हमने कहा बिलकुल होते थे पर अब अपराधी और अपराध के प्रति समाज का जो नज़रिया है वो नही होता था, न ही मीडिया इतनी बेशर्म थी
16 दिसंबर 2012 की रात जो घनौनी जघन्य घटना घटी थी उसके बाद देश में जो उबाल आया था वो याद ही होगा सबको, जबकि उस समय तत्कालीन सरकार ने कार्यवाही में कोई कोताही नहीं बरती थी , अपराध को दबाना या छुपाना जैसा कोई आरोप नही था सरकार पर, और तत्कालीन सत्ता उदासीन भी नही थी पीड़िता के इलाज को लेकर बेहद संवेदनशीलता भी दिखाई थी, इसके बाद भी देश उबल रहा था और वही लोकतंत्र की ताकत की पहचान है ,
निर्भया का कांड कितना भी जघन्य और पीड़ादायक हो वो एक सोचा समझा संगठित अपराध नहीं था वो उन अपराधियों की वीभत्स हवस थी, उसके पीछे कोई हेतु और उद्देश्य नही था वो न तो किसी जाति और समूह को डराने या चेतावनी देने के लिए किया गया था न ही वो अपराधी उस अपराध के जरिए समाज को कोई घिनौना संदेश देना चाहते थे, फिर भी बिना किसी भेदभाव के देश का जनमानस अक्रोशित हुआ और आंदोलित हुआ ,
मुझे तो याद नहीं कि एक सिंगल बंदा भी उस अपराध या अपराधियों के समर्थन में एक शब्द भी बोला हो …
और बीते कुछ सालों में हमारी सोच का इतना “विकास” हो चुका है की हम बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा यात्रा निकाल लेते हैं एक बलात्कारी को सजा के विरोध में शहर के शहर जला डालते हैं, सजायाफ्ता बलात्कारियों की सजाएं माफ होती हैं उनका स्वागत फूल मालाओं से होता हैं मिठाइयां बांटी जाती हैं, रूह कंपा देने वाली घटनाओं के समर्थन में IT cell narrative देकर पोस्ट तैयार कर देता है और ज़हर पिए लोग उसे फॉरवर्ड करके फैलाने मे लग जाते हैं , ऐसा लगता है बलात्कार अब अपराध रहा ही नहीं ये अपराध सिर्फ़ तब है जब किसी एजेंडे में फिट बैठ रहा हो, वरना ये तो एक जायज सज़ा है
मीडिया चरण वंदना में लगी रहती है, सरकार की खामोशी और अकर्मण्यता पर कोई सवाल नही उठता
लोग अपने काम धंधों में लगे रहते हैं कुछ संवेदनशील लोगों के सिवा किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता , अब लोगों का खून नही खौलता क्युकी खून रहा ही कहां, दरअसल ज़हर बह रहा है रगों में और ज़हर में उबलने की प्रकृति नही होती
हां हमारे देश और समाज की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई हैं …. अब हम इंसान नही भेड़ें हैं जिन्हे तिज़ारती सत्ता पिपासु जॉन्बीज अपना नफा नुकसान देखकर हांकते हैं और हम बस चलते चले जाते हैं
अभी लल्लन टॉप पर आरजेडी के सांसद मनोज झा का इंटरव्यू देखा। आपने कई नेताओं के दफ़्तर देखे होंगे जिनमें बड़ी-बड़ी अलमारियों में किताबें नजर आती हैं। लेकिन किताबें सिर्फ अलमारियों में ही नजर आती हैं…दिमाग खाली होते हैं। लेकिन मनोज झा के दफ़्तर से ज्यादा आपको उनके दिमाग में किताबें नज़र आएंगी। मैं तो आरजेडी का ये सौभाग्य मानता हूं कि उनके पास राज्यसभा में बोलने के लिए मनोज झा जी जैसा सांसद है जो तथ्यों के साथ बोलता है।
मनोज झा राज्यसभा के लिए एकदम सही चुनाव हैं क्योंकि राज्यसभा को ऐसे ही उच्च सदन नहीं कहा जाता वहां ऐसे ही पढ़े लिखे लोग हुआ करते थे अब इसकी कमी है। सपा कांग्रेस बीएसपी सभी को राज्यसभा में ऐसे ही लोगों को भेजना चाहिए जो न केवल इन पार्टियों के हित में होगा बल्कि जनता के हित में भी होगा।
आप सोच रहे होंगे कि बीजेपी का नाम क्यों नहीं लिखा…क्योंकि बीजेपी की मिट्टी उपजाऊ नहीं रही वहां अब ऐसे नेता पनप ही नहीं पाएंगे।
खैर, वक्त निकालकर ये इंटरव्यू देख लीजिए…खुद को थोड़ा समृद्ध पाएंगे।