित भारत की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही। भारत कभी भी किसी एक पक्ष के साथ नहीं रहा। निष्पक्षता के साथ भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी बात रखी। सभी देशों के बीच समन्वय बनाने मे निर्वावाद भूमिका रही। पिछले एक दशक में दुनिया की महाशक्तियों के बीच आर्थिक एवं प्राकृतिक संपदा पर कब्जा करने के लिए तरह-तरह के प्रयास किये जा रहे हैं।

महाशक्तियों के बीच घातक हथियारों की होड़ लगी हुई है। जैविक और रासायनिक हथियार भी प्रयोग में लाये जाने की संभावना बन गई है। कई देश जैविक और रासायनिक युद्ध लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। आणविक और घातक हथियार तो पहले से ही हैं। दुनिया के सभी देशों के बीच में टकराव बढता जा रहा है। चीन,अमेरिका और रूस के बीच मे टकराव बना हुआ है। तीसरे विश्व युद्ध की आशंका बन गई है। रूस और यूक्रेन के बीच लंबे समय से युद्ध चल रहा है। इसराइल और फिलीस्तीन के बीच लंबे समय से युद्ध चल रहा है। इस युद्ध में लाखों लोगों की मौत हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति के कोई प्रयास सफल नहीं हुए। पिछले 30-40 वर्षों में युद्धरत देशों में जो विकास हुआ था। वह पूरी तरह से नष्ट होता हुआ दिख रहा है। मानव जीवन बड़ा कष्ट पूर्ण हो गया है। आर्थिक आधार भी नष्ट हो चुका है। ऐसे समय में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पंचशील सिद्धांतों की अहमियत समझ में आई है। चीन की कोई विश्वासनियता नहीं है। ऐसी स्थिति में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है। जो दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए पंचशील के सिद्धांत पर, दुनिया के देशों के बीच समन्वय बनाने की दिशा में भूमिका अदा कर सकता है। पिछले 10 वर्षों से भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ता है। वह पुराने इतिहास को छोड़कर, वर्तमान में ही नया इतिहास लिखने की राह पर चल रहे हैं।

भारत को यह समझना होगा। भूत से वर्तमान बनता है। वर्तमान से हम भविष्य की संरचना के लिए आगे बढ़ते हैं। भूत, वर्तमान और भविष्य को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। भविष्य में ही इतिहास का आकलन हो सकता है। भूत से सबक लेना होता है। वर्तमान में क्रिया करनी पड़ती है। उसके बाद ही भविष्य तय होता है। पंचशील के सिद्धांत से भारत का दूर होना चिंता का विषय है। चीन के राष्ट्रपति को पंचशील सिद्धांतों की समझ आ गई है। ऐसी स्थिति में भारत को भी पंचशील सिद्धांतों की अहमियत को समझते हुए आगे बढ़ना होगा। तभी देश और दुनिया का भला हो सकता है। पंचशील का सिद्धांत ही हमें सारी दुनिया में विश्व गुरु का दर्जा दिलाने में सहायक सिद्ध होगा।

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