अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के जवाबी शुल्क ने जहां दुनियाभर में तमाम देशों की चिंता बढ़ा दी है, वहीं इससे भारत में रबर उत्पादक भी अछूते नहीं हैं। देश के रबर उत्पादक अपने उत्पादन में कुछ कटौती करने की तैयारी कर रहे हैं। व्यापार आंकड़ों से पता चलता है कि ‘वल्केनाइज्ड’ रबर निर्यात के लिए अमेरिका अब तक भारत का सबसे बड़ा बाजार है। वित्त वर्ष 2024 में, भारत ने वल्केनाइज्ड रबर श्रेणी में करीब 60.2 करोड़ डॉलर मूल्य का निर्यात किया, जिसमें अमेरिका का योगदान करीब 22 फीसदी या 13.240 करोड़ डॉलर था।

ऑल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष शशि सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘मुख्य चिंता यह है कि तुर्की पर आयात शुल्क सिर्फ 10 फीसदी लगाया गया है, जो अमेरिकी बाजार में भारत का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी है।’ उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह होगा कि अमेरिकी बाजारों में तुर्की से ज्यादा रबर आएगा, जबकि हमारा निर्यात महंगा हो जाएगा।
अधिकारी ने कहा, ‘अमेरिका में हमारे कुछ बड़े खरीदार हमें कुछ समय के लिए उत्पादन रोकने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि पहले मौजूदा स्टॉक खत्म करना चाहते हैं।’ अमेरिकी टैरिफ की वजह से कई अन्य क्षेत्रों की तरह घरेलू रबर उद्योग में भी संकट पैदा हो गया है।
कृषि में समुद्री भोजन जैसे कई अन्य क्षेत्रों को टैरिफ की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। किसानों के संगठन टैरिफ में वृद्धि के खिलाफ विरोध करने के लिए कमर कस रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (जिसने कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर सालभर तक किसानों के विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया था) ने अपने आगामी भविष्य को ध्यान में रखते हुए दिल्ली में 21 अप्रैल को जनरल काउसिल के बैठक का आह्वान किया है। सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में किसानों से जुड़े मुद्दों के अलावा जवाबी शुल्क के प्रभाव तथा अन्य संबंधित घटनाक्रम पर भी चर्चा की जाएगी।
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