अग्नि आलोक
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 *सदा सजग रहना अनिवार्य*

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शशिकांत गुप्ते

आज जब मै सीतारामजी से मिलने गया तब वे संत तुलसीदास रचित यह चौपाई पढ़ रहे थे।
सिया राम मय सब जग जानी
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी
मैने सीतारामजी से पूछा आज उक्त चौपाई का स्मरण करने का कोई विशेष कारण है?सीतारामजी ने कहा संत तुलसीदासजी रामभक्त थे,उन्हे सम्पूर्ण संसार राम मय दिखता था।
मैने कहा अब तो सियासत भी राम हो गई है।
सीतारामजी ने कहा रामजी के समय,तो बकरी और शेर एक ही घाट पर एक साथ पानी पीते थे।
तुलसीदास ने रामजी की महिमा का महत्व समझाते हुए निम्न चौपाई भी लिखी है।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई
चौपाई का भावार्थ है।
रामजी पर आस्था रखने से विष अमृत हो जाता है,सागर गाय के खुर में समा जाता है,और अग्नि, शीतलता प्रदान करती है।
मैने कहा आज आस्था,उन्माद में बदल गई है। मुख में राम बगल में छुरी कहावत चरितार्थ होते दिख रही है। शीतलता तो कहीं दिखाई ही नहीं देती वैमनस्य की अग्नि फैलाई जा रही है।
कलयुग में उल्टी गंगा बहा रही है।
इस संदर्भ में शायर मशहर अफरीदी रचित यह शेर प्रासंगिक है।
मोहब्बत,भाईचारा, अम्न का पैगाम किसको दें
ये अमृत पी गए अस्लाफ़ खाली जाम किसको दें
(अस्लाफ़=पुरखे)
इस शेर का अर्थ को यूं भी समझ सकते हैं कि, मोहब्बत,भाईचारा, आम्न ये सभी मानवीय संवेदनाओं को जागृत करने
वालें शब्द सिर्फ किताबों में कैद होकर रह गए हैं।
सीतारामजी ने मेरे वक्तव्य का समर्थन करते हुए कहा,आज हमें जरूरत है,स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को पढ़ने की,जो हम भूल गए हैं।
मैने कहा सिर्फ भूले ही नहीं हैं,हम बहुत भ्रमित किए जा रहें हैं।
आज एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत असमंज्यता की स्थिति पैदा की जा रही है।
स्वतंत्रता प्राप्ति कर,अठहत्तर वर्ष पूर्ण हो गए हैं लेकिन भ्रम ऐसा फैलाया जा रहा है कि,स्वतंत्रता प्राप्त के बाद का सत्तर वर्ष का इतिहास शून्य है?
सीतारामजी ने मेरे कथन का समर्थन करते हुए कहा कि,इस मुद्दे पर सन 1954 में प्रदर्शित फिल्म जागृति के गीत को पंक्तियों का स्मरण होता है।
प्रसिद्ध गीतकार प्रदीप द्वारा रचित गीत की पंक्तियां प्रस्तुत है।
मंजिल पे आया मुल्क हरबला को टाल के
भटका न दे तुम्हे कोई धोखे में डाल के
संभलने के लिए इस पंक्ति को बार बार पढों।
सपनो के हिंडोलों में मगन होके न झूलो

सपने मतलब आज सिर्फ और सब्ज बाग ही दिखाए जा रहें हैं।
अंत यही कहना है कि,इस पंक्ति न कभी नहीं भूलना है।
मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के
अब किसी भी बला को हावी नहीं होने देना है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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