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अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस 

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मिर्ज़ा शमीम बैग

हम सभी जानते है 1 मई का दिन पूरे विश्व मैं मज़दूर दिवस के रूप मै मनाया जाता है!लेकिन इसकी शुरुआत कब हुई और क्यों हुई? यह जानना भी हमारे लिए बहुत जरूरी है! मज़दूर दिवस कि स्थापना 1 मई 1886 मानी जाति हैं, सबसे पहले अमेरिका के मजदूरों ने अपने काम के घंटे का समय तय किया और उन्होंने 8 घंटे काम करने कि योजना बनाई इसको लेकर हड़ताल कि गई हड़ताल के दौरान शिकागो की मार्केट मैं बम धमाका हुआ किसने किया पता नहीं! पुलिस ने गोली चला दि,जिसमे 7 मज़दूर बेगुनाह मारे गए आंदोलन ने उग्र रुप धारण कर लिया तभी से मजदूरों के कार्य की अवधि 8 घंटे तय कर दि गई!

       दूसरी और हमारे भारत मैं 1 मई 1921 मैं पहली बार मद्रास मैं मज़दूर दिवस बनाया गया! यह दिन मज़दूर वर्ग को समर्पित हैं, उनके विकास के लिए सम्मान ,योगदान ,एकता एवं हको के लिए समर्पित किया जाता हैं मज़दूर वर्ग के संगठनों के द्वारा इस दिन अनेकों कार्यक्रम रखे जाते है एवं रेलियां रखी जाती है इसे एक त्यौहार के रुप मैं मानते हैं!

         मजदूरों ने पहली बार अपने लिए अलग से एक झंडे के रंग को चूना जिसका कलर लाल रंग का है इसको इन्होंने अपना प्रतिक माना भारत मैं मज़दूर अंदलनो कि शुरुआत जो हुई उसका नेतृत्व बमपंती सोशलिस्ट कर रही थीं और दुनिया भर मै मज़दूर संगठन बना कर अपने खिलाफ हो रहे शोषण कि आवाज़ उठा रहे थे! 

     जैसे कि हम सभी जानते है यह मज़दूर वर्ग नहीं होता तोह मैं मिर्ज़ा शमीम बैग दावे से कह सकती हूं हमरा जीवन भी नहीं चल सकता था हम हर कार्य के लिए चाहे वह छोटे हो या बड़े इन्हीं पर आश्रित रहते हैं! मैं शमीम यह कहना चाहती हूं क्या हमने यह कभी जानने कि कोशिश कि यह हमारे लिए कितने अनमोल रत्न हैं लेकिन हमारे समाज ने ऐसा नहीं किया इन्हें सिर्फ एक मज़दूर के रुप मैं देखा गया और वैसा हि वव्यहार इनके साथ किया गया हैं मैं मिर्ज़ा शमीम समाज से कहना चाहती हूं इन अनमोल रत्नों कि कदर किजिए यह भीं इंसान हैं हमे इन्हें प्यार इस्नेह और इज्ज़त देना चाहिए इनकी हर मुसीबत मैं साथ देना चहिए इन्हें भी जीने का अधिकार है यह भीं उसी मालिक के बनाए हुए है जिसने हमें बनाया हैं आज मज़दूर दिवस पर समस्त अपने मज़दूर परिवारों के लिए मिर्ज़ा शमीम बैग के द्वारा कुछ लिखने कि कोशिश कि हैं!

“अंतराष्ट्रीय मज़दूर दिवस जिंदाबाद आप और हम साथ साथ हमारी एकता जिंदा बाद! इंकलाब जिंदा बाद!”

मिर्ज़ा शमीम बैग, इंदौर!

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