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क्या , किसान आन्दोलन नहीं है कृषि हित में ?

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 -राकेश दुबे

देश में किसान आंदोलन के पक्ष और विपक्ष में तमाम तर्क दिए जा रहे हैं, मगर कुछ अन्य बातें भी हैं, जिन पर गौर किया जाना चाहिए।वैसे अच्छी पहल है कि हरियाणा सरकार ने उस अधिकारी का तबादला कर दिया है, जिसने किसानों के सिर फोड़ने की बात कही थी।हकीकत  में  असली मुद्दे की बात वही की वही है कि जिन तीन कृषि विधेयकों पर संसद की मुहर लग चुकी है, और वे कानून बन चुके हैं, उनका क्या हो ? ऐसा इसलिए, क्योंकि अभी दुष्काल की परछाई पूरे देश पर है, और यह समय विशेषकर किसानों के लिए काफी मुश्किल भरा है।इसी  संदर्भ में कानून में जो बात कही गई है कि किसान कृषि उत्पाद बाजार समिति नहीं जाते, सही जान पड़ती है। वाकई, जहां किसान जाते हैं, उस जगह को ही बाजार माना जाना चाहिए। इसलिए, ये कानून मूलत: किसानों की मदद ही करेंगे। फिर भी, जबरन इनको लागू करने का कोई तुक नहीं है।

किसानों से सरकार को बात करनी चाहिए। वार्ता ही नहीं, उन्हें यह गारंटी देनी चाहिए कि उनकी शिकायतों पर गौर किया जाएगा। कोई कैसे इनकार कर सकता है कि संसद सत्र के आखिरी दिन बिना किसी सार्थक बहस के कृषि विधेयक को पारित कर दिया गया |सरकार ने न सिर्फ आनन-फानन में ये विधेयक पारित किए, बल्कि उनको लागू करने में भी जल्दबाजी की। इससे उसके खिलाफ और ज्यादा माहौल बन गया। ऐसा संदेश गया कि कुछ न कुछ अंदरूनी बात तो है कि सरकार इन कानूनों को बिना बहस के और इतनी जल्दबाजी में लागू करने जा रही है। समाधान की यदि बात करें, तो सरकार को फिलहाल जल्दबाजी से बचना चाहिए। किसानों को यह भरोसा देना चाहिए कि अभी इन कानूनों को टाल दिया जाएगा और अगले साल पर्याप्त बहस के बाद ही इनको लागू किया जाएगा। किसानो  यह भी समझाया जाना चाहिए कि कानून उनके हित में है और जरूरत के मुताबिक इनमें कुछ बदलाव भी किए जा सकते हैं|नीति आयोग ने बाकायदा एक शोधपत्र तैयार किया है कि आखिर किस तरह से इन कानूनों को लागू करना चाहिए, ताकि इनका अपेक्षित लाभ हासिल किया जा सके। शोधपत्र में उन्होंने विस्तार से बताया है कि कैसे इन कृषि सुधारों का फायदा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगा।

संभव हो, तो इस  अध्ययन पर विचार-विमर्श होना चाहिए, ताकि किसान और सरकार के टकराव में बीच का कोई रास्ता निकल सके।अभी तनातनी में दोनों पक्ष  कृषि के वास्तविक संकट को नजरंदाज कर रहे हैं। इस बार खरीफ फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है। अमूमन बारिश अगस्त के महीने में होती थी। सरकार की तरफ से किसानों को नए बीज देने, उन्हें क्रेडिट मुहैया कराने अथवा अन्य राहत देने की घोषणाएं भी की जाती थीं। इस साल सितंबर महीने में अप्रत्याशित रूप से तेज बारिश हो रही है, और सरकार उदासीन है। जून-जुलाई में बोई गई फसलें बिल्कुल तैयार होने को थीं, लेकिन अब वे जमीन पर लोटने लगी हैं। साफ है, खरीफ के इस नुकसान का असर भारतीय कृषि पर पड़ेगा। रबी की फसलें अच्छी होने के बावजूद ‘एग्रीकल्चर आउटपुट’ कम रहेगा। किसानों के लंबे आंदोलन और सरकार की उदासीनता का सबसे अधिक नुकसान कृषि को हो रहा है, और परोक्ष रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था और कृषि से जुड़ी कंपनियों के मुश्किलों में रहने के कारण रोजगार विकास दर नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। देश हित में सोच-समझकर आगे बढ़ने की जरूरत है। किसानों और सरकार के बीच यह टकराव अब समाप्त होना चाहिए।

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