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मल्हार राव होलकर और तुकोजीराव होलकर का शहर है इंदौर 

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अनिल जैन 

इंदौर के जनजीवन में अच्छा-बुरा जो भी हो, लोग भावुकता, मूर्खता या पाखंड वश अहिल्या बाई होलकर को याद करने लगते हैं। कुछ अच्छा हो तो कहा जाने लगता है अहिल्या बाई का शहर गौरवान्वित हुआ। कुछ बुरा हो तो कहा जाता है कि अहिल्या बाई शहर कलंकित हो गया। जबकि ऐतिहासिक तथ्य यह है कि इंदौर से अहिल्या बाई होलकर का कभी कोई संबंध रहा ही नहीं।

अभी इंदौर में सत्तारूढ़ ‘धर्म रक्षक’ पार्टी के अंदर गैंगवार चल रहा है, जिसके तहत एक पार्षद की गैंग ने दूसरे दूसरे पार्षद के घर में घुस कर उसके जवान बेटे को घर की महिलाओं के सामने पूरी तरह नंगा कर दिया। अब इस घटना को लेकर भी नाहक ही रुदन किया जा रहा है कि इंदौर बदनाम हो गया और अहिल्या बाई की कीर्ति कलंकित हो गई। 

पहले भी कुछ मौकों पर लिखा है और फिर लिखना पड़ रहा है कि इंदौर को अहिल्याबाई का शहर बताने, मानने या समझने वालों को न तो इंदौर के इतिहास की जानकारी है और न ही होलकर रियासत की। अहिल्याबाई के बारे में भी ये लोग कुछ नहीं जानते। दरअसल बुद्धि विरोधी आंदोलन से जुड़े होने के कारण जान भी नहीं सकते। 

नर्मदा घाटी मार्ग पर स्थित इंदौर शहर को 310 साल पहले यानी 1715 में स्थानीय (कम्पेल गांव के) जमींदारों ने व्यापार केंद्र के रूप में बसाया था। उस समय इसका नाम इंद्रपुरी हुआ करता था। 

यह नाम इसे यहां बने प्राचीन इंद्रेश्वर महादेव मंदिर की वजह से मिला था। बाद में पेशवा के सेनापति और होलकर रियासत के संस्थापक मल्हार राव होलकर ने इसे अपनी राजधानी बनाया और अपभ्रंश होकर इसका नाम इंदूर हो गया, जो बाद में अंग्रेजों के समय इंदौर हुआ। 

यह सही है कि मल्हार राव होलकर की बहू अहिल्या बाई इंद्रेश्वर महादेव को अपना आराध्य मानती थीं लेकिन शासन की बागडोर संभालने के तुरंत बाद वे अपनी राजधानी को इंदौर से स्थानांतरित कर महेश्वर ले गई थीं। 

अहिल्याबाई ने 1767 से 1795 तक शासन किया और तब तक उनकी रियासत की राजधानी महेश्वर ही रहा। उनकी मृत्यु के बाद तुकोजीराव होलकर (प्रथम) ने शासन के सूत्र संभाले और फिर से इंदौर को अपनी राजधानी बनाया। 

इसलिए इंदौर को ‘मां अहिल्या की नगरी’ कहना सही नहीं है। वस्तुत: यह मल्हार राव होलकर और तुकोजीराव होलकर का शहर है। 

जो लोग इंदौर को ‘देवी अहिल्याबाई का शहर’ बताते हुए तमाम तरह के धतकर्मों में लगे रहते हैं, उनका चाल-चलन भी अहिल्या बाई के शील, संघर्ष, जनसेवा और न्यायप्रियता से नहीं बल्कि तुकोजीराव होलकर (तृतीय) के विलासी व्यक्तित्व और कृतित्व से ही मेल खाता है। हालांकि तुकोजीराव लफंगे नहीं थे और उनके शासन में भी ऐसी लफंगई या गुंडई नहीं चलती थी, जैसी कि हाल में दो पार्षदों की लड़ाई में देखने को मिली और समय-समय पर अलग-अलग रूपों में देखने को मिलती है। 

उल्लेखनीय है कि तुकोजीराव तृतीय को मुंबई में एक नर्तकी के साथ उनकी लफड़ेबाजी के चलते हुए हत्याकांड की आड़ में अंग्रेजों ने सत्ता से बेदखल कर दिया था।

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