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भारतीयों का सिर ऊंचा करने वाला भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857

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,मुनेश त्यागी 

      भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 10 में 1857 को मेरठ से शुरू हुई थी। यह संग्राम अचानक नहीं हुआ था बल्कि यह एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था और इसकी तैयारी एक सामूहिक संचालन के तहत 1854 से ही शुरू हो गई थी। भारतीय इतिहास में यह पहली दफा हुआ था कि देशी फौजों ने अपने यूरोपीय अफसरों को मार डाला। हिंदू और मुस्लिम आपसी घृणा और मतभेदों को छोड़कर अपने एक ही मालिक के खिलाफ हो गए।

      यह बगावत सिर्फ कुछ स्थानों तक ही सीमित नहीं थी बल्कि यह पूरे भारत में फैली हुई थी। कार्ल मार्क्स ने 14 अगस्त 1857 को लिखें अपने लेख में कहा था कि “जिसे अंग्रेज फौजी बगावत समझ रहे हैं वह सचमुच राष्ट्रीय विद्रोह है।” समाजवाद के प्रवर्तक मार्क्स ने इसे भारत का राष्ट्रीय विद्रोह कहकर इसका स्वागत किया था। मार्क्स ने इस ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए भारतीय जनता की क्रांति तक कहा था और अर्नेस्ट जोंस ने 5 सितंबर 1857 को पीपल्स पेपर में लिखे अपने लेख में कहा था कि “विश्व के इतिहास में जितने भी विद्रोहों की चेष्टा की गई है, यह एक सबसे बड़ा न्यायपूर्ण, भद्र और आवश्यक विद्रोह है। ब्रिटेन में चार्टिस्ट आंदोलन के नेता अर्नेस्ट जोंस ने इसे एक सबसे न्याय पूर्ण और आवश्यक विद्रोह कहकर इसका स्वागत किया था और अपने देशवासियों से इसका समर्थन करने की अपील की थी।

      दरअसल यह भारत का पहला सशस्त्र राष्ट्रीय महाविद्रोह था। यह भारत की स्वाधीनता के लिए पहला राष्ट्रीय संग्राम था। इस विद्रोह के सिपाही किसान, कारीगर, राजा रानी, नवाब बेगम, तालुकदार, जमींदार, सेठ साहूकार, हिंदू मुसलमान आदि विभिन्न वर्गों के और धर्म के लोग संग्राम के मैदान में उतरे थे। इन सब का प्रधान प्रमुख उद्देश्य भारत से फिरंगियों को मार भगाना था। उनके चंगुल से देश को आजाद करना था। इस विद्रोह की प्रमुख शक्ति अंग्रेजों की सेना के देसी सिपाही और किसान थे। सिपाही इन्हीं किसानों की संतान थे। वे खुद भी किसान थे।

      इस आंदोलन के प्रमुख कारण अंग्रेजों की लूट और धन बटोर कर हिंदुस्तान से ब्रिटेन ले जाने की लालसा थी। अंग्रेज किसानों और कारीगरों को बेरहमी से लूटते थे। जमीन का लगान बढ़ा दिया था। उनकी आमदनी आधी कर दी थी। राजा महाराजाओं की जागीरें छीन ली थीं, उनका लगान बढ़ा दिया था। लगान जबरदस्ती वसूला जाता था। बहुत सारे राजाओं के राज्य हड़प लिए गये थे। उनके उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया था। इस प्रकार इस आंदोलन के प्रमुख कारण अंग्रेज की लूट की नीतियां, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक दखलंदाज़ी थी।

    इस महासंग्राम की युद्ध संचालन समिति का निर्माण किया गया था जिसमें 50% हिंदू और 50% मुसलमान थे। इस महा विद्रोह के प्रणेता नाना साहब और उनके मंत्री अजीमुल्ला खान को बनाया गया था। इस सशस्त्र संघर्ष को कामयाब बनाने के लिए अजीमुल्ला खान को विदेशों में भेजा गया था। उन्होंने रूस, फ्रांस, इंग्लैंड, फारस, तुर्की और क्रीमिया की यात्राएं कीं। अजीमुल्ला खान की रिपोर्ट पर बिठूर में विद्रोह की योजना तैयार की गई थी इस योजना के बाद, नाना साहब ने देश के राजाओं और नवाबों को चिट्ठियां लिखीं । इस योजना में बहादुर शाह जफर, बेगम जीनत महल, नवाब वाजिद अली, मौलवी अहमद शाह, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, रंगो बापूजी, खान बहादुर खान, बाबू कुंवर सिंह आदि शामिल हुए जिसमें तय किया गया कि 31 मई 1857 दिन रविवार को पूरे भारत में एक साथ विद्रोह करने का निर्णय लिया गया।

      इस विद्रोह को सफल बनाने के लिए नाना साहब और अजीमुल्ला खान ने विभिन्न शहरों की “तीर्थयात्राएं” की और उन्हें संग्राम में शामिल होने की योजना बताई। विद्रोह के गुप्त दूत “कमल के फूल” और “रोटियां” थीं। कमल के फूल हिंदुस्तानी पलटनों में और रोटियां गांव के किसानों में घुमाई जाने लगीं यह वीडियो हा यह विद्रोह निश्चित तारीख से पहले फूट पड़ा और मेरठ से क्रांति शुरू हो गई मेरठ में 85 सैनिकों को कठोर सजा दी गई थी जिससे मेरठ के सैनिक भड़क गए और उन्होंने क्रांति शुरू कर दी अंग्रेजों को मार डाला इन सैनिकों में 53 मुस्लिम और 32 हिंदू सैनिक शामिल थे इसके बाद यह क्रांति धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई मगर क्रांति के निश्चित समय से पहले से शुरू हो जाने से अंग्रेजों को इसे दबाने का मौका मिल गया क्रांतियां होती रही और अंग्रेजी से दबाते चले गए और अंत में इस क्रांति को हर का मुंह देखना पड़ा।

     इस महा विद्रोह के कुछ गद्दार भी थे जिनकी गद्दारी के कारण अंग्रेज इस महा विद्रोह को दबाने में सफल हो गए। इनमें बहादुर शाह जफर के समाधि इलाही बख्श, जियाजी राव सिंधिया, जगन्नाथ सिंह, सालार जंग, कुछ गोरखा और सिख सरदार, महारानी लक्ष्मीबाई के महल का दरवाजा खोलने वाला दुल्हाजू, तातिया टोपे को पकड़वाने वाला मानसिंह शामिल थे। इनकी गद्दारों की वजह से यह आंदोलन असफल हुआ।

      इस क्रांति के हार के प्रमुख कारण थे,,,, इसका समय से पहले शुरू हो जाना, आंदोलनकारियों में आपकी झगड़े और मनमुटाव, सेनापतियों की अनुशासनहीनता, कुछ नवाबों, सामंतों और राजाओं की गद्दारी। इन कारणों भारत का यह अद्भुत संगम बुलंदियों की ऊंचाइयों को नहीं छुपाया और अंततः असफल हो गया।

     भारत के इतिहास के इस महासंग्राम की बहुत सारी खूबियां हैं। इसने हिंदुस्तानियों में मनुष्यता का बोध जगाया, उन्हें लड़ाकू इंसान बनाया, उन्हें एक दूसरे के लिए जान कुर्बान करना सिखाया और देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार किया, इसने चीन को अंग्रेजों द्वारा गुलाम होने से बचाया। इस संग्राम ने अंग्रेजों के सुपरनैचुरल होने की गलतफहमी को दूर किया और पूरी दुनिया को बताया कि एक संगठित संग्राम के तहत बड़े से बड़े जालिम लुटेरों को हराया जा सकता है और पूरे देश और दुनिया में यह उम्मीद जगाई की अंग्रेजों को बाकायदा पराजित किया जा सकता है।

      इस महान संग्राम की बहुत अद्भुत सीखें भी हैं।इसने सीख दी कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए समाज में अगर कुछ करना है तो उसके लिए जरूरी है की एक क्रांतिकारी एक कार्यक्रम हो, क्रांतिकारियों का एक संयुक्त नेतृत्व हो, एक क्रांतिकारी संगठन हो, जनता और नेतृत्व में क्रांतिकारी अनुशासन हो और क्रांतिकारी जनता एकजुट संघर्ष के लिए तैयार हो।

      इस महान स्वतंत्रता संग्राम की बहुत बड़ी विरासत है। इसने भारतीयों में और जनता में हिंदू मुस्लिम एकता कायम की, अपने अंदरूनी संघर्षों, विवादों और मतभेदों को बुलाकर संघर्ष करना सिखाया, भारतीयों को दुनिया में सिर उठाकर चलना सिखाया, समस्त भारतीयों का स्वाभिमान जगाया, उन्हें आजादी के महान सपनों के लिए लड़ना, मरना और संघर्ष करना सिखाया, उन्हें संगठन बनाकर संघर्ष करना सिखाया, उन्हें आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करना सिखाया और उन्हें सिखाया कि अपने मतभेदों को भुलाकर लड़े बिना, हम कोई जंग नहीं जीत सकते।

     इस क्रांतिकारी महान लड़ाई ने भारत की आजादी के संघर्ष और संग्राम को गति प्रदान की। इसने लोगों में विजयी होने का विश्वास जगाया, जिसकी वजह से भारत की जनता एकजुट हुई और वह आजादी के संग्राम में उतर गई, जिसका परिणाम 1947 में अंग्रेजों की गुलामी से भारत की आजादी में निकाला।

      भारत की आजादी के इस महान संग्राम के 167 साल बाद भी हम देख रहे हैं कि भारत की जनता को अभी अन्याय, शोषण और जुल्मों से पूर्ण मुक्ति नहीं मिली है। उसे समय उनके देखे गए सपने अभी भी पूरे नहीं हुए हैं। वे महान सपने आज भी अधूरे हैं। पहले अंग्रेज लुटेरे हमारा शोषण दमन कर रहे थे और आज भारत का धनी वर्ग, बड़े-बड़े पूंजीपति और उनकी सरकार, हमारी जनता के वाजिब हक और अधिकार उन्हें नहीं दे पाए हैं और उनकी लगातार लूट, शोषण और अन्याय आज भी जारी हैं। इसलिए हमें उस महान संग्राम की उपलब्धियों से और गलतियों से सीख कर, एक नए स्वतंत्रता संग्राम को की शुरुआत करनी है जिसमें भारत की समस्त जनता का विकास हो, सबको रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य मिले सबको रोजगार मिले और भारत के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल भारत की पूरी जनता के विकास के लिए हो। समस्त भारतीयों के सिर को उंचा करने वाले भारत के 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को शत-शत नमन, वंदन और अभिनंदन।

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