यह कमाल का देश है, जहां उच्च शिक्षा पाना अपराध है और उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को अपराधी होने का अहसास कराया जाता है, जिसके खिलाफ तमाम अनपढ़ लोगों ने मोर्चा खोल दिया है. और यह तब और ज्यादा भयावह हो गया है जब से देश की सत्ता पर अनपढ़ मूर्खों ने कब्जा जमा रखा है और देश के तमाम उच्च शिक्षित पत्रकारों, लेखकों, मानवाधिकारवादियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं आदि को देशद्रोही अपराधी घोषित करने के मिशन पर निकल पड़ा है.
खबर के अनुसार, ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म ‘अनएकेडमी’ के एक ट्यूटर को इसलिए नौकरी से निकाल दिया गया कि उन्होंने यह कह दिया था कि ‘पढ़े-लिखे नेता को ही वोट देना.’ करण सांगवान नाम के ट्यूटर ने एक व्याख्यान के दौरान बिना किसी का नाम लिए छात्रों से अपील की थी कि वे अशिक्षित लोगों को सत्ता के पदों पर न बिठाएं और आगामी चुनावों में एक पढ़े-लिखे व्यक्ति को वोट दें.
इसको लेकर अनएकेडमी ने एक बयान जारी किया है. इसने कहा है कि ‘हम एक शिक्षा वाले प्लेटफॉर्म हैं जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध है. ऐसा करने के लिए हमने अपने सभी शिक्षकों के लिए एक सख्त आचार संहिता लागू की है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हमारे शिक्षार्थियों को निष्पक्ष ज्ञान तक पहुंच प्राप्त हो.
‘हम जो कुछ भी करते हैं उसके केंद्र में हमारे शिक्षार्थी होते हैं. कक्षा व्यक्तिगत राय और विचार साझा करने की जगह नहीं है क्योंकि वे उन्हें गुमराह कर सकते हैं और गलत तरीके से प्रभावित कर सकते हैं. वर्तमान हालात में, हमें करण सांगवान से अलग होने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि वह आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे थे.’
सांगवान ने कहा कि वह शनिवार को अपने यूट्यूब चैनल पर विवाद के बारे में विवरण साझा करेंगे. उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ दिनों से एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसके कारण मैं विवाद में हूं और उस विवाद के कारण मेरे कई छात्र जो न्यायिक सेवा परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उन्हें बहुत सारे परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं. उनके साथ-साथ मुझे भी परिणाम भुगतना पड़ रहा है.’
कंपनी द्वारा उनको निकाले जाने का यह क़दम उठाए जाने के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है. लोगों ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह कहना कभी ग़लत हो सकता है कि पढ़े-लिखे नेताओं को वोट देना ? इस पर टिप्पणी करने वालों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी हैं.
केजरीवाल ने नौकरी से निकाले जाने पर सवाल पूछा, ‘क्या पढ़े-लिखे लोगों को वोट देने की अपील करना अपराध है ? अगर कोई अनपढ़ है तो मैं व्यक्तिगत रूप से उसका सम्मान करता हूं लेकिन जन प्रतिनिधि अनपढ़ नहीं हो सकते. यह विज्ञान और तकनीक का युग है. 21वीं सदी में अनपढ़ जन प्रतिनिधि कभी भी आधुनिक भारत का निर्माण नहीं कर सकते.’
करण सांगवान ने इस मामले में एक वीडियो जारी किया है. सिद्धार्थ नाम के यूज़र ने उस वीडियो को साझा करते हुए लिखा है, ‘शिक्षक करण सांगवान ने जारी किया अपना नया वीडियो, कहा बच्चों की पढ़ाई का नुकसान नहीं होने देंगे. करण सांगवान के लिए भारी सम्मान.’
इधर, कुछ दिनों से अशोक विश्वविद्यालय में भी शैक्षणिक स्वतंत्रता को लेकर घमासान मचा हुआ है. पहले तो अशोक विश्वविद्यालय में एक शोध से विवाद के बाद अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर सब्यसाची दास ने इस्तीफ़ा दे दिया था, लेकिन बाद में उनके समर्थन में अर्थशास्त्र विभाग के एक अन्य प्रोफ़ेसर ने भी इस्तीफा दे दिया.
इस बीच संकाय सदस्यों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिखकर शैक्षणिक स्वतंत्रता पर चिंता जताई और फिर राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र और मानव विज्ञान विभागों ने दास के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए बयान जारी किए हैं.
राजनीति विज्ञान विभाग ने एक बयान में कहा है, ‘अशोक विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग सर्वसम्मति से प्रोफेसर सब्यसाची दास के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है. प्रोफेसर दास के काम से खुद को अलग करने के विश्वविद्यालय के रुख और उनके शोध की जांच करने के सरकारी परिषद के फैसले के बाद उन्होंने अर्थशास्त्र विभाग से इस्तीफा दिया.’
विदित हो कि सब्यसाची दास द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र में 2019 के आम चुनाव में भाजपा द्वारा वोट में संभावित हेरफेर का संकेत दिया गया है. विवाद बढ़ता देख विश्वविद्यालय ने एक अगस्त को ही कह दिया था कि इसके संकाय, छात्रों या कर्मचारियों द्वारा उनकी ‘व्यक्तिगत क्षमता’ में सोशल मीडिया गतिविधि या सार्वजनिक सक्रियता विश्वविद्यालय के रुख को प्रतिबिंबित नहीं करती है.