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यूपी में बिगड़ ना जाये इंडिया का समीकरण

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कुमार विजय

पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी हैं। ज़्यादातर राज्यों में चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस है। इसके बीच कुछ स्थानीय पार्टियां भी या तो इन पार्टियों के साथ गठबंधन में हैं या फिर स्वतंत्र रूप से अपने होने की अर्थवत्ता साबित करने की कोशिश कर रही हैं। कयास लगाए जा रहे थे कि यह चुनाव इंडिया बनाम एनडीए होगा और लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में इसे देखा जाएगा पर इंडिया गठबंधन की दो सबसे महत्वपूर्ण पार्टियां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से एक दूसरे पर पलटवार करती दिख रही हैं उससे साफ दिख रहा है कि इंडिया गठबंधन भाजपा को हराने के जिस मंसूबे के साथ बना है उस मंसूबे के साथ लोकसभा चुनाव तक इसका बने रहना आसान नहीं होगा।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को उम्मीद थी कि मध्यप्रदेश चुनाव में भी इंडिया गठबंधन के तहत सीटों के बँटवारे पर बात होगी और जिन कुछ विधानसभाओं में समाजवादी पार्टी का आधार विकसित हुआ है या जहां से पिछले चुनाव में उनके प्रत्याशियों ने कांग्रेस से ज्यादा मत प्रतिशत हासिल किया था वहाँ समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को टिकट दिया जाय। फिलहाल इस गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव और कांग्रेस के दो नेताओं, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा दिग्विजय सिंह  के बीच लंबी वार्ता भी हुई। जिसे लेकर अखिलेश यादव ने बाद में कहा भी था कि इंडिया गठबंधन की मीटिंग में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने रात-रात भर वार्ता की। मध्यप्रदेश में कहाँ, किस सीट पर सपा जीती, कहां नंबर दो पर रही यह आंकड़ा लेकर भरोसा दिया कि 6 सीटों पर विचार करेंगे। इसके बावजूद सपा को एक भी सीट नहीं दी।

अखिलेश यादव जहाँ मध्यप्रदेश में गठबंधन ना होने को लेकर कांग्रेस से नाराज थे वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय के बयान ‘मध्यप्रदेश में सपा की कोई औकात नहीं है’ सुनकर आपे से बाहर हो गए और प्रेस कान्फ्रेंस के माध्यम से कह दिया कि कांग्रेस के ‘चिरकुट नेता’ इस मामले में बयानबाजी ना करें। मध्य प्रदेश में गठबंधन न होने और उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा लगातार गठबंधन की स्थितियों पर बयान देने की वजह से सपा और कांग्रेस के बीच रार बढ़ती जा रही है।

अब स्थिति यह हो चुकी है कि चुनाव भले ही मध्य प्रदेश में हो पर तनाव उत्तर प्रदेश में ज्यादा दिख रहा है। अखिलेश यादव ने कांग्रेस को धमकी भरे लहजे में कह दिया है कि मध्य प्रदेश में हमारे साथ जैसा व्यवहार किया जाएगा वैसा ही व्यवहार हम उत्तर प्रदेश में करेंगे। अखिलेश यादव ने साफ कह दिया है कि यदि गठबंधन अभी राज्य स्तर पर नहीं हुआ तो आगे भी राज्य स्तर पर नहीं होगा। फिलहाल अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में अपने नौ प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी है। अखिलेश यादव के अकेले ही चुनावी समर में आ जाने से मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस को अंदरखाने यह डर सता रहा है कि कहीं अखिलेश यादव के विरोध से पार्टी के साथ खड़ा पिछड़ा वर्ग कांग्रेस से दूरी ना बना ले। यह स्थिति भले ही पूरे मध्यप्रदेश में देखने को ना मिले पर यह तो तय है कि जिन विधानसभाओं में समाजवादी पार्टी का आधार है वहाँ कांग्रेस को नुकसान होना तय है। दूसरी ओर कांग्रेस को राज्य में यह कहने में भी मुश्किल आएगी कि यह चुनाव इंडिया बनाम एनडीए का है।

अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन पर साफ-साफ कह दिया है कि अगर यह सिर्फ लोकसभा में है, तो इस पर विचार किया जाएगा। कांग्रेस जैसा व्यवहार सपा के साथ करेगी, उनके साथ वैसा ही किया जाएगा।

अजय राय ने भी अखिलेश यादव चिरकुट नेता के बयान को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि मैं एक आम आदमी हूँ, वह जो शब्द चाहें इस्तेमाल कर सकते हैं। मैं कांग्रेस का एक छोटा सा कार्यकर्ता हूँ। वह जो भी शब्द चाहें मेरे लिए प्रयोग कर सकते हैं।

यह मामला अभी फिलहाल भले ही छोटा सा दिख रहा है पर यह इंडिया गठबंधन के भविष्य की वह झलक भी दिखा रहा है कि भविष्य में इस गठबंधन को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यदि यह तकरार अभी नहीं थमी तो निश्चित रूप से मध्य प्रदेश चुनाव में भी कांग्रेस और सपा के बीच नकारात्मक बयानबाजी बढ़ेगी और 2024 के साझे पर बड़ा सवाल खड़ा करेगी।

मध्य प्रदेश में यदि दोनों पार्टियां एक दूसरे पर हमला करेंगी तो अगले ही साल होने वाले लोक सभा चुनाव में जनता के बीच यदि वह गठबंधन के तहत जाएँगे तो जनता भी उनसे तीखे सवाल करेगी। दूसरी तरफ भाजपा जिस तरह से लगातार इंडिया गठबन्धन पर सवाल उठाती रही है और हमला करती रही है, इस टूट या फिर बिखराव से उसे गठबंधन की जमीनी स्थिति पर हमला करने का एक और मौका मिल जाएगा।

इससे इतर कांग्रेस प्रदेश ध्यक्ष अजय राय इंडिया गठबंधन के बावजूद लगातार यह कहते दिख रहे हैं कि उनकी पार्टी लोकसभा की पूरी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। जबकि वह यह जानते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को महज दो सीटें मिली थी और लोकसभा में उत्तर प्रदेश से उनकी एक मात्र प्रतिनिधि सोनिया गांधी ही हैं। विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोट प्रतिशत सिर्फ 6 फीसदी ही बचा है जबकि गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में 32 फीसदी की वोट हिस्सेदारी हासिल कि थी। इसके अलावा प्रदेश की दो छोटी किन्तु महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रीय लोक दल और अपना दल (कमेरावादी) समाजवादी पार्टी के साथ पहले से ही गठबंधन में हैं। ऐसे में यदि गठबंधन में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को सीटें देने से इंकार कर दिया तो कांग्रेस काफी मुश्किल में आ सकती है। देश की सबसे ज्यादा लोकसभाओं वाल राज्य उत्तर प्रदेश ही है और अगर किसी भी वजह से विपक्ष यहाँ सत्ता पक्ष की सीटों में सेंध लगाने में नाकायमयाब होता है तो विपक्ष की उम्मीदें धराशायी हो सकती हैं।

ऐसे में कांग्रेस की सपा पर बयानबाजी इंडिया गठबंधन के रास्ते का रोड़ा तो बनेगी ही साथ ही साथ विपक्ष की उस मुहिम को भी करारी चोट लग सकती है जिसके दम पर विपक्ष एनडीए के हाथ से सत्ता छीनने की फिराक में है। जिस तरह से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेता अजय राय और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के बीच जुबानी जंग जारी है उसे अगर गठबंधन के नेताओं ने समय रहते कंट्रोल नहीं किया तो यह इंडिया के उस मंसूबे पर पानी फेरने में अहम भूमिका अदा करेगा जिसके बल पर सियासत की शतरंज पर सत्ता हासिल करने की बिसात बिछाई जा रही है।

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