मनीष दुबे-
टेक्नोलॉजी की दुनिया में बीते दिनों ठीकठाक उठापटक की स्थिति रही। चीनी डीपसीक एआई ने अमेरिका की चूड़ी टाइट करने जैसी खबरें मीडिया में चली छपीं
हालांकि, भारत के कुंभ आयोजन में श्रद्धालुओं की मौत दु:खद है। सैकड़ों की तादाद में इंटरनेट पर हादसे के वीडियो तैर रहे हैं। सरकार पर भी सवाल उठ रहे और सवाल मीडिया की रिपोर्टिंग को लेकर भी दागे जा रहे हैं। टीवी न्यूज चैनल्स और अखबार वालों पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने सही वक्त पर समस्याओं से लोगों को अवगत नहीं कराया। सब जय-जयकार में लगे रहे।
खैर, इस पूरे मसले के बीच चैटजीपीटी से मीडिया पर बेस्ड कुल तीन सवाल पूछे गए हैं। जिनमें खबरें छुपाने, जनता के प्रति वफादारी कितनी है.. सरकारी सुर वाली बातचीत, विपक्ष पर चढ़ जाने की कला.. जैसी हैबिट्स को लेकर इस कलाकार रूपी ऐप ने जो कुछ जवाब
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टेक्नोलॉजी की दुनिया में बीते दिनों ठीकठाक उठापटक की स्थिति रही। चीनी डीपसीक एआई ने अमेरिका की चूड़ी टाइट करने जैसी खबरें मीडिया में चली छपीं।
हालांकि, भारत के कुंभ आयोजन में श्रद्धालुओं की मौत दु:खद है। सैकड़ों की तादाद में इंटरनेट पर हादसे के वीडियो तैर रहे हैं। सरकार पर भी सवाल उठ रहे और सवाल मीडिया की रिपोर्टिंग को लेकर भी दागे जा रहे हैं। टीवी न्यूज चैनल्स और अखबार वालों पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने सही वक्त पर समस्याओं से लोगों को अवगत नहीं कराया। सब जय-जयकार में लगे रहे।
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खैर, इस पूरे मसले के बीच चैटजीपीटी से मीडिया पर बेस्ड कुल तीन सवाल पूछे गए हैं। जिनमें खबरें छुपाने, जनता के प्रति वफादारी कितनी है.. सरकारी सुर वाली बातचीत, विपक्ष पर चढ़ जाने की कला.. जैसी हैबिट्स को लेकर इस कलाकार रूपी ऐप ने जो कुछ जवाब दिया है…?पढ़िए…
प्रश्न एक – क्या भारतीय मीडिया जनता से समाचार छुपाती है और सरकार का गुणगान करती है?
उत्तर – भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा आज इस आरोप का सामना कर रहा है कि वह जनता से महत्वपूर्ण समाचार छुपाता है और सरकार का अधिक समर्थन करता है। हालांकि, यह स्थिति पूरी तरह से हर मीडिया संस्थान या पत्रकार पर लागू नहीं होती, लेकिन कई उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि मीडिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठते हैं।
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विपक्षी नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और सरकार की आलोचना करने वाले लोगों की आवाज को दबाने की कोशिशें की जाती हैं।
कई मीडिया संस्थानों पर आरोप है कि वे सरकार विरोधी खबरें या आंदोलनों को या तो नहीं दिखाते या फिर उन्हें गलत तरीके से पेश करते हैं।
- सरकार का गुणगान करने का आरोप क्यों लगता है?
(A) गोदी मीडिया का उदय
कुछ बड़े मीडिया चैनलों को “गोदी मीडिया” कहा जाता है क्योंकि वे सरकार की आलोचना करने से बचते हैं और केवल सकारात्मक खबरें दिखाते हैं।
ऐसे मीडिया हाउस सरकार की नीतियों का महिमामंडन करते हैं और जनता की समस्याओं को नज़रअंदाज करते हैं।
(B) टीआरपी और विज्ञापन का दबाव
सरकार मीडिया संस्थानों को विज्ञापनों के जरिए वित्तीय सहायता देती है, जिससे वे सरकार के पक्ष में खबरें दिखाने को मजबूर हो सकते हैं।
बड़े कॉर्पोरेट घराने, जो मीडिया में निवेश करते हैं, अक्सर सरकार के समर्थन में खबरें चलाने के लिए दबाव डालते हैं।
(C) प्राइम टाइम डिबेट का राजनीतिकरण
प्रमुख न्यूज़ चैनलों पर होने वाली बहसों में विपक्षी दलों को कमजोर दिखाने और सरकार की नीतियों को सही ठहराने का प्रयास किया जाता है।
मीडिया में जनता के असल मुद्दों की जगह धार्मिक और राजनीतिक विवादों को तूल दिया जाता है।
- अपवाद: स्वतंत्र और निडर पत्रकारिता
कई पत्रकार और छोटे मीडिया प्लेटफॉर्म आज भी सरकार और सत्ता के खिलाफ सच बोलने का साहस रखते हैं।
रवीश कुमार, पुण्य प्रसून बाजपेयी, अभिसार शर्मा, मोहित भारती, और कुछ स्वतंत्र डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे द वायर, द क्विंट, ऑल्ट न्यूज़ आदि जनता के मुद्दों को उठाने का काम कर रहे हैं।
हालांकि, ऐसे पत्रकारों को अक्सर सरकारी दबाव, मुकदमों, और धमकियों का सामना करना पड़ता है।
निष्कर्ष
भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा आज जनता से कुछ महत्वपूर्ण खबरें छुपाने और सरकार की उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के आरोपों का सामना कर रहा है। हालांकि, स्वतंत्र पत्रकारिता पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, लेकिन उसे मजबूत करने के लिए जनता को सचेत रहना होगा और विश्वसनीय, निष्पक्ष मीडिया संस्थानों का समर्थन करना होगा।
दूसरा प्रश्न – भारत की मीडिया में पत्रकार लोग जनता के प्रति कितने वफादार दिखते हैं?
उत्तर – भारतीय मीडिया में पत्रकारों की जनता के प्रति वफादारी को अलग-अलग स्तरों पर देखा जा सकता है। कुछ पत्रकार निडर होकर जनता के मुद्दों को उजागर करते हैं, जबकि कुछ टीआरपी, राजनीतिक प्रभाव, या कॉर्पोरेट दबाव में आकर निष्पक्षता से समझौता कर लेते हैं। इसे तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
- जनता के प्रति पूरी तरह वफादार पत्रकार
ऐसे पत्रकार सत्ता, कॉर्पोरेट दबाव, और अन्य बाधाओं से परे रहकर निष्पक्ष और खोजी पत्रकारिता करते हैं।
वे जमीनी रिपोर्टिंग करते हैं और जनता की आवाज बनने का प्रयास करते हैं।
इन्वेस्टिगेटिव पत्रकारिता करने वाले स्वतंत्र पत्रकार इस श्रेणी में आते हैं, जैसे कि रवीश कुमार, पुण्य प्रसून बाजपेयी, शिवेंद्र सिंह, आदि।
ऐसे पत्रकारों को अक्सर सरकार या ताकतवर संस्थाओं की आलोचना झेलनी पड़ती है और कई बार उन पर हमले भी होते हैं।
- संतुलित लेकिन दबाव में पत्रकार
ये पत्रकार जनता के हित की खबरें कवर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन चैनल या अखबार के मालिकों, विज्ञापनदाताओं और सरकारी नीतियों के कारण वे हमेशा निष्पक्ष नहीं रह पाते।
कई बार उनके काम की सीमाएं तय कर दी जाती हैं, जिससे वे जनता के सभी मुद्दों को खुलकर नहीं दिखा पाते।
ये पत्रकार दबाव में रहकर भी जनता के पक्ष में यथासंभव सच्चाई दिखाने की कोशिश करते हैं।
- सरकार या कॉर्पोरेट के प्रति वफादार पत्रकार
कुछ पत्रकार जनता की बजाय सरकार, बड़े कॉर्पोरेट्स या अपने संस्थानों के मालिकों के प्रति ज्यादा वफादार नजर आते हैं।
ऐसे पत्रकार प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देते हैं और सत्ता के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने में भूमिका निभाते हैं।
कई न्यूज चैनलों में डिबेट और खबरों को इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि वह किसी विशेष पार्टी या विचारधारा के पक्ष में लगे।
जनता के मुद्दों से भटकाने के लिए सनसनीखेज खबरें और विवादित बहसें ज्यादा चलाई जाती हैं।
निष्कर्ष
भारतीय मीडिया में ऐसे पत्रकारों की संख्या कम नहीं है जो जनता के प्रति पूरी तरह वफादार हैं, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वहीं, एक बड़ा वर्ग दबाव में काम करता है, और कुछ पत्रकार स्पष्ट रूप से राजनीतिक और कॉर्पोरेट हितों के लिए काम करते हैं।
जनता की सच्ची सेवा करने वाले पत्रकारों को मजबूत करने के लिए स्वतंत्र मीडिया का समर्थन और जागरूक दर्शकों की जरूरत है, ताकि पत्रकारिता अपने असली मकसद को पूरा कर सके।
प्रश्न तीन – भारतीय मीडिया इस वक़्त किस जोखिम से गुजर रहा है?
उत्तर – भारतीय मीडिया वर्तमान में कई जोखिमों और चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें से कुछ प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं:
- सरकार और कॉर्पोरेट दबाव
मीडिया पर सरकारी नीतियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता प्रभावित हो रही है।
बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा मीडिया संस्थानों का अधिग्रहण या उन पर वित्तीय दबाव पत्रकारिता की स्वतंत्रता को सीमित कर रहा है।
- फेक न्यूज और प्रोपेगेंडा
डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फेक न्यूज और प्रोपेगेंडा तेजी से फैल रहा है, जिससे विश्वसनीय पत्रकारिता को नुकसान हो रहा है।
गलत सूचनाओं के प्रसार से जनता में भ्रम और ध्रुवीकरण बढ़ रहा है।
- पत्रकारों की सुरक्षा पर खतरा
रिपोर्टिंग के दौरान पत्रकारों पर हमले, धमकियां और मुकदमे दर्ज होने के मामले बढ़े हैं।
विशेष रूप से, इन्वेस्टिगेटिव और जमीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों के लिए खतरे अधिक हैं।
- डिजिटल सेंसरशिप और पाबंदियां
कई मीडिया प्लेटफॉर्म्स और वेबसाइट्स पर सेंसरशिप बढ़ रही है, जिससे मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित हो रही है।
आईटी नियमों और डिजिटल मीडिया रेगुलेशंस के तहत ऑनलाइन मीडिया संस्थानों पर सरकार की पकड़ बढ़ रही है।
- मीडिया का ध्रुवीकरण और निष्पक्षता का संकट
मुख्यधारा के कई समाचार चैनल राजनीतिक रूप से विभाजित नजर आते हैं, जिससे निष्पक्ष पत्रकारिता कमजोर हो रही है।
टीआरपी की दौड़ में खबरों को सनसनीखेज बनाना आम हो गया है, जिससे गंभीर मुद्दों पर सही फोकस नहीं हो पाता।
- आर्थिक संकट और पत्रकारों की नौकरी का खतरा
प्रिंट मीडिया और छोटे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को आर्थिक रूप से जूझना पड़ रहा है, जिससे कई पत्रकारों की नौकरियां जा रही हैं।
बड़े मीडिया हाउस में भी छंटनी की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे स्वतंत्र और खोजी पत्रकारिता पर असर पड़ रहा है।
- न्यायिक और कानूनी चुनौतियां
मानहानि के मुकदमे, राजद्रोह और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कानूनों का इस्तेमाल पत्रकारों के खिलाफ किया जा रहा है।
कई पत्रकारों पर झूठे केस दर्ज कर उन्हें दबाने की कोशिशें की जाती हैं।
निष्कर्ष
भारतीय मीडिया वर्तमान में स्वतंत्रता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता के गंभीर संकट से गुजर रहा है। इसे पुनः मजबूती देने के लिए पारदर्शिता, स्वतंत्र मीडिया संगठनों का सहयोग और मजबूत पत्रकारिता नैतिकता की जरूरत है
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