अग्नि आलोक
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 यह डट कर संविधान के पक्ष में खड़े होने का समय है 

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मंजुल भारद्वाज

आज जिस लेखक का ज़मीर,दृष्टि,विवेक ज़िंदा है ऐसे लेखकों को खूब लिखने की जरूरत है। कविता,कहानी, नाटक,लेख या जिस भी शिल्प वो प्रवीण हों को लिखने की ज़रूरत है. उनकी रचना अपने शब्दों में क्रांति का लावा समेटे हों जो जनता में आत्मबल पैदा करें. जनता में संवैधानिक चेतना जगाएं !
सत्य को उजागर करने वाले रंगकर्मियों शहर,गांव,बस्ती ,गली सब जगह नाटक मंचित कर सत्ता को सच से रूबरू कराओ। यह पलायन का नहीं डट कर संविधान के पक्ष में खड़े होने का समय है भारत को बचाने के लिए !
रंग
-मंजुल भारद्वाज
रंग
मन लुभाते हैं
मन ललचाते हैं
रंग अपने रंग में
रंग लेते हैं
रंग क्यों भाते हैं ?

लाल,नीला,पीला रंग लिए
जब सजता है अम्बर
तब हरियाली से
खिल उठती है वसुंधरा !

दुधिया रंग लिए जब
बरसता है पानी
हरे जंगल में
जब पर्वतों से गिरते हैं
गाते प्रेम धुन बजाते
दुधिया रंग के झरने
तब मन प्रकृति में
जा बसता है
बावंरा हो नाच उठता है
जी उठता है
प्रकृति सा
क्यों ?

रंग है
तो रूप है
रूप है
तो श्रृंगार है
श्रृंगार है
तो बहार है
बहार है तो
उमंग है
उमंग है तो
तरंग है
तरंग है तो
प्रेम है
प्रेम है तो
मिलन है
मिलन है तो
जीवन है
जीवन है तो दुनिया है !

जीवन और दुनिया का
मूल हैं रंग !

सारे रंग
जब एक साथ आते हैं
तो आकाश को
इन्द्रधनुष से सजाते हैं
फिर यह रंग
बदरंग क्यों हो जाते हैं?

काला रंग
तारों का श्रृंगार कर
आपको आकाश गंगा दिखा
रहस्य,रोमांच,कौतुहल,
जिज्ञासा से सराबोर कर
चाँद तारों को छूने के
ख़्वाब बुनता है
मन्नतों के पूरा होने की
दुआ पढ़ता है
धरती को ब्रह्मांड दिखाता है
आप सबमें विज्ञान जगाता !

रंग एक दूसरे को
ख़ूब सुहाते हैं
भाते हैं
फ़िर रंग आपसी
वैमनस्य का प्रतीक
क्यों बन जाते हैं ?

इन रंगों को
कौन अलग करता है?
लाल, नीला, पीला
भगवा, हरा,सफ़ेद
क्यों बंट जाते हैं?

वो कौन है
जो रंगों को बांटता है?
रंगों को जोड़ने वाला
इंसान
रंगों को बांटने वाला
इंसानियत का शत्रु !

कोई भी रंग श्रेष्ठ नहीं है
सब रंग समान हैं
एक दूसरे के पूरक हैं
एक दूसरे का
विविध स्वरूप हैं
जीवन, पृथ्वी का भूगोल
मौसम, ऋतु, मानवीय स्वभाव
विविध हैं
विविधता ही जीवन
समग्रता,सम्पूर्णता और सर्वसमावेशी
होते हैं रंग !

रंग का बाहरी
आवरण है
भाव विश्व
भावनाओं का सैलाब
रंग का आंतरिक
सौन्दर्य है चैतन्य
दृष्टि और विचार !

चंद सियासतदां
चुनिन्दा रंगों पर
अपना एकाधिकार जमाते हैं
वर्चस्ववाद की ताल ठोंकते हैं
इन रंगों को
वो अपनी विचारधारा बताते हैं
जो रंग प्रेम बढ़ाये
वो विचार
जो नफ़रत फैलाये
वो विकार !

सियासतदांओं से रंग छीनो
रंगों को एकाधिकार से
वर्चस्ववाद से
नफ़रत से मुक्त करो
अपने जीवन को
रंगों से भरो
प्रेम से रहो
एक दूसरे के अन्दर समा जाओ
बस जाओ
जैसे सारे रंग
एक दूसरे में समा
सफ़ेद हो जाते हैं
शांति का गीत गाते हैं
सफ़ेद से बिखर
इन्द्रधनुष हो जाते हैं !

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