अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

फल सब्जी और छोटे कारोबारियों पर आयकर लगाने की पहल स्वीकार्य नहीं

Share

सनत जैन

हाल ही में आयकर विभाग द्वारा सब्जी विक्रेताओं, स्ट्रीट फूड बेचने वालों और छोटे कारोबारियों को नोटिस जारी किए गए हैं। आयकर नोटिस ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। आयकर विभाग ने मोबाइल और यूपीआई जैसे डिजिटल माध्यमों के जरिए हो रहे लेन-देन को जरिया बनाकर इन छोटे-छोटे कारोबारियों को आयकर के दायरे में लाने की मुहीम शुरू कर दी है। आयकर विभाग का मानना है, जो कारोबारी सालाना 36 लाख रुपए या उससे अधिक का भुगतान यूपीआई या अन्य डिजिटल माध्यमों से प्राप्त कर रहे हैं, वे अपनी आय विवरणी दाखिल नहीं कर रहे हैं। ऐसे लोग आयकर की चोरी कर रहे हैं।

आयकर विभाग ने नोटिस जारी करके छोटे-छोटे कारोबारियों से जवाब-तलब किया है। डिजिटल युग में मोबाइल भुगतान और यूपीआई के माध्यम से लेन-देन सभी को पसंद आ रहा है। 5 रूपये, 10 रूपये की खरीदी करने वाले भी मोबाइल से पेमेंट कर रहे हैं। इस तरह के पेमेंट का रिकॉर्ड सरकार के पास है। स्वाभाविक है, सरकार इस वर्ग को टैक्स के दायरे में लाने के लिए मोबाइल से जो भुगतान किया जा रहा है। अब उसको आधार बनाकर छोटे-छोटे कारोबारी को भी आयकर के दायरे में लाया जाएगा। सब्जी, स्ट्रीट फूड और छोटा-मोटा कारोबार करने वाले ना तो ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं। ना ही उनके पास कोई पूंजी होती है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि संगठित क्षेत्र में आयकर विभाग जो लाखों करोड़ों रुपए का धंधा करते हैं, उनसे आयकर की वसूली करने में ढीला ढाला रवैया अपनाती है। टैक्स चोरी करने वालों की संख्या अधिक है।

आर्थिक सुधार के नाम पर आयकर विभाग का यह कदम टैक्सपेयर्स की संख्या बढ़ाने और राजस्व को बढ़ाने की दिशा में सराहनीय माना जा सकता है। लेकिन सवाल उठता है, कि छोटे कारोबारी, जो अक्सर पहले से ही आर्थिक दबाव में रहते हैं, उनके काम-धंधा करने की जगह निश्चित नहीं होती है। उनके पास कोई पूंजी नहीं होती है। लेन-देन उनका ज्यादा होता है लेकिन खर्च भी उससे ज्यादा होता है। किसी तरह से वह अपना जीवन-यापन करते हैं। झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं। यह वर्ग हमेशा कर्ज में बना रहता है। आयकर विभाग और सरकार की यह कार्यवाही असंगठित क्षेत्र में स्वरोजगार करने वालों के लिए बड़ी परेशानी पैदा करने वाली साबित होगी। भारत में न्यायोचित कर प्रणाली की आवश्यकता है। भारत में 1 जुलाई 2017 से जीएसटी लागू की गई है। इस कर के दायरे में गरीब से गरीब आदमी से भी टैक्स लिया जा रहा है। वस्तु एवं सेवा सभी में यह टेक्स लग रहा है। 2017 में जब यह टैक्स शुरू हुआ था तब इसके दायरे में बहुत सारी वस्तुएं और सेवाएं नहीं थीं। पिछले 7 वर्षों में सरकार इसका दायरा बढ़ाती चली गई, 8, 12, 18 और 28 फ़ीसदी टैक्स गरीब और अमीर सभी से वसूल किया जा रहा है। जितना टैक्स 45 वर्षों में वसूल नहीं किया गया था उतना टैक्स अब 1 वर्ष में वसूल किया जा रहा है। हर चीज की एक हद होती है। लगता है सरकार इस हद को पार कर रही है।

जिसके कारण अब लोगों का सरकार पर गुस्सा बढ़ने लगा है। जीएसटी लागू होने के बाद आयकर को समाप्त कर देना चाहिए था, लेकिन आयकर का दायरा अब गरीबों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। अब सरकार के टैक्स की तीव्र आलोचना हर वर्ग से होने लगी है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि छोटे कारोबारियों के लिए टैक्स सिस्टम सरल और व्यावहारिक हो। आयकर विभाग को सुनिश्चित करना चाहिए कि संगठित और बड़े व्यापारिक घरानों जिनके पास स्थाई संपत्ति हैं। उनसे ही आयकर वसूल किया जाए। रोड पर कारोबार करने वालों को आयकर के दायरे से बाहर रखा जाए। सब्जी विक्रेताओं, फुल्की वालों और स्ट्रीट फूड विक्रेताओं पर आयकर लगाने की यह पहल किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। देश के राजस्व में जीएसटी के माध्यम से गरीब एवं मध्यम वर्ग पर पहले ही बहुत बड़ा टैक्स का बोझ डाला जा चुका है। जीएसटी लागू होने के बाद सभी कर प्रणालियों को खत्म होना था। उसके स्थान पर छोटे व्यापारियों के लिए आयकर विभाग की यह कार्यवाही कई समस्याएं खड़ी कर सकती है। सरकार को संतुलित और न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाना जरूरी होगा। अन्यथा इसके बड़े घातक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें