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 ब्रेकअप : क्या इतना आसान होता है सबकुछ भूल जाना?

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नीलम ज्योति

  _हजारों बार सुना पर  इस  शब्द  का मतलब  अबतक  समझ नहीं आया। कोई कैसे तय कर सकता की आज से संबंध खत्म हैं. बाते खत्म करनी हैं  और अगर कभी करनी भी पड़ी तो औपचारिकता से करनी है। कैसे  कर पाते हैं आधुनिक लोग ऐसा कि आज से सब भूल जाना है इसके बारे में सोचना नही है।_

इंसान हैं या मशीन :
बेशक रिश्ते टूट जाने के बाद बस यादें रह जाती हैं। उनमें से कुछ ऐसी यादें जो समय के साथ कभी धुंधली नहीं पड़ती. वो हमारे साथ ही चली जाती हैं जलती हुई चिता के साथ धुएं में लिपट कर.
यूं तो दुनियां अजनबियों से ही भरी पड़ी है। पर दु:खद अंत की पीड़ा किसी रिश्ते में तब और भी बढ़ जाती है जब कोई अपना फिर से अजनबी हो जाता है।
माना कि संबंध टूट जाते हैं या तोड़ लिए जाते. हैं लोग अलग होते है. बदलते भी है. कभी स्वार्थ से, तो कभी इच्छा से और कभी किसी के दबाव से। लेकिन इन सब से उपजे दु:खों का सामना करना बेहद मुश्किल होता है। इन्हें देने वाले को न कोई अंदाजा है ना इस बात से कुछ लेना देना है की आप किस तकलीफ में हैं।

तुम से आप का स्तर :
ब्रेकअप की तकलीफ तब और भी बढ़ जाती है जब कभी हमें उस इंसान से बात करनी हो तो वो अपने लहजे को पल भर में बदल लेता है। वो जिसने कई महीनो ,वर्षो तक तुम कह कर बात किया था वही एक दिन आप आप कह कर बातें करने लगता है.
बातो में, शब्दों में औपचारिकता ला कर वो आपको सिर्फ ये नही बताते की हम अलग हो चुके है बल्कि ये भी जता देते है कि आपके लिए अंदर कोई जज्बात भी नही रहे।
कहां चला जाता है वो अपनापन जिसकी शुरुआत गंभीरता से की गई थी उसका अंत इतना सस्ता कैसे बना दिया जाता है। सहजता खो देने के बाद बातें करना बेहद कठिन है।
देखा जाए तो इस तरह का आचरण दो लोग के बीच एक लंबी दूरी बनाने और बरकरार रखने की कोशिश का एक अहम हिस्सा बन जाता है।
उसके प्रत्योत्तर में जब हमें भी वैसे ही औपचारिक शब्द इस्तेमाल करना पड़ता है तो एक तरह से उन कोमल भावनाओं से बेईमानी है जो हमने अपने मन में सहेज रखे होते हैं।

 *सहजता की संभावना खत्म नहीं करें :*
रिश्तों के बीच कितनी भी दूरी  हो  बातों में इतनी सहजता जरूर रहे की आपके रिश्ते  इस दुनिया के किसी भी कोने से सांस लेने लायक रहें।
   _रिश्ते तोड़ने वक्त और बनाने वक्त दोनो में हमारी जिम्मेदारी होती है की लोग हमे किस तरह याद करते हैं।  रिश्ते में क्या इतना आसान होता है सबकुछ बदल लेना? जज़्बात के साथ  साथ लहजे को भी बदल लेना? नहीं._
   हा उन लोगों के लिए आसान होता है जिन्हे भली भांति पता होता है कि दो लोगों को जोड़ने वाले शब्दों के पूल को खाई में तब्दील कैसे किया जाता है।
  (चेतना विकास मिशन)

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