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इंकलाब के नारे में…..ए भगत सिंह तू जिंदा है

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मुनेश त्यागी

जब हम भारत के शहीदों का नाम लेते हैं तो उनमें सबसे पहले भगत सिंह का नाम याद आता है। आज उन्हीं भगत सिंह का जन्मदिन है। भगत सिंह ने जेल में राजनीतिक सुधार और वहां फैले भेदभाव के खिलाफ 116 दिन की भूख हड़ताल की। 1926 में भारत नौजवान सभा की नींव रखी, 1929 में असेंबली में बम फेंकने के बाद इंकलाब जिंदाबाद, रूस की क्रांति जिंदाबाद, सोवियत सत्ता जिंदाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, के नारे लगाए।
भगत सिंह ने क्रांति के संदेश को जनता में ले जाने के लिए बलवंत, रंजीत और विद्रोही नाम से अखबारों में लेख लिखे। उन्होंने क्रांति के बारे में विस्तृत रूप से लिखा और मार्क्सवादी दर्शन के आधार पर समाजवादी समाज की स्थापना के लक्ष्य को अपने सामने रखा। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में समाजवादी शब्द जोड़कर इसे हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाने का काम भगत सिंह की पहल पर ही किया गया था।
उन्होंने सीधे सादे और साधारण लेखों के द्वारा क्रांति की अलख जगाने की बात की। उन्होंने मांग की कि समाज में आमूलचूल परिवर्तन और सरकार को अपने हाथों में लेकर किसानों मजदूरों की सरकार बनाने का आह्वान किया। भगत सिंह सबसे बड़े पुस्तक प्रेमी थे। उनके साथी शिव वर्मा का कहना था की भगत सिंह के पास हमेशा कोई ना कोई किताब होती थी, वे किताब पढ़ते नहीं थे, निगलते थे।
भगत सिंह बहुत बड़े क्रांतिकारी लेखक थे। भारत के क्रांतिकारी इतिहास में क्रांतिकारियों द्वारा 139 लेख लिखे गए जिनमें 97 लेख भगतसिंह ने लिखे थे। क्रांति का अलख जगाने के लिए गांव-गांव, खेत, खलिहानों में और गंदी बस्तियों में जाना पड़ेगा और लोगों को कांति के लिए तैयार करना होगा। क्रांति को विस्तार देने के लिए पर्चे पंपलेट और लेख लिखने की वकालत की। भाषा ऐसी हो कि वह साधारण आदमी की समझ में आ जाए।
गदरी बाबाओं की विरासत को आगे बढ़ाते हुए राजनीति को धर्म से अलग किया यह भगत सिंह और उसके साथियों का बहुत बड़ा काम है और धर्म को व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला बताया और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आजादी की मांग की। तमाम तरह के शोषण, गुलामी और अन्याय को खत्म करने की वकालत की। भगत सिंह और उनके साथी व्यक्ति द्वारा व्यक्ति और देश द्वारा देश के शोषण और गुलामी के खिलाफ थे और उन्होंने इसका कठोर प्रतिवाद किया।भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा देखे गए उनके सपने अधूरे हैं।
दो फरवरी 1931 को लिखे अपने लेख में भगत सिंह ने कहा था असली क्रांतिकारी गांव में रहते हैं, झोपड़ियों में रहते हैं, कारखानों में रहते हैं। हमारे नौजवानों को उन लोगों को क्रांति के लिए तैयार करने के लिए उनके बीच में जाना होगा और एक पार्टी बनानी होगी जिसका नाम कम्युनिस्ट पार्टी होगा।
भगत सिंह और उनके साथियों का एक और बहुत बड़ा कारनामा है और वह यह है कि उन्होंने भारत में धर्मनिरपेक्षता की नीव डाली, धर्म को राजनीति से अलग किया और सांप्रदायिक दंगों की मुखालफत की और कहा की किसानों और मजदूरों की यूनियन ही बना कर वर्ग संघर्ष के आधार पर सांप्रदायिकता की राजनीति को खत्म किया जा सकता है। उन्होंने नौजवानों का आह्वान किया कि वह क्रांति के रास्ते पर चलें और क्रांति की अलख जगाए और क्रांति की चिंगारी को गांव गांव, गली, मोहल्लों और कारखानों में ले जाएं।
जब भगत सिंह को फांसी लगाने का समय आया तो वे उस समय रूस के महान क्रांतिकारी लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे तो उस समय उनके जेलर से आखिरी शब्द थे कि,,,,, ठहरो एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से बात कर रहा है, यह कहकर उन्होंने वह पर्चा मोड़ा और उस किताब को आकाश में उछाल दिया और फांसी के फंदे की तरफ चल पड़े। आज हमें उस मुड़े हुए सफे से आगे बढ़ने की जरूरत है और शहीदे आजम भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के सपनों को साकार करना है और भारत में एक क्रांतिकारी सरकार की और राज सत्ता की स्थापना करने की जरूरत है। आज सरकार शहीदों के सपनों को रौंद रही है। सच में यह शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके साथियों के सपनों का भारत नहीं है।
कुछ दिन पहले हमने भगत सिंह के ऊपर यह कविता लिखी थी भगत सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि देने के लिए हम यह कविता आपके लिए यहां प्रस्तुत कर रहे हैं,,,,
ए भगत सिंह तू जिंदा है
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ए भगतसिंह तू जिंदा है
हर एक लहू के कतरे में,
भिची हुई हर मुट्ठी में ,
हर इंकलाब के नारे में ,
ए भगत सिंह तू जिंदा है,

सूरज चांद सितारों में,
मजदूरों के नारों में ,
जनता के जयकारों में,
हां कम्युनिस्टों के नारों में,
ए भगत सिंह तू जिंदा है,

लेनिन की मुडी किताबों में,
सुखदेवों और आजादों में,
बिस्मिलों और अशफाकों में,
रक्त से सने फरहरों में ,
ए भगत सिंह तू जिंदा है में ,

इंकलाब की लहरों में ,
भारत छोड़ो के नारों में,
नेवी के विद्रोहों में ,
आजाद हिंद की फौजों में,
ए भगत सिंह तू जिंदा है,

संसद में फेंके परचों में,
जन गण मन की हुंकारों में,
छात्र किसान मजदूरों में ,
जनता के अरमानों में,
ए भगत सिंह तू जिंदा है।

हर एक लहू के कतरे में,
हर इंकलाब के नारे में
ए भगत सिंह तू जिंदा है।

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