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*अन्तरिम बजट या लूट के माल का बँटवारा*

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*रजनीश भारती*

हमारे देश में चुनाव से ठीक पहले अब तक जितने भी बजट आते रहे हैं, चुनाव को ध्यान में रखकर जनता को लालीपाप जरूर देते थे। परन्तु 2024-25 के अन्तरिम बजट में कोई लालीपाप नहीं। जनता से जुड़ी हर योजनाओं पर जो बजट दिए गये हैं उसमें बजट के आकार और महंगाई की तुलना में नगण्य वृद्धि की गई है। क्या मोदी को भरोसा हो गया है कि हर हाल में सत्ता में उन्हें ही रहना है? क्या मौजूदा चुनाव महज एक औपचारिकता भर रह गया है? ऐसा नहीं, दरअसल राममंदिर नामक सबसे बड़ा लालीपाप दे दिया गया है। अब इसके आगे किसी लालीपाप की जरूरत नहीं महसूस हो रही है।

सरकार ने जनता को मंदिर दे दिया है तो अब और कुछ देने की जरूरत नहीं है, अब पूरा ध्यान उन्हें मालिक वर्गों की सेवा में लगाना है। राजस्व घाटा कम करने के लिए कल्याणकारी योजनाओं में कटौती की गयी हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, मनरेगा व आयुष्मान सहित खाद्य सुरक्षा, बाल महिला वंचित समुदाय कल्याण, ग्रामीण विकास, आदि के बजट में मामूली वृद्धि कर दी गयी है, जो बजट के आकार और मँहगाई की तुलना में बहुत कम है।

हमारे देश का बजट अर्धसामन्ती भूस्वामियों, बड़े पूँजीपतियों, विदेशी साम्राज्यवादियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। अमेरिकी सुपर पावर विश्वबैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व-व्यापार संगठन के माध्यम से पूरे बजट की निगरानी करता है। ये अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं शोषकवर्ग के मुनाफे को ध्यान में रखकर तीसरी दुनिया के देशों का बजट बनवाती रही हैं। यह बजट किसके हित में है इसमें खर्च हो रही रकम को देखकर समझा जा सकता है।

इस साल (2024-25) के बजट में कुल खर्च 47,65,768 करोड़ (47.65 लाख करोड़) है। जब कि 2023-24 के लिए भारत में कुल व्यय 44,90,486 करोड़ था। यह 47.65 लाख करोड़ रूपया कहाँ से आयेगा?

28 प्रतिशत उधार लिया गया, 1 प्रतिशत ऋण से भिन्न पूँजी से, 7% ऋणभिन्न प्राप्तियों से, 18 प्रतिशत जीएसटी व अन्य टैक्स, 19%आयकर, 5% केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, 4% सीमा शुल्क, 17% निगम कर से प्राप्त होगा। मगर वास्तव में मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, नशाखोरी, जुआखोरी… आदि अनेकों तरीकों से जनता का खून निचोड़ कर हर तरह के टैक्स भी जनता से ही निचोड़ा जाता है।

कहाँ कितना खर्च होगा?

बजट का 20% व्याज अदायगी पर, 16% केन्द्रीय योजनाओं में (रक्षा और आर्थिक सहायता को छोड़ कर), 8% केन्द्रीय प्रायोजित योजनाओं में, 20% करों और शुल्कों में राज्यों का हिस्सा दिया जायेगा।  4% पेंशन, शेष 9%अन्य मदों में व्यय होगा। मगर जो भी व्यय होगा वो जनहित को ध्यान में रखकर नहीं होगा बल्कि पूँजीपतियों के मुनाफे को ध्यान में रख कर होगा।

 रक्षा बजट 621540 करोड़ का है। मगर जिस कृषि पर 65% जनता आश्रित है, उस कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के विकास के लिए सिर्फ रू. 1,46,819 करोड़ निर्धारित है।

शिक्षा और चिकित्सा जो किसी भी देश तरक्की की बुनियाद बनाते हैं, उस शिक्षा व चिकित्सा पर क्रमश: 1,24,638 करोड़ ईीरूपये व 90,171 करोड़ रूपये का निवेश होगा। जो ऊँट के मुंह में जीरा के समान है।

हर योजना के पीछे शोषकवर्गों का मुनाफा छिपा होता है। हर बार जनता को आपस में लड़ा कर बजट का बन्दर बांट होता है। सीमेंट, लोहा, गिट्टी, मोरंग, डामर से जुड़ी कम्पनियाँ चाहती हैं बजट का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा सड़क, पुल, भवन आदि के निर्माण पर खर्च हो ताकि उनका भारी मुनाफे के साथ उनका माल बिके। इसी तरह बीमा कम्पनियां और दवा  बनानेवाली देशी विदेशी कम्पनियाँ सरकार पर दबाव बनाती हैं तो सरकार आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं बनाकर उनका मुनाफा बढ़ाती है। हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ चाहती हैं कि रक्षा बजट बड़े से बड़ा हो ताकि उनका हथियार भारी मुनाफे के साथ बड़े पैमाने पर बिके। तो सरकार रक्षा बजट बढ़ा देती है। बैंकिंग कम्पनियां चाहती हैं कि बिना जोखिम उनका सूदखोरी का धंधा चलता रहे, तो सरकार लखपति बहना जैसी योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, शिक्षा लोन, विभिन्न रोजगारों के नाम पर लोन देने की योजनाएं चलाती है। क्रेडिट लोन 70 हजार से बढ़ा कर 2 लाख20 हजार कर दिया गया। पर्सनल लोन 5 लाख से बढ़कर साढ़े चौदह लाख कर दिया

लखपति बहना योजना के तहत 1लाख का लोन 3 करोड़ महिलाओं को देने का प्रावधान किया गया है। छोटे उद्योगों के लिए लोन देने की बात हो रही है मगर ग्राहक कहाँ से आयेँगे?

स्थिति यह है कि खेती करने वाले भूमिहीन व गरीब किसानों के पास जमीन न होने, कृषि उपज का लाभकारी मूल्य न मिलने; सस्ते में खाद, बीज, बिजली, सिंचाई, कीटनाशक, कृषि उपकरण, खरपतवारनाशक, डीजल, पेट्रोल आदि न मिल पाने से किसान तबाह है। ऊपर से फर्टिलाइजर पर सब्सिडी घटा दी गयी। किसानों के पास क्रयशक्ति नहीं है। तो गरीब किसान क्या खरीदेगा? देहातों में बहुत लो कंजम्पशन यद्यपि मनरेगा बजट 60 हजार करोड़ से बढ़ाकर 86हजार करोड़ किया गया है मगर 27करोड़ मनरेगा मजदूरों के लिए यह रकम बहुत छोटी है, फिर भी भ्रष्टाचार के कारण इसका बहुत छोटा हिस्सा ही उनके पास पहुँच पाता है। कर्ज लेकर घी कब तक पीएँगे, अब तो कर्ज पाटने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। अब ग्राहकों के अभाव में छोटे कारोबार टूटते जा रहे हैं। माल न बिकने से छोटे उद्योग भी टूटने लगते हैं जिसका फायदा उठाकर बड़े उद्योगपति उन छोटे उद्योगों की पूँजी निगल जाते हैं।

सारे बड़े पूँजीपति चाहते हैं कि घाटे का बजट बने, ताकि बजट घाटे को पूरा करने के लिए नये नोट छापे जायें जिससे मँहगाई बढ़ेगी तो उनका मुनाफा बढ़ेगा। बजट घाटे को पूरा करने के लिए सरकार कर्ज लेगी तो सूदखोरी से बैंक पतियों को मुनाफा होगा। शोषकवर्ग की सरकार का बजट वास्तव में लूट के माल का बँटवारा है।

   पिछले वर्ष रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट पर 2 लाख 10 हजार करोड़ बजट दिया जब कि इस वर्ष 3 लाख 55 हजार करोड़ बजट जारी होगा यह सकारात्मक कदम है। मगर गाय, गोबर, गंगा, गीता, हिन्दू, मुस्लिम, भारत बनाम पाकिस्तान आदि के नाम पर भयानक अंधविस्वास फैलाने में इससे कई गुना ज्यादा बजट खर्च हो रहा है।

 सबको हसीन सपने दिखाए जा रहे हैं, प्रति व्यक्ति आय प्रतिवर्ष 2500 डालर है, अभी 5 ट्रिलियन का सपना अधूरा ही रह गया। मगर सरकार का दावा है कि 2047 में भारत की   व्यक्ति आय प्रतिवर्ष 20,000 डालर हो जाएगी और जीडीपी 30ट्रिलियन डालर हो जायेगी। मुकेश अम्बानी बता रहे कि 45 ट्रिलियन डालर हो जाएगी, तो अडानी 50 बता रहे हैं। रोजगार कितना उसका पता नहीं।

बहुसंख्यक आबादी के लिए न उद्योग, न व्यापार, न रोजगार के अवसर हैं। आईआईटी, आईआईएम में पढ़ लेना ही रोजगार की गारण्टी समझा जाता था, मगर अब इन संस्थानों से निकलने वाले नौजवानों को भी बेरोजगारों की कतार में खड़े होना पड़ रहा है। 81 करोड़ लोग भुखमरी की कगार पर हैं। एक अनुमान के मुताबिक तीन चौथाई जनसंख्या बीमार है। शिक्षा व्यवस्था पर अन्धविश्वास के बादल मँडरा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में जनता का खून निचोड़कर बजट के लिए जो धन इकट्ठा हो रहा है, उसे जनता के लिए और जनता द्वारा खर्च किया जाना चाहिए मगर शोषकवर्ग की सरकार का बजट लूट के माल का बँटवारा होता है जिसे लुटेरा वर्ग अपनी हैसियत के हिसाब से लूटता है।

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