संदीप पाण्डेय
1917 में इंग्लैण्ड के बाल्फोर घोषणा के बाद, जिसमें फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए देश बनाने की बात कही गई और 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ में दो देश बनाने का एक प्रस्ताव पारित किया गया। इजराइल तो बन गया लेकिन विडम्बना यह है कि दूसरा देश आज तक नहीं बना। फिलिस्तीन के लोग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और इजराइल उन्हें खत्म करना चाहता है।
1947 से लगातार इजराइल का क्षेत्रफल बढ़ता ही गया है और फिलिस्तीन सिकुड़ता गया। फिलिस्तीन की भूमि कब्जा करने के अलावा इजराइल ने फिलिस्तीनी इलाकों में बाहर से आए यहूदी लोगों को बसाया है। तीसरे देशों की मध्यस्थता से हुए समझौतों में इजराइल पीछे हटने को तैयार भी हो जाता है लेकिन फिर वायदा खिलाफी करता है।
अब फिलिस्तीन के दो भू-भाग में से एक गज़ा में हमास की चुनी हुई सरकार है। इजराइल और अमरीका हमास को आतंकवादी संगठन बताते हैं। हमास ने हाल में इजराइल पर हमला किया। 17 सितम्बर को अल-अक्सा मस्जिद, जो जेरूसलम में स्थित है और यह स्थान तीनों धर्मों- यहूदी, ईसाई व इस्लाम – के लिए पवित्र है, इजराइल ने यहां यहूदियों को प्रवेश करने दिया किंतु मुस्लिम अरब लोगों को रोक दिया। इसलिए हमास ने 7 अक्टूबर को अपनी ताजा कार्रवाई अल-अक्सा के नाम पर की है।
हमास के हमले का समर्थन नहीं किया जा सकता किंतु पिछले 76 सालों में इजराइल ने फिलीस्तीनियों के ऊपर जो अत्याचार किया है उससे हमास के हमले की तुलना भी नहीं की जा सकती। ताजा युद्ध में भी जितने इजराइलियों को हमास ने मारा है उतने तो उसके बाद इजराइल ने सिर्फ फिलिस्तीनी बच्चों को मार डाला है। फिलिस्तीन में अब बच्चे हथेलियों पर अरबी भाषा में अपने नाम लिख रहे हैं ताकि यदि वे मारे जाएं तो उनकी शिनाख्त हो सके।
मुझे एक समूह, जिसमें कई देशों के लोग शामल थे, के साथ 2010-11 में गज़ा जाने का मौका मिला। हम सड़क के रास्ते ईरान, तुर्की, सीरिया, लेबनान, मिस्र होते हुए गज़ा पहुंचे थे। रास्ते में सीरिया की राजधानी दमिश में हमास के मुखिया खालिद मेशाल से हमारी मुलाकात हुई। खालिद मेशाल ने यह देखते हुए कि समूह में कुछ भारतीय भी हैं अपनी बातचीत में गांधी और नेहरू की काफी तारीफ की।
नेहरू की इसलिए कि जब 1948 में नकबा नामक घटना में इजराइल द्वारा युद्ध छेड़ने के बाद बड़े पैमाने पर फिलिस्तिनियों को अपना इलाका छोड़ कर आस-पास के देशों जैसे सीरिया, जॉर्डन, मिस्र में शरण लेनी पड़ी तो नेहरू ने इन शरणार्थी शिविरों का दौरा किया था।
जब हममें से किसी ने खालिद मेशाल से पूछा कि गांधी उनके आदर्श कैसे हो सकते हैं क्योंकि हमास तो इजराइल के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल करता है। खालिद मेशाल ने बताया कि उनके लिए गांधी प्रेरणा के स्रोत इसलिए हैं क्योंकि किसी ऐसी लड़ाई में जिसमें आप लगभग निहत्थे हों और आपसे बहुत ज्यादा ताकतवर दुश्मन के पास एक से एक खतरनाक हथियार हों तो गांधी से कमजोर को मजबूत के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा मिलती है।
उनका कहना था कि उन्हें हिंसा का इस्तेमाल प्रतिरोध के लिए करना पड़ता है क्योंकि यदि वे इजराइल के लगातार हो रहे हमलों का जवाब बिलकुल न दें तो इजराइल फिलिस्तीन को खत्म ही कर डालेगा। यानी वे अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह तो गांधी ने भी कहा है कि यदि कायरता और हिंसा के बीच चुनना पड़ जाए तो हिंसा ही चुनना बेहतर है।
यदि हम देखें तो पिछले 76 सालों में फिलिस्तीन अरब लोगों के मरने की संख्या यहूदियों की तुलना में बहुत ज्यादा है, फिलिस्तीन और इजराइल के लोगों में से किसका ज्यादा नुकसान हुआ है, कहां बमबारी ज्यादा हुई है, हजारों फिलिस्तीनी इजराइल के जेलों में बंद हैं जबकि ताजा हमले में करीब 150 इजराइली नागरिकों को बंधक बनाया गया है, फिलिस्तीनी तो अपने घर छोड़-छोड़ कर जाने के लिए मजबूर हैं और यहूदी लोगों को दुनिया के अन्य भागों से बुलाकर यहां बसाया जाता रहा है तो हमें समझ में आ जाएगा कि कौन किस पर भारी पड़ा है।
ताजा युद्ध में भी इजराइल लगभग आधा गज़ा खाली करा रहा है। युद्ध के बाद इस पर पूर्व की तरह इजराइल कब्जा कर लेगा और करीब 400 वर्ग किलोमीटर का गज़ा आधा रह जाएगा। कल्पना कीजिए भारत के किसी मध्यम आकार के शहर के आधे हिस्से को कहा जाए कि वह अपना इलाका छोड़ दूसरे आधे में चले जाएं। इस तरह की अफरा-तफरी के फिलिस्तीनी लोग आदी हो गए हैं।
गज़ा को दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेल कहा जाता है। दो तरफ इजराइल है, एक तरफ समुद्र, जहां से एक बार जब तुर्की ने कुछ राहत सामग्री भेजने की कोशिश की तो इजराइल ने उसके पानी के जहाज पर हमला कर दिया। चौथी तरफ अल-रफा से मिस्र में प्रवेश किया जा सकता है लेकिन मिस्र का रवैया फिलिस्तीनियों के प्रति बहुत सख्त रहता है और मिस्र के अधिकारी बहुत भ्रष्ट हैं।
जब हमारा समूह 2011 में गज़ा के लिए राहत सामग्री लेकर गया तो सीरिया से आए पानी के जहाज से मिस्र में समान उतारने के लिए 4,500 डॉलर और चार ट्रकों से समान अल-रफा पार कराने के लिए 10,500 डॉलर मिस्र के अधिकारियों ने घूस ली। इसलिए मिस्र से फिलिस्तीनियों के लिए कोई सहानुभूति की उम्मीद नहीं की जा सकती।
इजराइल पर दबाव बनाया जाना चाहिए कि वह तुरंत गज़ा के ऊपर हमले बंद करे और हमास के पास जो भी इजराइली नागरिक बंधक हैं उन्हें रिहा किया जाना चाहिए। साथ ही इजराइल की जेलों में बंद हजारों फिलिस्तीनियों को छोड़ा जाना चाहिए और सबसे महतवपूर्ण बात कि फिलिस्तीन नामक देश अस्तित्व में आए जिसे एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की मान्यता मिले।
अमरीका और पश्चिमी देशों को इजराइल का साथ देने के बजाए इजराइल और फिलिस्तीन के बीच तटस्थ मध्यस्थ की भूमि अदा करते हुए दोनों के बीच विवाद का हल निकालने में मदद करनी चाहिए। फिलीस्तीन के लोगों को शांति और आत्म-सम्मान के साथ से रहने का मौका मिलेगा तभी इजराइली भी अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पाएंगे।
(संदीप पाण्डेय, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव हैं।)