कोर्ट में दाखिल की गई चार्जशीट में दिल्ली पुलिस की यह टिप्पणी सचमुच गंभीर है कि जेल स्टाफ पूरी तरह बिका हुआ था और सुकेश ऊपर से नीचे तक हर एक को पैसे देता था। यानी पूरे कुएं में ही भांग घुली हुई थी।
जेलों में अपराधियों को इसलिए रखा जाता है ताकि उन्हें उनके किए की सजा मिल सके। इसलिए भी रखा जाता है ताकि वे समाज में रहकर लोगों को और तकलीफ नहीं दें और जो तकलीफ उन्होंने लोगों को दी है उसके अनुरूप सजा के भागी बन सकें। लेकिन जब यही जेल सजा नहीं बल्कि अपराधियों की मौज-मस्ती का अड्डा बन जाए तो भारतीय जेलों को लेकर बनती जा रही यह धारणा और मजबूत होती है कि पैसे के दम पर यहां सब कुछ खरीदा जा सकता है। जेलकर्मियों का ईमान खरीदने का यह वाकया तो सचमुच चौंकाने वाला है जिसमें दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद महाठग सुकेश चन्द्रशेखर ने रोहिणी जेल में कैद के दौरान न केवल अपने लिए अलग बैरक का बंदोबस्त कर रखा था बल्कि जेल के 81 कर्मचारियों को हर माह रिश्वत के रूप में अपनी तरफ से ‘पगार’ भी देता था।
महाठग सुकेश
दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने जांच में खुलासा किया है कि सुकेश जेल के इन कर्मचारियों को हर माह डेढ़ करोड़ रुपए बांटता था। इतना ही नहीं सुकेश ने बॉलीवुड की अभिनेत्रियों पर भी महंगे तोहफों की खूब बारिश की है। सुकेश ठगी के खेल में नया खिलाड़ी नहीं है। कई राज्यों में उस पर ठगी के कई मामले दर्ज हैं। कोर्ट में दाखिल की गई चार्जशीट में दिल्ली पुलिस की यह टिप्पणी सचमुच गंभीर है कि जेल स्टाफ पूरी तरह बिका हुआ था और सुकेश ऊपर से नीचे तक हर एक को पैसे देता था। यानी पूरे कुएं में ही भांग घुली हुई थी। वैसे तो जेल का खौफ ही किसी को अपराध की दुनिया में कदम रखने से रोकता है। पर जब जेल में कैद नहीं, बल्कि घर जैसा माहौल मिलने लग जाए तो फिर भला कौन खौफ खाएगा? ऐसे दर्जनों किस्से आए दिन भारतीय जेलों को लेकर सामने आते रहते हैं जब कैदियों की आवभगत ऐसी होती है मानो वे कैदी नहीं बल्कि जेल प्रशासन के मेहमान हैं। जेलों मेंं मोबाइल फोन व नशे की सामग्री कैसे पहुंच जाती है यह किसी से छिपा नहीं है। कभी ऐसे मामले उजागर होते हैं तो जेल प्रशासन कुछ समय के लिए सख्ती दिखाता है फिर वही पुरानी चाल शुरू हो जाती है।
महाठग सुकेश के इस दु:साहस भरे कारनामे के तार कहां तक जुड़े हैं इसकी पूरी पड़ताल होनी चाहिए। जेल मैन्युअल कागजों में ही क्यों रह जाता है यह बड़ा सवाल इसलिए है क्योंकि अपराध की प्रकृति कैदी के साथ जेल में होने वाला बर्ताव तय करती रही है। चांदी की खनक के आगे अपराधियों को जेलों में यों मौज-मस्ती का मौका मिलता रहा तो अपराधियों में भय कितना व क्यों रह जाएगा, यह भी सबसे बड़ा सवाल है।