हिसाम सिद्दीकी
दुनिया जानती है कि जो भी तरक्की पजीर मुल्क इण्टर नेशनल मानिटरी फण्ड (आईएमएफ) और आलमी बैंक के कर्ज में फंसा वह न सिर्फ मआशी (आर्थिक) एतबार से गुलाम हो गया बल्कि पूरी तरह तबाह हो गया है, जिस तरह गांवों और शहरों में कुछ लोग कर्ज देने का काम यानी साहूकारी करते हैं और उनके कर्जदार कभी कर्जे से निजात नहीं पाते सूद पर सूद अदा करते रहते हैं, किसान तो अक्सर साहूकारों के कर्ज में इतना बुरा फंस जाते हैं कि खुदकुशी तक कर लेते हैं। ठीक वही हाल वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ से कर्ज लेने वाले मुल्कों का होता है। हमारे मुल्क की हालत यह हो चुकी है कि वजीर-ए-आजम मोदी किसान सम्मान के नाम पर जो छः हजार रूपए सालाना किसानों को दे रहे या गरीबों को मुफ्त गल्ला दे रहे हैं उसका पैसा भी वर्ल्ड बैंक दे रहा है। एक इत्तेला के मुताबिक भारत पर इस वक्त तकरीबन पांच सौ सत्तर (570) बिलियन डालर यानी तकरीबन बयालीस (42) लाख करोड़ रूपयों का कर्ज है। इसमें से चार लाख सत्ताइस हजार (427000) करोड़ रूपए के कर्ज 2023 के आखिर तक उससे पहले 2022 में अट्ठारह लाख पच्चासी हजार करोड़ का कर्ज लौटाना है। तीन लाख सत्तासी हजार (387000) करोड़ 2024 में और पन्द्रह लाख छब्बीस हजार पांच सौ अस्सी (1526580) करोड़ 2025 में अदा करना है क्या भारत इस हैसियत में है कि इतना मोटा कर्ज 2025 तक वापस कर सके, अगर नहीं तो कर्ज अदाएगी के लिए और कर्ज ही लेना पड़ेगा, सूद पर सूद अलग से देना होगा।
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी गुजिश्ता तीन सालों यानी 2019 से मुसलसल यौम-ए-आजादी यानी पन्द्रह अगस्त को लाल किले की फसील (प्राचीर) से एलान करते आ रहे हैं कि आने वाले साल में हमारी सरकार नौजवानों का मुस्तकबिल बनाने वाली स्कीमों पर एक लाख और उससे भी ज्यादा की रकम खर्च की जाएगी। इस बार भी जब उन्होने अपना यही एलान तीसरी बार दोहराया तो सोशल मीडिया में इस पर उन्हें झूटा बताने की मुहिम सी चल पड़ी लोगों ने 2019, 2020 और 2021 के उनके तीनों साल के बयानात को इकट्ठा करके सोशल मीडिया पर चलाया और कहा कि वजीर-ए-आजम तो झूट बोलते रहे हैं वह तीन सालों से एक ही एलान दोहरा रहे हैं लेकिन अमली तौर पर कुछ कर नहीं पा रहे हैं। देश के जो मआशी हालात हैं वजीर-ए-आजम मोदी खुद भी उन हालात से बखूबी वाकिफ हैं। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि वह इतनी मोटी रकम का बंदोबस्त नहीं कर सकते इसके बावजूद बार-बार एलान इसलिए कर देते हैं कि फर्जी फेंकने की उनकी आदत सी पड़ चुकी है। वह इस किस्म के एलान इसलिए करते रहते हैं कि ऐसे एलानात मीडिया में हफ्तों तक छाए रहें और आम लोगों का ध्यान असल मुद्दों से भटका रहे। दूसरे इस किस्म के एलानात करके वह आम हिन्दुस्तानियों में यह भ्रम भी पैदा करने की कोशिशें करते रहते हैं कि देश के सामने कोई मआशी मसला नहीं है हमारे पास खूब पैसा है।
भारत कोई ऐसा भी गरीब मुल्क नहीं है जैसे रवाण्डा और अफ्रीका के कई मुल्क हैं। जो वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के चंगुल में फंसकर तबाह हो गए। तकरीबन एक सौ चालीस करोड़ आबादी वाला भारत कंज्यूमर सामानों के लिए न सिर्फ एक बहुत बड़ा बाजार है बल्कि साठ फीसद यूथ होने की वजह से यूथ पावर सेण्टर भी है। इसीलिए आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक ने इतना मोटा कर्ज दे रखा है। उनकी दूसरी दिलचस्पी यह है कि आज भारत पर जो पार्टी राज कर रही है उसपर दबाव डालकर यह दोनों इदारे अपनी मर्जी मुताबिक रिफार्म आसानी से लागू करा लेते है। किसानी का मामला हो, मजदूरों का हो, तालीम और मेडिकल खिदमात को बड़े पैमाने पर निजी हाथों में देने की बात हो हर मामले में तो मोदी सरकार ने बाहरी मआशी ताकतों के इशारे पर काम किया है। आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक दोनों ही चाहते हैं कि भारत में कैपिटलिस्ट सिस्टम पूरी तरह से हावी हो जाए दबाव में मोदी सरकार भी इसी सिम्त (दिशा) मे काम करने लगी है। वर्ल्ड बैंक तो साफ तौर पर कहता है कि भारत जैसे मुल्क को छोटे-छोटे किसानों की नहीं खेतिहर मजदूरों की जरूरत है।
नरेन्द्र मोदी की गरीब कल्याण स्कीम हो जनधन स्कीम हो बैंकों में जीरो बैलेंस पर भी खाता खुलवाने की स्कीम हो मुफ्त में पांच किलोग्राम गल्ला देने की स्कीम हो सबकुछ तो वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के इशारे पर हो रहा है। चूंकि हम इन दोनों इदारों के बहुत बडे़ कर्ज से दबे हुए हैं इसीलिए उनकी हर शर्त मानते चले जा रहे हैं। क्या रोजगार देने के बजाए पांच-पांच किलोग्राम गल्ला और किसानों को पांच-पांच सौ रूपया महीना देकर मोदी सरकार देश के तकरीबन अस्सी करोड़ लोगों को भीक जैसी मदद पर जिंदगी गुजारने का आदी नहीं बना रही है? तारीख गवाह है कि अंग्र्रेजों ने जब भारत जैसे बडे़ मुल्क में चाय फरोख्त करने का इरादा किया तो शुरू में उन्होंने चौराहों पर मुफ्त चाय पिलाने का सिलसिला शुरू कर दिया था, कुछ ही दिनों में लोग चाय के आदी हो गए कुछ लोग फैशन में चाय पीने लगे और अंग्रेजों की लाखों करोड़ों की तिजारत चल पड़ी आज हालत यह है कि छोटे-छोटे बच्चे भी दूध की जगह चाय पीना ही पसंद करते हैं। ठीक वैसा ही हाल पांच-पांच किलोग्राम गल्ला और पांच-पांच सौ रूपए महीने की सरकारी मदद का है। जनधन खाते खुलवाने का वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ का मकसद यही है कि अगर कभी लगे कि सरकार पैसा तकसीम करने का काम ठीक से नहीं कर रही है तो वह सीधे यह काम शुरू कर दें।
वैसे तो भारत में 1991 में पीवी नरसिम्हाराव की सरकार के जमाने से ही उस वक्त के फाइनेंस मिनिस्टर मनमोहन सिंह के जरिए ही वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ ने पैर फैलाना शुरू कर दिया था। हैरतनाक बात यह है कि जब खुद मनमोहन सिंह दस साल तक मुल्क की सत्ता पर काबिज रहे उस दौरान वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ का दखल मुल्क में ज्यादा फैल नहीं सका लेकिन 2014 में नरेन्द्र मोदी के आने के बाद से तो जैसे इन दोनों मआशी इदारों का कब्जा ही भारत की तमाम पालीसियों पर हो चुका है। आम शिकायत है कि नोटबंदी से किसान कानूनों तक वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने जितने भी फैसले किए उनकी कानों कान खबर किसी को नहीं होने दी अपोजीशन पार्टियों की बात ही क्या। मोदी वजारत में शामिल वजीरों तक को उनके फैसलों की खबर तभी हो पाती है जब फैसलों का एलान हो जाता है। इसकी भी अस्ल वजह यही है कि फैसले की कार्रवाई के दौरान नरेन्द्र मोदी किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगने देना चाहते कि फैसला किसके कहने और किसके दबाव में लिया जा रहा है।
मौजूदा सरकार वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के इशारे पर क्या कुछ नहीं करती जा रही है वर्ल्ड बैंक जिस तरह का भारत चाहता है वह पूंजी की बुनियाद पर होना चाहिए। उसमें मजदूरों और किसानों की कोई आवाज नहीं होनी चाहिए इसलिए कि किसान सब्सिडी मांगते हैं और वर्ल्ड बैंक अमरीका के अलावा किसी भी दूसरे मुल्क में सब्सिडी दिए जाने के हक में नहीं है। यही हाल मजदूरों का भी है। मजदूरों को गुलाम बनाकर रखने में ही यह दोनों मआशी इदारे यकीन करते हैं। मोदी सरकार ने मजदूरों से मुताल्लिक कानून (लेबर लाज) में तरमीम करके तमाम अख्तियारात थैलीशाहों और फैक्ट्री या कम्पनी मालिकान को यूं ही नहीं दे दिए हैं। इसके लिए भी आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक का ही दबाव था। अब किसी भी कारखाने या फैक्ट्री के मजदूर अपने किसी भी जायज हकूक के लिए हड़ताल नहीं कर सकेंगे। मजदूरों के काम के घंटे भी फैक्ट्री मालिकान ही तय कर रहे है और जब जितनी तादाद में चाहे मजदूरों की छटनी कर दें। इस कार्रवाई के खिलाफ मजदूर हड़ताल भी नहीं कर सकते। इसपर जोर नहीं दे सकते कि वह आठ-दस घंटे ही काम करेंगे।
अब सरकार ने हाइवे, रेलवे, सिविल एविएशन, एयरपोर्ट, बंदरगाह, स्टेडियम, रेलवे लाइन्स वगैरह को मोनेटाइजेशन के नाम पर प्राइवेट हाथों में सौंपने का एलान कर दिया है। वजीर फाइनेंस निर्मला सीतारमण के मुताबिक इन तमाम चीजों और इदारों को प्राइवेट हाथों में देकर सरकार छः लाख करोड़ रूपए कमाएगी। यह कार्रवाई भी आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक के इशारे पर हो रही है। सरकार की इस कार्रवाई से दो सवाल उठते हैं एक यह कि अगर आप देश के लिए कोई जायदाद बना नहीं पा रहे हैं तो बनी-बनाई जायदादों को इस तरह प्राइवेट हाथों में सौंपने का आपको कौन सा अखलाकी (नैतिक) हक हासिल है। दूसरा यह कि सरकारी जायदादों और पब्लिक सेक्टर निजी हाथों में सौंप कर इस वक्त छः लाख करोड़ रूपए इकट्ठा कर लेंगे फिर जब यह पैसा खर्च हो जाएगा तब क्या बेचेंगे तब तक तो वर्ल्ड बैंक के इशारे पर आपको बेचने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं फिर क्या देश ही बेचेंगे। इतने पैसो से तो उतनी आमदनी भी नहीं होगी जितनी कर्ज की किस्त आपको 2022 मे ही लौटानी है। इन तमाम कार्रवाइयों से ऐसा लगता है कि 2024 में आने वाली किसी भी नई सरकार के लिए वजीर-ए-आजम मोदी बहुत बड़ी मआशी (आर्थिक) परेशानी पैदा कर रहे हैं।
लेखक लखनऊ के प्रसिद्ध उर्दू अखबार जदीद मरकज के संपादक हैं