खेलों को सामाजिक विकास के आइने से भी देखा जाता है। ओलिंपिक खेलों के माध्यम से देश अपनी आर्थिक और सामाजिक प्रगति को शोकेस करते हैं। एशिया में केवल जापान, दक्षिण कोरिया और चीन ने ओलिंपिक खेलों को आयोजित किया है और तीनों ने इस मौके का इस्तेमाल अपनी आर्थिक प्रगति को दुनिया के सामने रखने के लिए किया।
खेलों को आर्थिक-सामाजिक विकास का संकेतक मानें तो अभी तक हमारी बहुत सुन्दर तसवीर नहीं है। दूसरी ओर चीनी तसवीर दिन-पर-दिन बेहतर होती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खेलों में दिलचस्पी ध्यान खींचती है। हाल में भारत में हुए विश्व कप क्रिकेट के फाइनल में उनकी उपस्थिति को राजनीतिक रंग दे दिया गया, पर सच यह है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में असाधारण प्रदर्शन करने वाले भारतीय खिलाड़ियों से वे सीधे फोन पर बात करते रहे हैं।
खेलो इंडिया
भारत सरकार का ‘खेलो इंडिया’ कार्यक्रम खेल के महत्व को रेखांकित करता है। खेलों का आयोजन आर्थिक प्रगति को शोकेस करता है, और खेलों में भागीदारी सामाजिक दशा को बताती है। खासतौर से स्वास्थ्य और अनुशासन को। श्रेष्ठ राजनीति जागरूक समाज की देन है। खेल बेहतर समाज बनाते हैं।
2024 के जुलाई-अगस्त में होने वाले पेरिस ओलिंपिक में भारतीय खेलों की परीक्षा होगी। तोक्यो में हुए पिछले ओलिंपिक में भारत ने सात पदक हासिल किए थे, जो अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल के साथ एथलेटिक्स में पदकों का सूखा खत्म किया। नीरज भी खेल मंत्रालय के ‘टार्गेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम’ के लाभार्थी हैं।
ज़मीन से जुड़े भारत के सितारे
जीवन के हरेक क्षेत्र में स्वदेशी प्रतिभाएं सामने आ रही हैं। पिछले साल एशियाड में कुल मिलाकर 1593 मेडल जीते गए, जिनमें से 107 जीतकर भारत चौथे नंबर पर रहा। साल 2018 में हम 70 मेडल जीतकर आठवें स्थान पर रहे थे। दिल्ली के एक अखबार ने 107 मेडल जीतने वाले 256 खिलाड़ियों की आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि की पड़ताल की, तो पता लगा कि ज्यादातर खिलाड़ी गांवों और कस्बों से आते हैं। ज्यादातर के परिवार दिहाड़ी कामगारों, छोटे दुकानदारों या किसानों के हैं।