सनत जैन
भारत के रत्न कहे जाने वाले सुप्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा का 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। टाटा समूह की विरासत के वह एक ऐसे उत्तराधिकारी थे, जिन्होंने अपने पूर्वजों की तरह अपने औद्योगिक साम्राज्य को देश और विदेश तक पहुंचाने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया। टाटा समूह के संस्थापक जेआरडी टाटा के वह चौथे वंशज थे। रतन टाटा ने अपने जीवन-काल में टाटा समूह की दौलत को बड़ी तेजी के साथ बढ़ाया। उन्होंने नैतिक मूल्यों और सादगी के साथ सामाजिक दायित्वों को पूरा किया। उन्होंने टाटा समूह के कारोबार को नैतिकता के साथ बढ़ाया। सामाजिक दायित्व में भारत के हर नागरिक के बीच में अपनी और टाटा समूह की विशिष्ट छाप छोड़ी।
उन्होंने भारत के गौरव, भरोसे और कारोबार की पताका दुनिया के कई देशों में फहराई है। सारी दुनिया को रतन टाटा ने जो संदेश दिया, उसकी गूंज अब दुनिया के सभी देशों में सदियों तक सुनाई देगी। 1868 में अंग्रेजों के शासनकाल में टाटा समूह की स्थापना हुई थी। टाटा समूह को भारत में औद्योगिक क्रांति के रूप में पहचाना जाता है। टाटा समूह की चार पीढ़ियों के इस लंबे सफर में, नैतिकता के साथ उद्योग और व्यापार में आगे बढ़ाते हुए, पूंजीवाद और समाजवाद का तालमेल और भारतीय संस्कृति का बेहतर उदाहरण, टाटा समूह की हर पीढ़ी ने देश के सामने रखा है। रतन टाटा ने शादी नहीं की थी। उन्होंने विदेशों में पढ़ाई की। लेकिन उन्हें यूरोप की हवा नहीं लगी। वह तन और मन से हमेशा भारतीय बने रहे।
1868 से लेकर अभी तक टाटा समूह ने हमेशा नवाचार करके उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में विशिष्टता के साथ काम करते हुए स्टील, ऑटोमोबाइल, डेटा इनोवेशन, नमक, केमिकल, चिकित्सा और शोध के क्षेत्र में उत्कृष्टता के साथ काम किया है। टाटा समूह ने नैतिकता और संस्कारों के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया। टाटा समूह व्यापार को नैतिकता के साथ करने के लिए जाना जाता है। कर्मचारियों और सामाजिक दायित्व को लेकर टाटा समूह हमेशा सजग रहा। सही मायने में टाटा समूह भारत में औद्योगिक क्रांति लाने के लिए जाना जाता है। 1907 में टाटा समूह ने स्टील प्लांट की स्थापना करके भारत में औद्योगिक क्रांति का शंखनाद किया था। टाटा समूह ने पिछले वर्षों में आईटी के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। विभिन्न व्यवसाय में हमेशा आगे बढ़कर हर चुनौती को स्वीकार किया है।
टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी, टाटा स्टील समूह के अंतर्गत सैकड़ों कंपनियों ने उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त की हैं। शोध और सामाजिक कार्यों में टाटा समूह ने खुले हाथों पैसे खर्च करने में कभी कोई कोताही नहीं बरती। कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से निपटने के लिए हजारों करोड़ रुपये शोध में टाटा समूह ने तब खर्च किए,जब कोई इस मामले में सोचता नहीं था। पारसी परिवार में जन्मे रतन टाटा ने अपनी पारिवारिक विरासत को पूरी संवेदनशीलता, जिम्मेदारी, नैतिकता, सामाजिक दायित्व के साथ पूरा करते हुए एक नई आधारशिला रखी है। रतन टाटा ने कभी, कोई ऐसा काम नहीं किया। जिससे टाटा समूह के ऊपर कोई उंगली उठा सके। रतन टाटा ने अपने पूर्वजों के बनाए गए नियमों, सामाजिक समरसता, धन का उपयोग व्यापार और उद्योग बढ़ाने के साथ-साथ सामाजिक दायित्व के प्रति टाटा समूह हर समय प्रतिबद्ध रहा है।
टाटा परिवार के सदस्य अपने ऊपर बहुत कम खर्च करते थे। टाटा समूह जो भी कमाई करता था, उसे उद्योग विस्तार में लगाकर, लाखों लोगों को रोजगार देकर, मान-सम्मान के साथ सुख सुविधाएं पहुंचाने के लिए देश और विदेश में जाना जाता है। सामाजिक उत्तरदायित्व को जिस तरह से टाटा समूह की हर पीढ़ी ने निभाया है, उसकी प्रशंसा दुनिया के देशों में होती है। टाटा समूह, नैतिकता और ईमानदारी का प्रतीक है। रतन टाटा ने अपने जीवनकाल मे टाटा समूह की इसी विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया है।
सादा जीवन उच्च विचार की भारतीय संस्कृति का निर्वाह उन्होंने सारे जीवन किया। रतन टाटा दुनिया छोड़कर चले गए हैं, लेकिन रतन टाटा ने अपने 86 वर्ष के जीवन मे जिस तरह से पारिवारिक विरासत की प्रतिबद्धता और संस्कारों का संवर्धन किया है, वह आने वाली पीढ़ी और दुनिया के लिए एक उत्तम संदेश है। लोग थोड़ी सी सफलता में अहंकारी हो जाते हैं। धन संपदा और ऐश्वर्या का जिस तरह से प्रदर्शन करते हैं, रतन टाटा हमेशा उससे दूर रहे। सहजता, सरलता और ईश्वर के प्रति आस्था का ऐसा अनोखा संगम कम ही देखने को मिलता है। रतन टाटा के निधन पर देश भर में शोक व्याप्त है। लोग मन से उनके निधन पर श्रद्धांजलि व्यक्त कर रहे हैं। लोगों को लगता है, उन्होंने अपने ही परिवार के किसी सदस्य को खो दिया है। यही कमाई रतन टाटा और टाटा समूह की है। यह कमाई इस लोक में भी है, और परलोक में भी हमेशा बनी रहेगी।