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जय हो फ़कीर बाबा : चुनावी वैतरणी और आतंकी हमले का दर्शन 

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पुष्पा गुप्ता 

  जम्मू-कश्मीर के पुंछ में एयर फ़ोर्स के एक काफ़िले पर आतंकी हमला. कई पर्यवेक्षक इस बात को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं कि क्यों जैसे ही चुनाव नज़दीक होते हैं और भाजपा पर हार के ख़तरे मँडराते हैं, आतंकवादी हमले और सीमा पर घुसपैठ की ख़बरें ज़ोर पकड़ने लगती हैं। मालूम हो कि लोकसभा चुनाव के दो चरणों के मतदान पूरे हो चुके हैं और भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं बताई जा रही है।

     ऐसे में कई सवाल उठना लाज़मी भी हैं। मसलन :

~ प्रधानमंत्री मोदी के कथित “मज़बूत” नेतृत्व में राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला इतना लचर और हल्का कैसे हो सकता है? 

~राष्ट्र की सुरक्षा में दिनोंरात तैनात “मज़बूत” सरकार से हर बार ऐसी चूक कैसे हो जाती है? 

    इस बार भी कई लोग दो चरणों के चुनाव सम्पन्न होने के बाद और भाजपा की इनमें ख़राब स्थिति के मद्देनज़र इस बात को लेकर कयास लगा ही रहे थे कि सरहद पर तनाव की कोई स्थिति पैदा होने या फिर कोई आतंकी हमला होने की संभावना है और इतने भी यह घटना हो जाती है!

ऐसे सवालों का उठना अनायास या अप्रत्याशित है भी नहीं। आज अगर हम देश की परिस्थितियों पर नज़र दौड़ाएँ तो इस बात से शायद ही कोई इनकार करे कि पिछले दस सालों में अभूतपूर्व रूप से बढ़ी महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। मोदी सरकार की अमीरपरस्त नीतियों की वजह से आम जनता में भयंकर असन्तोष और गुस्सा है।

      अपनी हार के डर से घबरायी भाजपा चुनाव में जीतने के लिए तमाम हथकण्डों का इस्तेमाल करने के बाद अब अन्धराष्ट्रवाद और धर्म के नाम पर कमल को खिलाने की हर सम्भव कोशिश में लग गयी है। कभी पाकिस्तान तो कभी चीन के ख़िलाफ़ अन्धराष्ट्रवादी युद्धोन्माद भड़काकर भाजपा और संघ परिवार देश की जनता को मूर्ख बनाने के काम में लग जाते हैं, उनका ध्यान असल मुद्दों से हटाकर नकली मुद्दों में फँसाया जाता है।

      ख़ैर, पिछले दिनों पुंछ में हुआ यह हमला मोदी की “सुरक्षा की गारंटी” के हवाई वायदों की पोलपट्टी भी खोलता है। हालांकि अब इसी हमले की आड़ में भाजपा और मोदी सरकार देशवासियों को “मज़बूत” सरकार चुनने के लिए कहेगी। यानी चित भी मेरी और पट भी मेरी! आतंकी हमलों से बचना है तो भाजपा को चुनो!

      लेकिन यही भाजपा 10 साल से राज कर रही है और आतंकी हमले रोक नहीं पा रही है! देश की मेहनतकश आबादी और आम नागरिकों को हर बीतते दिन के साथ “सुरक्षा की गारंटी” और “मज़बूत नेतृत्व” की असलियत अब समझ में आ रही है।

      सैनिकों की मौत की ज़िम्मेदारी लेने और अपनी नाकामी को बताने के बजाय यह सरकार इस वक़्त इसपर चुनावी रोटियाँ सेंकने में लगी है। 15 अप्रैल को दिल्ली में भाजपा के मुख्यालय में हुए एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण देते हुए कहा था कि “आज देश और दुनिया के कई जगह तनावग्रस्त है, युद्ध की स्थिति छाई हुई है और ऐसे में हमारे नागरिकों की सुरक्षा हमारा प्राथमिक काम बन जाता है और इसलिए पूर्ण बहुमत के साथ एक स्थिर और मज़बूत सरकार का चुना जाना ज़रूरी है।”

      इस “मज़बूत सरकार” और इनके “राष्ट्रवाद” की असलियत से कौन वाकिफ़ नहीं है! कारगिल सैनिकों के ताबूतों के ख़रीद में घोटाले से लेकर पुलवामा और बालाकोट की असलियत किसी से छिपी नहीं है। भूतपूर्व गवर्नर और भाजपा समेत तमाम सरकारों में उच्च पदों पर रह चुके सत्यपाल मलिक ने पुलवामा हमले में मोदी सरकार को सीधे तौर पर कठघरे में खड़ा किया था और हमले का ज़िम्मेदार ठहराया था।

आज फासिस्ट मोदी सरकार के इस षडयंत्र को समझने की ज़रूरत है। 2019 में पुलवामा हमले के बाद (जिसकी जाँच अब तक नहीं हुई है) मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर जमकर वोट बटोरे थे। 

     यह वायदा किया था कि उनकी सरकार आने के बाद देश की “सुरक्षा” की “गारण्टी” उनके हाथ में होगी। लेकिन इस हमले के बाद उनकी इस “गारण्टी” का भी पर्दाफ़ाश हो चुका है। पर बात केवल यहीं ख़त्म नहीं होती। इस घटना को अब मुद्दा बनाकर मोदी सरकार अब फिर से इस चुनाव में वोट माँग रही है। यानी इस सरकार की लापरवाही की वजह से से जो घटना घटी (हालाँकि कुछ लोग इसपर भी सन्देह जता रहे हैं कि यह केवल लापरवाही है या कुछ और), सरकार इसमें अपनी ग़लती कुबूल करने के बजाय उल्टा इसपर वोट माँग रही है।

       डीएसपी देवेन्द्र सिंह को भी मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही 2020 में हिज़बुल्लाह के टॉप आतंकवादियों के साथ पकड़ा गया था। यह सरकार तो देश के नौजवानों से भी ठेके पर “राष्ट्रभक्ति” करवाने वाली सरकार है जैसा कि अग्निवीर योजना ने दिखलाया।

      इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि चुनाव के समय सीमा पर तनाव या मुठभेड़ की ख़बर आते ही गोदी मीडिया से लेकर फ़ासीवादियों का पूरा प्रचार तंत्र देश में युद्धोन्माद और अन्धराष्ट्रवाद की लहर फैलाने में लग जाता है। “दुश्मन को सबक सिखाओ!”, “हमें नौकरी नहीं बदला चाहिए”, “घर में घुसकर मारो!”, “देशहित के लिए आगे आओ!” 

     जैसे नारों की शोर में लोगों के जीवन की असल समस्याएँ दूर धकेल दी जाती हैं और आख़िरकार इन सैन्य झड़पों और युद्धोन्माद का ख़ामियाज़ा आम मेहनतकश जनता को भुगतना पड़ता है। 

     सीमा पर तनाव हो, युद्धोन्माद हो या फ़िर साम्प्रदायिक दंगे हर जगह मरते आम लोग है जबकि भाजपा के नेता-मंत्री और उनके बेटे-बेटियाँ विदेशों में अय्याशियाँ करते हैं। 

    देश में इस तरह के उन्माद फैलाकर लोगों की लाशों पर वोट बटोरना फ़ासिस्टों की राजनीति का हिस्सा है।

     आज ज़रूरत है कि मज़दूरों-ग़रीब किसानों और तमाम मेहनतकश लोगों को फ़ासीवादियों की राजनीति से वाकिफ़ कराया जाये और इनके अन्धराष्ट्रवादी, आक्रामक युद्धोन्मादी शोर का पर्दाफ़ाश किया जाये। हालांकि पिछले 10 सालों में देश की आम आबादी इस बात को अपने अनुभवों से समझने भी लगी है।

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