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डॉ.  लोहिया:अंग्रेजों से लिया लोहा, गरीबों का बना मसीहा

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23 मार्च….. इस दिन एक ऐसे शख्स ने जन्म लिया था, जिन्होंने देश की आजादी और गरीबों की भलाई के लिए अपनी जिंदगी लगा दी। हम बात कर रहे हैं डॉ. राम मनोहर लोहिया की, जिनका जन्म 23 मार्च 1910 को हुआ था।

राम मनोहर लोहिया का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में एक अच्छे परिवार में हुआ था। लेकिन उनकी जिंदगी शुरू से आसान नहीं थी। जब वे सिर्फ दो साल के थे, उनकी मां चल बसीं। फिर पिता हीरालाल ने उन्हें पाला। छोटी उम्र में ही लोहिया में कुछ अलग करने की चिंगारी दिखने लगी थी।

जर्मनी से लौटते ही आजादी की लड़ाई में कूदे लोहिया

जर्मनी से लौटते ही लोहिया आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। वे कांग्रेस से जुड़े और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाने में मदद की। अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से उन्हें 1940 में जेल हुई। फिर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया, तो 1944 में फिर जेल गए। हर बार जेल से छूटते ही वे और जोश के साथ मैदान में आते। लोहिया को गांधी जी से बहुत प्यार था, लेकिन वे देश के बंटवारे के खिलाफ थे। उनका मानना था कि आजादी सबके लिए होनी चाहिए, न कि सिर्फ कुछ लोगों के लिए।

आजादी के बाद लोहिया ने गरीबों और पिछड़ों की आवाज बनने का फैसला किया। वे चाहते थे कि देश में सबको बराबरी मिले। उन्होंने हिंदी को देश की मुख्य भाषा बनाने की बात कही, क्योंकि उनका मानना था कि अंग्रेजी से आम लोग दूर हो जाते हैं। साथ ही, उन्होंने नए राज्यों के गठन का आइडिया दिया और कहा कि विधानसभाओं में महिलाओं, अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों को 60% जगह मिलनी चाहिए। ये उस जमाने का बहुत बड़ा सपना था।

लोहिया के समाजवादी विचार

डॉ. राम मनोहर लोहिया भारतीय राजनीति और समाज में समाजवादी विचारधारा के एक प्रमुख प्रवर्तक थे। उनके समाजवादी विचार सामाजिक न्याय, समानता, और आर्थिक स्वावलंबन पर आधारित थे। लोहिया का मानना था कि समाजवाद का अर्थ केवल आर्थिक समानता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और राजनीतिक समानता भी शामिल है।

लोहिया ने राजनीति में भी समाजवादी विचारों को बढ़ावा दिया। उन्होंने गैर-कांग्रेसवाद की नीति अपनाई और विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास किया। उनका विश्वास था कि कांग्रेस का एकछत्र राज लोकतंत्र के लिए हानिकारक है और इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है।

लोहिया सिर्फ बातें नहीं करते थे, वे काम भी करते थे। वे लोगों से कहते थे कि सड़कें बनाएं, नहरें खोदें, कुएं बनाएं, ताकि गरीबों को फायदा हो। उनकी जिंदगी का मकसद था कि देश से गरीबी और गैर-बराबरी खत्म हो। 12 अक्टूबर 1967 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार आज भी जिंदा हैं।

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