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सरकार प्रायोजित घोटालेबाजों के देश के रूप में दिख रही है हिंदुस्थान की पहचान

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हिंदुस्थान की पहचान सरकार प्रायोजित घोटालेबाजों के देश के रूप में दिख रही है। देश के हर क्षेत्र में बाड़ें ही खेतों को खा रही हैं तो दोष किसको दिया जाए? हिंडनबर्ग रिसर्च ने अब फिर से धमाका किया है। हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया है कि सेबी की मौजूदा अध्यक्ष माधवी बुच और उनके पति दोनों की अडानी घोटाले में वित्तीय हेराफेरी में इस्तेमाल की गई दोनों फर्जी विदेशी कंपनियों में हिस्सेदारी थी और कुछ दस्तावेजी सबूत सामने रखे गए हैं। पिछले साल हिंडनबर्ग ने अडानी के शेयर बाजार घोटाले का खुलासा कर तहलका मचा दिया था। इस घोटाले की जांच ‘सेबी’ को सौंपी गई थी।

जब तक उस पूछताछ की नौटंकी खत्म नहीं हुई, तब तक पता चला कि ‘जांच’ करने वाली ‘सेबी’ ही भीतर से अडानी से जुड़ी है और सेबी का मुखिया ही अडानी का सबसे बड़ा लाभार्थी है। अगर संसद सत्र चल रहा होता तो इस घोटाले पर संसद में हंगामा होता और विपक्ष ने प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, गृहमंत्री की नींद हराम कर दी होती, लेकिन चूंकि इसकी भनक लग गई थी कि ‘सेबी’ के वित्तीय घोटाले को लेकर कुछ इस तरह का धमाका हो सकता है, सरकार चार दिन पहले ही संसद सत्र लपेटकर ‘भाग’ निकली।

मौजूदा हालात ये है कि अडानी मोदी के पसंदीदा उद्योगपति हैं और उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। उन्हें सार्वजनिक संपत्ति कौड़ियों के मोल मिल गई। वे देश की अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े लाभार्थी हैं। सरकार ने उन्हें मुंबई की धारावी झुग्गी बस्ती के पुनर्वास का काम भी दिया। फिर मुंबई में २० मौके के भूखंड उन्हें दहेज के तौर में दिए जा रहे हैं। देश की सारी संपत्ति अडानी जमा कर रहे हैं और उस संपत्ति के असली मालिक मोदी-शाह हैं। थोड़े में, अडानी भाजपा की बेनामी संपत्ति के संरक्षक के रूप में कार्य कर रहे हैं। उन्हें देश को लूटने और उसके लिए सेबी जैसी वित्तीय नियामक संस्था को जेब में डालने का लाइसेंस भी मिल गया। इसलिए चोर और रखवाले मिलकर देश को लूट रहे हैं और जब से ईडी और सीबीआई नशे में हैं, उन्हें ये लूट नजर नहीं आती। अडानी उद्योग पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी हुए १८ महीने हो गए हैं।

अडानी ने मॉरीशस में फर्जी कंपनियां बनाकर देश का पैसा वहां घुमाया। यह एक तरह से मनी लॉन्ड्रिंग ही है। उसमें बड़ी मात्रा में टैक्स की चोरी है। इस बेईमानी के खिलाफ कार्रवाई करना ‘सेबी’ जैसी संस्थाओं की जिम्मेदारी है, लेकिन सेबी की मौजूदा प्रमुख माधवी बुच और उनके होनहार पति धवल बुच अडानी की कंपनी के पार्टनर हैं हिंडनबर्ग ने अपनी जांच से यह बात सामने रखी है। चूंकि आरोपियों की कंपनियों में बुच दंपति के वित्तीय हित जुड़े हुए थे, इसलिए देश को लूटने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। दरअसल, नई हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आते ही सेबी प्रमुख को इस्तीफा दे देना चाहिए था।

अगर वे इस्तीफा नहीं दे रहे होते तो वित्तमंत्री सीतारमण को उन्हें पदमुक्त कर देना चाहिए था। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा सार्वजनिक किए गए खुलासे के मुताबिक, ‘बुच’ दंपति की सिंगापुर और मॉरीशस में अडानी की फर्जी कंपनियों में हिस्सेदारी थी। इस जोड़े ने सिंगापुर की ‘आईपीई प्लस फंड १’ में लगभग १० लाख डॉलर का निवेश किया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह फंड अडानी ग्रुप के निदेशक ने इंडिया इंफोलाइन के माध्यम से स्थापित की थी। अडानी समूह के एक निदेशक के फंड में बुच दंपति का यह निवेश महज एक संयोग वैâसे हो सकता है? माधवी बुच की सिंगापुर की कंसल्टिंग फर्म एगोटा पार्टनर्स में भी १०० फीसदी हिस्सेदारी है। हिंडनबर्ग ने अब एक नया धमाका किया है कि बुच दंपति और अडानी के बीच वित्तीय संबंधों के चलते सेबी ने अडानी समूह के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। हालांकि, दंपत्ति वही पुराना राग आलाप रहे हैं कि ये आरोप बेबुनियाद हैं और ये उनके चरित्र को बदनाम करने की कोशिश है।

केंद्र की मोदी सरकार हमेशा की तरह मौन धारण की हुई है। यह सब बहुत गंभीर है। घोटाला उजागर होने के बाद न तो अडानी के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई और न ही अडानी के साथ वित्तीय संबंध उजागर होने के बाद सेबी की चेयरमैन को हटाया गया। जब केंद्र की सरकार चोरों की भागीदार बन जाएगी तो और क्या होगा? हमारे देश में इस समय चोरों का राज है इसे साबित करने के लिए और क्या प्रमाण चाहिए?

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