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समाजसेवी द्रगपाल सिंह लोधी  को छेड़ा तो खैर नहीं

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सुसंस्कृति परिहार

भगतसिंह को अपना आदर्श मानने वाले हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र युवा क्रांतिकारी एवं सामाजिक कार्यकर्ता द्रगपाल सिंह लोधी के दमोह से जिलाबदर की आहट से दमोह जिले के लोग जबरदस्त रूप से आक्रोशित हुए हैं उन्होंने इसके विरोध में गत दिनों एक वृहत जुलूस निकालकर ना केवल प्रशासन की बल्कि सरकार की नींद उड़ा दी है। विदित हो दमोह ज़िला लोधी बहुत जिला है। सरकार बनाने बिगाड़ने में इनका बड़ा हाथ रहता है। इस प्रतिरोध जुलूस में लोधियों की बड़ी तादाद में उपस्थिति इस बात की चेतावनी भी है यदि जिलाबदर जैसी कार्रवाई की जाती है तो लोधी समाज और अन्य समाज के तमाम लोग जो जुलूस में शरीक हुए भाजपा से अपना नाता तोड़ लेंगे जिसका असर दूर तलक जाएगा ।

विदित हो,द्रगपाल सिंह पर अभी धारा 110 की कार्रवाई की गई है ।एक समाजसेवी को गुंडा बनाकर उसे जिलाबदर की पुलिस की योजना से आशंकित होकर ही इस जुलूस का आयोजन किया गया था। क्योंकि आमतौर पर जिलाबदल की कार्रवाई गुंडों और ऐसे लोगों के खिलाफ होती रही है जो जिले के लिए ख़तरनाक हो सकते हैंया जिनके कारण शांति भंग हो सकती है।एक युवा जो ग्रामीणों की छोटी छोटी समस्याओं को हल कराने गांव के लोगों के साथ उनकी आवाज़ बुलंद करते हुए उनकी समस्याएं हल कराता हो वह गुंडा कैसे हो सकता है। उसमें भगतसिंह जैसे काम को अंजाम तक पहुंचाने की जिजीविषा है और वह तेजस्वी स्वर में बुंदेली भाषा में जब अधिकारों के लिए गरजता है तो पुलिस और प्रशासन हिल जाता है।इसे गुंडा या अशांति फैलाने वाला कैसे कह सकते हैं। शांति भंग का ठीकरा तो प्रशासन के सिर ही जाता दिख रहा है जब जबरन द्रगपाल पर उल्टी-सीधी धारा लगाकर जनता को जुलूस निकालने प्रेरित किया गया।
बुन्देलखण्ड में यकीनन द्रगपाल सिंह ने क्रांति का आगाज़ कर दिया वे भगत सिंह को उद्धृत करते हुए कहते हैं — “असली क्रांतिकारी सेनाएं गॉवों और फैक्ट्रियों में निवास करती है- किसान औऱ मजदूर। वो कहते थे कि किसान सोता हुआ शेर है अगर वो एक बार अपनी नींद से जाग गया तो लक्ष्य प्राप्ति तक उसे कोई नही रोक सकता।”
बुंदेलखंड के इस पिछड़े क्षेत्र में अब क्रांति की अलख जग चुकी है।अब हमें उस ओर इस क्रांति को ले जाना है जहाँ सारी ताकत आम व्यक्ति में निहित हो, जहाँ अब किसानों को अपनी छोटी छोटी समस्याओं के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़े। हमें देश के अन्नदाता को सरकारी दफ्तरों में सम्मान मिले, उनकी वेषभूषा को देखकर उनको धिक्कारा न जाये इस ओर हमे आगे बढ़ना है।हमें बढ़ना है उस ओर जहां हमारा युवा, नेताओं, अधिकारियों की आंख में आंख डालकर गलत का विरोध कर सके। ये जनसैलाब एक तमाचा है उन लोगो के गाल पर जो जाति विशेष की राजनीति करते है। अब हम सब की जिम्मेदारी है कि हम बुंदेलखंड की राजनीति को जातिवाद से ऊपर उठकर मुद्दों की ओर मोड़ें।
इस रैली में हर वर्ग, हर जाति के व्यक्ति ने आकर दिखा दिया कि अगर लड़ाई सत्य की है तो सब साथ है।
अब हमें संगठित होकर बुंदेलखंड के किसान को न्याय दिलाना है, उसको सशक्त करना है हर तरीके से।
युवा होने के नाते हमे प्रण लेना है कि लाखों क्रांतिकारियों के कर्ज की अदायगी अब हम करेंगे जिन्होंने हँसते हँसते हमारे लिए कुर्बानियां दी थी।
हमें युवाओं को आवाज बननी है गरीब, असहाय, किसान, मजदूर, महिलाओं की। मेहनतकश क़ौम के शोषण को रोकना अब हम युवाओं की जिम्मेदारी है और ये जिम्मेदारी लेने आगे आना ही पड़ेगा। हमें अकर्मण्यता, जमाने भर की मजबूरियां त्याग जबरदस्त संघर्ष करना पड़ेगा। एक ऐसा संघर्ष जो न सिर्फ हमारे जीवन मे सार्थकता लाये बल्कि साथ साथ पूरी आवाम के जीवन मे खुशहाली भर दे।

द्रगपाल के ये विचार करता आपको किसी गुंडे या धारा 110 के अपराधी के लगते हैं।यह एक जुझारू इंकलाबी साथी की आवाज़ है जिसे जनता की चुनी हुई सरकार के प्रशासन को इसलिए पसंद नहीं क्योंकि वह सरकार के गहरे दबाव में है इसलिए दमोह ज़िले के लोगों को यह कदम उठाने विवश होना पड़ा है।याद करें अगर के एक गुमनाम शहीद बहादुर सिंह लोधी ने आज़ादी के संग्राम का बिगुल सन् 1842में अंग्रेजों के खिलाफ उठाया था।गौरव की बात ये है कि अभाना के समीपवर्ती गांव दतला का समीप एक क्रांतिकारी युवा द्रगपाल सिंह अपने युवा साथियों और ग्रामीण अंचिल की मां बहनों के साथ उनके अधिकारों को दिलाने की कोशिश में लगा है।तब अंग्रेजों का शासन था आज हमारी जनता का अपना राज है इसलिए नाकारा सरकार को आवाज सुनाना ज़ुर्म कतई नहीं हो सकता पुलिस प्रशासन और सरकार को इसे सुनना ही होगा वरना इस जनांदोलन की प्रज्जवलित चिंगारी
आतिशी बनकर सरकार की ज़मीन हिला सकती है। विदित हो द्रगपाल किसी दल विशेष से जुड़े हुए नहीं हैं वे ईमानदारी से आम लोगों की समस्या समाधान में दिलचस्पी रखते हैं और सुलझाने प्रयासरत हैं।ऐसे युवा को यदि छेड़ा जाता है तो जो कुछ भी घटित होगा उसका जिम्मेदार पूरी तरह दमोह जिला प्रशासन होगा । शहर में इस बात की बड़ी चर्चा है यदि बुंदेलखंड में नक्सलवाद की ज़रा भी छाया होती तो नक्सली करार कर देते यदि गरीब ना होता तो
कई छापे पड़े गए होते।देखना है कथित लोकतांत्रिक शिवराज सरकार इसे कैसे लेती है?

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