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जामुन की लकड़ी आप और हम

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हमारे देश में कई तरह के पेड़ उगाए जाते हैं, जिसमें जामुन का पेड़ (Berry tree) भी शामिल है. यह एक सदाबहार पेड़ है, जिस पर बैगनी रंग के फल उगते हैं. इसको भारत के अलावा दक्षिण एशिया के देशों में भी उगाया जाता है. जामुन के पेड़ को राजमन काला जामुन, जमाली ब्लैकबेरी आदि नामों से भी जाना जाता है. इस पेड़ का 70 प्रतिशत फल खाने योग्य होता है, जिसमें ग्लूकोज और फ्रक्टोज, दो मुख्य स्रोत पाए जाते है. इसके अलावा कैलोरी कम होती है, लेकिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है.

हर व्यक्ति अपने घर की  पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी का एक टुकड़ा जरूर रखें, एक रुपए का खर्चा भी नहीं और लाभ ही लाभ। आपको मात्र जामुन की लकड़ी को घर लाना है और अच्छी तरह से साफ सफाई करके पानी की टंकी में डाल देना है। इसके बाद आपको फिर पानी की टंकी की साफ सफाई करवानें की जरूरत नहीं पड़ेगी।_

_क्या आप जानते हैं कि नाव की तली में जामुन की लकड़ी क्यों लगाते हैं, जबकि वह तो बहुत कमजोर होती है..?_              

_भारत की विभिन्न नदियों में यात्रियों को एक किनारे से दूसरे किनारे पर ले जाने वाली नाव की तली में जामुन की लकड़ी लगाई जाती है। सवाल यह है कि जो जामुन पेट के रोगियों के लिए एक घरेलू आयुर्वेदिक औषधि है, जिसकी लकड़ी से दांतो को कीटाणु रहित और मजबूत बनानें वाली दातुन बनती है, उसी जामुन की लकड़ी को नाव की निचली सतह पर क्यों लगाया जाता है। वह भी तब जबकि जामुन की लकड़ी बहुत कमजोर होती है। मोटी से मोटी लकड़ी को हाथ से तोड़ा जा सकता है। क्योंकि इसके प्रयोग से नदियों का पानी पीनें योग्य बना रहता है।_      

_वास्तव में बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि जामुन की लकड़ी एक चमत्कारी लकड़ी है। यह पानी के अंदर रहते हुए सड़कर खराब नहीं होती। बल्कि इसमें एक चमत्कारी गुण होता है। यदि इसे पानी में डूबा दिया जाए तो यह पानी का शुद्धिकरण करती है और पानी में कचरा जमा होनें से रोकती है। कितना आश्चर्यजनक है कि हम जिन पूर्वजों को अनपढ़ मानते हैं उन्होंने नदियों को स्वच्छ बनाए रखनें और नाव को मजबूत बनाए रखनें का कितना असरकारी और सरल समाधान खोज निकाला।_

_बावड़ी की तलहटी में 700 साल बाद भी जामुन की लकड़ी खराब नहीं हुई…._      

 _जामुन की लकड़ी के चमत्कारी परिणामों का प्रमाण हाल ही में मिला है। देश की राजधानी दिल्ली में स्थित निजामुद्दीन(पूर्व में हिन्दू मंदिर हुआ करता था) की बावड़ी की जब सफाई की गई तो उसकी तलहटी में जामुन की लकड़ी का एक स्ट्रक्चर मिला है। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख श्री के एन श्रीवास्तव जी नें बताया कि जामुन की लकड़ी के स्ट्रक्चर के ऊपर पूरी बावड़ी बनाई गई थी। शायद इसीलिए 700 साल बाद तक इस बावड़ी का पानी मीठा है और किसी भी प्रकार के कचरे और गंदगी के कारण बावड़ी के वाटर सोर्स बंद नहीं हुए। जबकि 700 साल तक इसकी किसी ने सफाई नहीं की थी।*_

                _आपके घर में जामुन की लकड़ी का उपयोग…_                  

_यदि आप अपनी छत पर पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी डाल देते हैं तो आप के पानी में कभी काई नहीं जमेगी। 700 साल तक पानी का शुद्धिकरण होता रहेगा। आपके पानी में एक्स्ट्रा मिनरल्स मिलेंगे और उसका टीडीएस बैलेंस रहेगा। यानी कि जामुन हमारे खून को साफ करने के साथ-साथ नदी के पानी को भी साफ करता है और प्रकृति को भी साफ रखता है।_

_कृपया हमेशा याद रखिए कि दुनियाभर के तमाम राजे रजवाड़े और वर्तमान में अरबपति रईस जो अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंता करते हैं। जामुन की लकड़ी के बनें गिलास में पानी पीते हैं…!_

जामुन की लकड़ी का महत्त्व

अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकड़ा पानी की टंकी में रख दिया जाए, तो टंकी में शैवाल या हरी नहीं जमती है और न ही पानी सड़ता है. इसके साथ ही टंकी को लंबे समय तक साफ़ करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. यही मुख्य कारण है कि इसका इस्तेमाल से बड़े पैमाने पर नाव बनाने का काम किया जाता है. बता दें कि नाव का निचला सतह जो हमेशा पानी में रहता है, वह जामुन की लकड़ी से बना होता है. जब गांव देहात में कुंए की खुदाई की जाती है, तब उसके तलहटी में जामुन की लकड़ी का ही इस्तेमाल होता है, इसको जमोट कहा जाता है. आजकल लोग जामुन की लकड़ी का उपयोग घर बनाने में भी करते हैं.

हाल ही में दिल्ली के महरौली स्थित निजामुद्दीन बावड़ी की मरम्मत का काम किया गया है. लगभग 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहां पानी के सोते बंद नहीं हुए हैं. भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव की मानें, तो इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहां जामुन की लकड़ी की वो तख्ती साबुत है, जिसके ऊपर यह बावड़ी बनाई गई थी. बता दें कि उत्तर भारत के अधिकतर कुंए और बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था. इस बावड़ी में भी जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया था, जो कि 700 साल बाद भी गली नहीं है. खास बात है कि इन सोतों का पानी अब भी काफी मीठा और शुद्ध माना जाता है.

पनचक्की बनाने में जामुन की लकड़ी का उपयोग

प्राचीन समय से पर्वतीय क्षेत्र में आटा पीसने की पनचक्की का उपयोग बहुत किया जाता है. इसके  पानी से चलाया जाता है, इसलिए इसको “घट’ या “घराट’ कहा जाता है. घराट की गूलों से सिंचाई का काम भी किया जाता है. यह एक प्रदूषण से रहित परम्परागत प्रौद्यौगिकी है. इसे जल संसाधन का एक प्राचीन और समुन्नत उपयोग कहा जा सकता है. आजकल बिजली या डीजल से चलने वाली चक्कियों के कारण कई घराट बंद हो गए हैं, तो वहीं कुछ बंद होने के कगार पर हैं. बता दें कि पनचक्कियां हमेशा बहते रहने वाली नदियों के तट पर बनाई जाती हैं.

जानकारी के लिए बता दें गूल द्वारा नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है, जिससे पानी में तेज प्रवाह उत्पन्न होता है. इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र (फितौड़ा) रखकर फिर उसके ऊपर चक्की के दो पाट रखे जाते हैं. इसके बाद निचला चक्का भारी और स्थिर होता है, तो वहीं पंखे के चक्र का बीच का ऊपर उठा नुकीला भाग (बी) ऊपरी चक्के के खांचे में निहित लोहे की खपच्ची (क्वेलार) में फंसाया जाता है. पानी के वेग से चक्की का ऊपरी चक्का घूमने लगता है. इस पूरी प्रक्रिया में जामुन की लकड़ी का उपयोग होता है. बता दें कि पनाले और फितौड़ा में भी जामुन की लकड़ी से बनाया जाता है.

इसके अलावा जामुन की लकड़ी को एक अच्छा दातुन भी माना जाता है. इतना ही नहीं, जलसुंघा यानी ऐसे विशिष्ट प्रतिभा संपन्न व्यक्ति, जो कि भूमिगत जल के स्त्रोत का पता लगाते हैं, वह भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं.

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