दस मानवाधिकार संगठनों ने कहा कि भारत का सरकारी तंत्र सरकार की नीतियों और कार्रवाइयों की आलोचना के लिए पत्रकारों और ऑनलाइन आलोचकों को अधिकाधिक निशाना बना रहा है, जिसमें आतंकवाद-निरोधी और राजद्रोह कानूनों के तहत मुकदमा चलाना शामिल है.
भारत सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए और आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए मनगढ़ंत या राजनीति से प्रेरित आरोपों में हिरासत में लिए गए तमाम पत्रकारों को रिहा कर देना चाहिए. साथ ही, पत्रकारों को निशाना बनाना और स्वतंत्र मीडिया के मुंह पर ताले लगाना बंद करना चाहिए.
समूहों ने कहा कि सरकारी तंत्र द्वारा बड़े पैमाने पर असहमति को कुचलने के साथ-साथ पत्रकारों को निशाना बनाने की कार्रवाई ने हिंदू राष्ट्रवादियों को भारत सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों स्तरों पर बेखौफ़ होकर धमकाने, हैरान-परेशान करने और दुर्व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया है.
बयान जारी करने वाले संगठन हैं – कमिटि टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स, फ्रीडम हाउस, पेन अमेरिका, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, इंटरनॅशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स, सिविकस, एक्सेस नाउ, इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच.
मीडिया की आज़ादी पर बढ़ते प्रतिबंधों के बीच, भारतीय सरकारी तंत्र ने पत्रकारों को आतंकवाद और राजद्रोह के झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया है, आलोचकों एवं स्वतंत्र समाचार संगठनों को नियमित रूप से निशाना बनाया है, जिसमें उनके कार्यस्थलों पर छापेमारी भी शामिल है. पत्रकार और ऑनलाइन आलोचकों के समक्ष सरकार की आलोचना करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और आईटी नियमावली, 2021 के तहत मुकदमा दर्ज होने का भी खतरा है. पत्रकारों को निशाना बनाने के लिए भारतीय सरकारी तंत्र इजरायल निर्मित स्पाइवेयर पेगासस के इस्तेमाल में संलिप्त रही है. इसके अलावा, सरकार द्वारा बार-बार इंटरनेट बंद करने से पत्रकारों के कार्य में बाधा आती है, जिसमें सूचनाओं तक ऑनलाइन पहुंच और इनका प्रसार शामिल है.
मीडिया की आज़ादी पर ये प्रतिबंध ऐसे समय में आए हैं जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार नागरिक समाज पर कार्रवाई तेज कर रही है और वह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, छात्रों, सरकार की आलोचना करने वालों और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए राजद्रोह, आतंकवाद-निरोधी और राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का इस्तेमाल कर रही है. समूहों ने कहा कि अल्पसंख्यक समूहों के पत्रकारों और जम्मू-कश्मीर में कार्यरत पत्रकारों पर खतरा ज्यादा है.
अप्रैल 2022 में, दिल्ली में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग कर रहे कम-से-कम पांच पत्रकारों पर हमला किया गया. इसके बाद दिल्ली पुलिस ने इनमें से एक पत्रकार मीर फैसल पर एक ट्वीट के जरिए नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए आपराधिक जांच शुरू की. मीर फैसल ने अपने इस ट्वीट में आरोप लगाया था कि इस कार्यक्रम में शामिल लोगों ने उन पर और एक फोटो पत्रकार पर इस कारण हमला किया क्योंकि वे मुसलमान हैं.
मार्च 2022 में, मुंबई में हवाई अड्डे के अधिकारियों ने प्रख्यात मुस्लिम महिला पत्रकार और भाजपा की मुखर आलोचक राणा अय्यूब को एक पत्रकारिता कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए लंदन जाने से रोक दिया. अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी की चल रही जांच के कारण ऐसा किया, अय्यूब ने इन आरोपों से इंकार किया है. स्वतंत्र संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आरोप लगाया है कि भारतीय अधिकारी अय्यूब को वर्षों से परेशान कर रहे हैं. सरकारी समर्थकों और हिंदू राष्ट्रवादी ट्रोल्स ने सोशल मीडिया पर अय्यूब को बार-बार गालियां और धमकी दी हैं.
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने पाया कि अय्यूब सहित कम-से-कम 20 महिला मुस्लिम पत्रकारों को अपमानित करने, नीचा दिखाने और डराने-धमकाने के लिए उनके नाम फर्जी “नीलामी” ऐप पर डाल कर उन्हें “बिक्री हेतु” बताया गया. इन सभी पत्रकारों ने अपनी आलोचनात्मक रिपोर्ट्स में यह बताया है कि कैसे भाजपा सरकार की नीतियों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रभावित किया है. भारत में अनेक महिला पत्रकारों, खास तौर से जो सरकार की आलोचना करती हैं, को सोशल मीडिया पर बढ़ती धमकियों का सामना करना पड़ रहा है जिसमें बलात्कार और हत्या की धमकी शामिल है. ऐसी धमकियां अक्सर खुद को बीजेपी समर्थक बताने वाले सोशल मीडिया यूजर्स देते हैं.
एक अन्य मुस्लिम पत्रकार सिद्दीकी कप्पन अक्टूबर 2020 से जेल में बंद हैं, उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस ने आतंकवाद, राजद्रोह और समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने के आधारहीन आरोपों में गिरफ्तार किया था. कप्पन को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वह एक युवा दलित महिला के सामूहिक बलात्कार और हत्या, जिसके विरोध में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए, के मामले की रिपोर्ट करने के लिए नई दिल्ली से उत्तर प्रदेश के हाथरस जा रहे थे.
भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में सरकारी तंत्र ने सरकार की आलोचना करने वाली सामग्री प्रकाशित करने और सोशल मीडिया पोस्ट के लिए पत्रकारों के खिलाफ बार-बार झूठे आरोप लगाए हैं. 2017 से, भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ के राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद, अधिकारियों ने 66 पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए हैं. कमिटि अगेंस्ट असाल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स की फरवरी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, अन्य 48 पत्रकारों पर हमले किए गए. हिंदी मीडिया के लिए रिपोर्टिंग करने वाले छोटे शहरों और गांवों में पत्रकारों के समक्ष सरकारी तंत्र द्वारा निशाना बनाए जाने और उन पर मुकदमा चलाने का और भी अधिक जोखिम होता है.
जम्मू और कश्मीर में, सरकार ने अगस्त 2019 में राज्य की विशेष स्वायत्त स्थिति रद्द करने और इसे दो केंद्रशासित क्षेत्रों में बांटने के बाद अपनी कठोर कार्रवाई तेज कर दी है. तब से, कश्मीर में कम-से-कम 35 पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग के कारण पुलिस पूछताछ, छापे, धमकियों, हमले, आवाजाही की आज़ादी पर प्रतिबंध या मनगढ़ंत आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा है. सरकारी तंत्र ने पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी तेज कर दी है और उनके सेल फोन जब्त कर लिए हैं. जून 2020 में, सरकार ने नई मीडिया नीति की घोषणा की जिससे अधिकारियों को क्षेत्र में समाचारों को सेंसर करने के ज्यादा अधिकार मिल गए हैं.
कश्मीर में सरकारी तंत्र पत्रकारों को जम्मू और कश्मीर जन सुरक्षा कानून के तहत सुरक्षात्मक नजरबंदी में ले रहा है. यह कानून बिना सबूत और पूरी न्यायिक समीक्षा के बगैर लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में रखने की अनुमति देता है. 2022 में, सरकार ने जन सुरक्षा कानून के तहत फहद शाह, आसिफ सुल्तान और सज्जाद गुल को फिर से तब गिरफ्तार कर लिया, जब उन्हें उनकी पत्रकारिता के खिलाफ दायर अन्य मामलों में जमानत दे दी गई थी.
कश्मीर में पत्रकारों को क्षेत्र में सरकार द्वारा बार-बार इंटरनेट बंद किए जाने के कारण भी अपनी रिपोर्टिंग के लिए संघर्ष करना पड़ा है. एक्सेस नाउ के अनुसार, भारत ने 2021 में कम-से-कम 106 बार इंटरनेट बंद किया, इससे यह “लगातार चौथे साल दुनिया में इंटरनेट पर सबसे ज्यादा पाबंदी लगाने वाला देश” बन गया है. भारत के भीतर, जम्मू और कश्मीर सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहा, जहां कम-से-कम 85 बार इंटरनेट बंद किया गया.
सरकार मानवाधिकारों में कटौती करने और ऑनलाइन मंचों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने के लिए प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक इस्तेमाल कर रही है. फरवरी 2021 में, भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियमावली प्रकाशित की, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार को खतरे में डालती है. ये नियम सरकार को बिना किसी न्यायिक जांच-पड़ताल के ऑनलाइन सामग्री हटाने के लिए तुरंत मजबूर करने का अधिकार देते हैं. वे ऑनलाइन गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण एन्क्रिप्शन को भी कमजोर करते हैं, जिसका नियमित रूप से इस्तेमाल पत्रकार अपने स्रोतों और खुद को सुरक्षित रखने के लिए करते हैं. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा कि नियमावली ने मीडिया की स्वतंत्रता को खोखला कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र के तीन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि नियमावली अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों के अनुरूप नहीं है.
पेगासस प्रोजेक्ट ने पाया कि लीक हुई सूची में 40 से अधिक ऐसे भारतीय पत्रकारों के नाम थे जो निगरानी हेतु संभावित निशाने पर थे. भारत सरकार ने इन आरोपों की जांच के प्रयासों को बार-बार बाधित किया है. समूहों ने कहा कि यह बेखौफ़ निगरानी का माहौल तैयार करता है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता पर खौफनाक साया मंडराता रहता है.
समूहों ने भारत सरकार से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने का आग्रह किया, जिसके तहत आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए गिरफ्तार पत्रकारों को तुरंत रिहा करना, इंटरनेट पर व्यापक और अंधाधुंध पाबंदी समाप्त करना, जम्मू और कश्मीर की मीडिया नीति वापस लेना और सूचना प्रौद्योगिकी नियमावली को निरस्त करना शामिल है.
समूहों ने कहा, “सरकार को पत्रकारों और आलोचकों को धमकी देने और उन पर हमला करने के आरोपों की त्वरित, गहन, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करनी चाहिए, साथ ही इस जांच के दायरे में दोषी सरकारी अधिकारियों को भी लाना चाहिए. पत्रकारों को अपना काम करने के लिए अपनी स्वतंत्रता और जीवन को जोखिम में डालने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए.”