S P Mittal Ajmer
11 मार्च को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश की कुछ वीरांगनाओं से मुलाकात की। यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री गहलोत शहीदों की पत्नियों का मान सम्मान कर रहे हैं। लेकिन सरकार की ओर से ऐसी वीरांगनाओं को अन्य वीरांगनाओं के सामने खड़ा करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता। भाजपा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के नेतृत्व में तीन वीरांगनाएं पिछले एक पखवाड़े से धरना प्रदर्शन कर रही है। मुख्यमंत्री गहलोत से मिलने के लिए इन वीरांगनाओं ने सीएम के सरकारी आवास के बाहर प्रदर्शन किया। पुलिस इन वीरांगनाओं को इधर उधर से खदेड़ रही है, लेकिन सीएम गहलोत को इन तीन वीरांगनाओं से मिलने की फुर्सत नहीं है। यह सही है कि तीनों वीरांगनाएं भाजपा सांसद के नेतृत्व में विरोध कर रही है, लेकिन इससे सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए था। अच्छा होता कि सीएम गहलोत इन तीनों वीरांगनाओं से मिलकर समस्या का समाधान निकालते। हो सकता था कि सीएम से मुलाकात करने पर मामला अपने आप शांत हो जाता। आखिर इन तीनों वीरांगनाओं के पतियों ने भी देश की खातिर शहीद हुए हैं। ऐसी वीरांगनाओं से मुलाकात करने में सीएम को कोई एतराज होना ही नही चाहिए। लेकिन इसके उलट सीएम गहलोत ने अन्य वीरांगनाओं को बुलाया और संघर्ष शील तीन वीरांगनाओं के खिलाफ बयान दिलवा दिया। क्या मुख्यमंत्री का यह कृत्य उचित है? क्या राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि वीरांगनाओं के मुकाबले में वीरांगनाओं को खड़ा कर दिया जाए? हो सकता है कि तीन वीरांगनाओं की मांग नियमों के दायरे में नहीं आ सकती हो, लेकिन सीएम गहलोत कम से कम तीनों वीरांगनाओं से मिल तो सकते हैं। जब 15-20 वीरांगनाओं को सीएमआर बुला कर मुलाकात की जा सकती है, तब तीन वीरांगनाओं से बात क्यों नहीं की जा सकती है? सीएम गहलोत का कहना है कि तीन वीरांगनाओं की आड़ में भाजपा राजनीति कर रही है। हो सकता है कि सीएम का यह आरोप सही हो, लेकिन वीरांगनाओं के सामने वीरांगनाओं को खड़ा कर मुख्यमंत्री कौन सी राजनीति कर रहे हैं? यदि सीएम गहलोत पहले दिन ही वीरांगनाओं को बुलाकर बात कर लेते तो भाजपा को राजनीति करने का अवसर ही नहीं मिलता। यदि वीरांगनाओं के मुद्दे पर भाजपा ने राजनीति की है तो सीएम गहलोत ने वीरांगनाओं में ही दो गुट करवा कर राजनीति को और बढ़ावा दिया है।