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क्या शिवपाल यादव अखिलेश के लिए सबसे बड़ा खतरा बनने वाले हैं? 

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों बड़ी बहस छिड़ी हुई है। चर्चा के केंद्र में विपक्ष की राजनीति है। भारतीय जनता पार्टी से लड़ाई से पहले विपक्ष अपने अंदरूनी अंतर्विरोधों को दूर कर पाने में नाकाम हो रहा है। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उप चुनाव में समाजवादी पार्टी को मात देने के बाद भाजपा ने गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट पर भी दोबारा अपना कब्जा जमा लिया। अब मैनपुरी में लोकसभा उप चुनाव होने हैं। उप चुनाव तो रामपुर सदर और मुजफ्फरनगर के खतौली विधानसभा सीट पर भी है। लेकिन, सवाल इस बार भी वही है कि क्या इन सीटों पर चुनावी लड़ाई के लिए समाजवादी पार्टी तैयार है? आजमगढ़ हो, रामपुर हो या फिर गोला गोकर्णनाथ, इन तीनों उप चुनावों में प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी की तैयारी अनमनी ही रही। आधी-अधूरी तैयारियों के साथ उतरी सपा के लिए चुनावी मैदान में बड़ा झटका रहा। अब तीन सीटों पर उप चुनाव हैं। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद एकजुट दिख रही समाजवादी पार्टी अब बिखरती दिखने लगी है। शिवपाल यादव ने अखिलेश को लेकर एक ऐसा बयान दे दिया है, जिस पर लखनऊ के राजनीतिक गलियारे में चर्चा का बाजार बहुत तेज गरमाया हुआ है। शिवपाल ने कहा है कि अखिलेश चापलूसी से गिरे हुए हैं।

शिवपाल यादव के बयान को हाल ही में होने जा रहे मैनपुरी लोकसभा और रामपुर शहर एवं खतौली विधानसभा उपचुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। शिवपाल पहले खुद को मुलायम सिंह यादव के बाद मैनपुरी का उत्तराधिकारी बताते रहे हैं। हालांकि, नेताजी के निधन के बाद उन्होंने परिवार को एकजुट दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अखिलेश यादव के साथ हर कदम पर नजर आए। मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार में भीड़ को नियंत्रित करते शिवपाल यादव के सुर में दर्द साफ दिखा। अब उनके सुर गरमाने लगे हैं। एक बार फिर निशाने पर अखिलेश यादव हैं। वर्ष 2012 में मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल की जगह अखिलेश को अपना राजनैतिक उत्तराधिकार सौंपा, तभी से यह तकरार चली आ रही है। मुलायम के निधन के पहले तक अखिलेश और शिवपाल दो ध्रुवों पर दिख रहे थे। यूपी चुनाव 2022 में कुछ समय के लिए साथ आए। लेकिन, चुनाव खत्म और दूरियां फिर से शुरू हो गईं। मुलायम के निधन ने परिवार को जोड़ा, लेकिन अब एक बार फिर दूरी बढ़ती दिख रही है। इसका कारण शिवपाल को समाजवादी पार्टी में वह तरजीह न मिल पाना है, जिसका हक वे मांगते रहे हैं। शिवपाल ने पहले इटावा में और फिर गोरखपुर में ऐसा बयान दिया है, जिस पर माहौल गरमाया हुआ है।

Aparna Yadav

मैनपुरी के चुनावी मैदान में अपर्णा यादव के भी उतारे जाने की हो रही है चर्चा
अपर्णा यादव पर दिया गोलमोल जवाब
शिवपाल यादव ने अपर्णा यादव पर गोलमोल जवाब दिया। शिवपाल यादव से जब मीडिया ने सवाल किया कि अगर अपर्णा यादव को भारतीय जनता पार्टी से उम्मीदवार बनाया जाता है तो क्या वह उनका समर्थन करेंगे? इस पर शिवपाल ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि जब कुछ ऐसा होगा तो देखा जाएगा। शिवपाल से मैनपुरी के चुनावी मैदान में उतरने पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अभी इस पर कुछ नहीं कह सकते हैं। अभी उचित समय नहीं है। आगे देखिए क्या होता है? समय आने पर सबको पता चल जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव को लेकर शिवपाल अपनी दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, उन्हें मनाने की परिवार में कोशिशें चल रही हैं। मैनपुरी से मुलायम के अगले वारिश का पता चलना है। ऐसे में वे खुद को इससे दूर नहीं कर पा रहे हैं।

प्रसपा को लेकर भी दिया है बयान
शिवपाल यादव ने एक बार फिर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को अपनी पार्टी करार दिया। उन्होंने कहा कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ही असली समाजवादी पार्टी है। सच्चे समाजवादी प्रसपा से जुड़े हुए हैं। इससे साफ लग रहा है कि वे अब बगावत के मूड में हैं। ऐसे में चिंता अखिलेश यादव की बढ़नी तय हैं। शिवपाल यादव की कोशिश समाजवादी पार्टी में मुलायम खेमे के नेताओं की सेंधमारी की दिखने लगी है। वे जानते हैं कि अकेले उनके लड़ने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। वर्ष 2017 में सपा से अलग होने के बाद से उनके पास गिनाने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है। लेकिन, मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनसे जुड़े नेताओं को अपने साथ जोड़कर शिवपाल अपनी राजनीति को एक नया मुकाम देने की कोशिश में हैं। ऐसे में आने वाले समय में उनकी रणनीति पर हर किसी की नजर होगी।

Mainpuri Seat2

अखिलेश यादव सैफई पहुंचकर परिवार को एकजुट करने का कर रहे प्रयास
सैफई से स्थिति नियंत्रित करने का प्रयास
समाजवादी पार्टी के भीतर एकजुटता दिखाने की कोशिश में अखिलेश यादव लगातार जुटे हुए हैं। वे किसी भी सीनियर नेता को इस समय नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहते। पिछले दिनों उन्होंने शिवपाल को भी साधने की कोशिश की है। मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव में वे कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं। यह सीट मुलायम सिंह यादव की पारंपरिक सीट रही है। लेकिन, पिछले चुनाव में जिस प्रकार का मुकाबला हुआ और भाजपा ने अपनी पैठ सीट पर बनाई है। ऐसे में अगर मुलायम परिवार से कोई और चुनावी मैदान में उतरा तो फिर स्थिति सपा के लिए मुश्किल हो जाएगी। ऐसे में अखिलेश सैफई पहुंच गए हैं। वहां वे परिवार के लोगों को एकजुट कर रहे हैं। अंदरखाने में चर्चा है कि मुलायम की सीट से तेज प्रताप यादव को उतारने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए शिवपाल को मनाने की कोशिश परिवार के लोगों के माध्यम से कराने की कोशिश की जा रही है।

चर्चा यह भी है कि शिवपाल यादव को मैनपुरी पर अपनी दावेदारी छोड़ने की स्थिति में सपा में वापसी तक के संदेश भेजे जा रहे हैं। हालांकि, इस प्रकार के संकेत यूपी चुनाव के दौरान भी दिए गए थे। तब सपा ने उन्हें अपना स्टार प्रचारक बनाकर साधा था। लेकिन, रिजल्ट के बाद अखिलेश यादव ने उन्हें प्रसपा नेता बताकर सपा विधायक दल की बैठक तक में नहीं बुलाया। प्रसपा को मजबूत करने की सलाह दे डाली। अब शिवपाल हर कदम फूंक-फूंककर उठा रहे हैं।

Mainpuri Seat3

शिवपाल यादव ने मुलायम के निधन के बाद पहली बार बोला है अखिलेश पर हमला
क्यों महत्वपूर्ण है मैनपुरी का रण?
मैनपुरी समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही है। वे लगातार यहां से जीतते रहे हैं। वे नहीं उतरे तो सपा ही जीती। उनके जीते जी भाजपा यहां पर अपना परचम नहीं लहरा पाई। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट जैसी परंपरागत सीटों को खोने के बाद अखिलेश यादव पिता की विरासत वाली सीट को किसी भी स्थिति में नहीं खोना चाहते। ऐसे में वे अपने पसंदीदा उम्मीदवार को यहां से जिताकर पार्टी, समर्थक और विरोधियों को अपनी ताकत का अहसास कराना चाहते हैं। मैनपुरी के रण से वे दिखाना चाहते हैं कि नेताजी के जाने के बाद भी उनकी जनता पर पकड़ मजबूत है। पार्टी पर भी और परिवार पर भी। वहीं, परिवार के एक सिरे पर खड़े शिवपाल के सामने भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। मैनपुरी के जरिए वे खुद को मुलायम सिंह यादव का असली वारिश बताने की कोशिश कर रहे हैं।

मुलायम के विचारों पर प्रसपा गठन की बात करने वाले शिवपाल ने अपनी पार्टी को ही असली समाजवादी पार्टी कहा है। उप चुनाव में खुद उतरने के संकेत दिए हैं। इससे साफ है कि वे चाहते हैं कि मैनपुरी में उनकी धमक सुनाई दे। यादवलैंड में वे मुलायम सिंह यादव के बाद असली यादव नेता के रूप में स्थापित हों। अखिलेश उनकी सहमति से उम्मीदवार घोषित करें। वे अपनी रणनीति में अभी तक सफल होते दिख रहे हैं। साथ ही, वे जानते हैं कि अगर वे चुनावी मैदान में उतरते हैं और अखिलेश परिवार के किसी अन्य सदस्य को मैदान में उतारते हैं तो स्थिति विकट होगी।

परिवार में फूट पड़ सकती है। यह किसी के लिए भी सही नहीं होगा। लेकिन, शिवपाल लगातार करीब एक दशक से परिवार में हाशिए पर हैं। ऐसे में अब बारी उनकी है। ऐसे में वे अपने पत्ते अंत तक नहीं खोलना चाहते। यह सपा के टेंशन बढ़ा दिया है। संकेतों में तो शिवपाल ने मैनपुरी से चुनावी मैदान में उतरने की बात कर दी है। अगर ऐसा होता है तो फिर मैनपुरी की जंग जोरदार हो जाएगी।
क्या अपर्णा बन सकती हैं उम्मीदवार?
अपर्णा यादव के उम्मीदवार बनाए जाने की भी सुगबुगाहट शुरू हुई है। हालांकि, इस मसले पर अपर्णा का कोई बयान नहीं आया है। भारतीय जनता पार्टी की ओर से ऐसे कोई संकेत नहीं दिए गए हैं। लेकिन, चर्चा चल रही है। इस चर्चा को अगर एक विकल्प मान लें तो फिर अखिलेश का परिवार से एक उम्मीवार वाला फॉर्मूला धराशायी हो सकता है। वैसे अपर्णा भाजपा में जाने के बाद से न तो कोई पद पर हैं। न ही उन्होंने अब तक कोई चुनाव लड़ा है। सपा में रहते हुए यूपी चुनाव 2017 में वे उतरी थीं और भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से लखनऊ कैंट सीट पर हार गई थीं। अब अगर भाजपा उन्हें चुनावी मैदान में उतारती है तो उन्हें जिम्मेदारी लेनी पड़ सकती है।

ऐसे में शिवपाल उनके साथ होंगे या फिर उनके विरोध में ताल ठोंकते दिखेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। वहीं, शिवपाल यादव के चुनावी मैदान में उतरने पर भाजपा उन्हें भी समर्थन दे सकती है। भाजपा के सामने इस सीट पर कई ऑप्शन खुले हैं। वहीं, अखिलेश की चुनौती पार्टी और परिवार को एकजुट रखने का है।

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