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पत्रकारों के पत्रकार महान पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी

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विश्वमानवता के लिए वरदान सोवियत अक्टूबर क्रांति - अग्नि आलोक

मुनेश त्यागी

   पत्रकारों के पत्रकार महान पत्रकार, गणेश शंकर विद्यार्थी को उनकी पुण्यतिथि 25 मार्च 1931, पर शत शत नमन वंदन और क्रांतिकारी सलाम। 23 मार्च 1931 को शहीदे आजम भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिए जाने के बाद कानपुर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। गांधी जी ने इन दंगों को शांत करने की जिम्मेदारी हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक और सांप्रदायिक सौहार्द के सबसे बड़ी महारथी महान पत्रकार प्रताप के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी को दी थी।
 जब कानपुर में दंगा हो रहा था तो दंगों को शांत करने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी अकेले ही साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करने के लिए दंगाग्रस्त  क्षेत्र में चले गए और वहां दंगों को शांत करने के लिए लोगों से अपील करने लगे। मगर उनका सांप्रदायिक भीड़ से सामना हुआ, सवाल जवाब हुए मगर सांप्रदायिक लोग उनकी बातों का जवाब नहीं दे सके और इन से रुष्ट होकर सांप्रदायिक तत्वों ने उनकी हत्या कर दी। मगर अपने विचारों में प्रतिबंध होने के कारण और सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे के चैंपियन गणेश शंकर विद्यार्थी मरे नहीं हैं। उनके विचार, उनके लेख और उनका कार्यक्रम हमारे बीच में है जो जनता की एकता, समानता, समता चाहता था जो सदियों पुराने शोषण, अन्याय, जुल्म और भेदभाव का खात्मा करना चाहता था और एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहता था जिसमें हिंदू और मुसलमान और सारे धर्म के लोग मिलजुल कर रहे, भाईचारे से रहे, आपसी सहयोग और सांप्रदायिक सौहार्द से रहें।
गणेश शंकर विद्यार्थी इन्हीं विचारों के लिए जिए और मरे। यह गणेश शंकर विद्यार्थी थे जिन्होंने अपने पत्र ,"प्रताप" के माध्यम से अंग्रेजों के जुल्मों का विरोध किया, उनके दमन का विरोध किया, और किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों, नौजवानों, दबे कुचले, पीड़ितों, वंचितों, गरीबों के मसीहा बने। उन्होंने गरीब तबके के लोगों को वाणी प्रदान की, उन्हें आवाज दी, उन्हें बोलना सिखाया लिखना सिखाया।
  यह गणेश शंकर विद्यार्थी ही थे जिन्होंने भगत सिंह को असली भगत सिंह बनाया। भगत सिंह को अपने पत्र प्रताप में लिखने का मौका दिया और यहीं पर प्रताप में लिख लिखकर भगत सिंह एक बड़े लेखक बने, बौद्धिक क्रांतिकारी बने। भगत सिंह ने यहीं पर अपने विचारों का आदान प्रदान किया और अंग्रेजों के जुल्मों का विरोध किया, आजादी की मांग को जनता के सामने लाए, अंग्रेजों की गुलामी और दमन का भंडाफोड़ किया। 
गणेश शंकर विद्यार्थी का कार्यालय जैसे शहीद क्रांतिकारियों का घर हो। शहीद क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र कार्यालय में आकर ठहरते थे, रुकते थे, क्रांति की योजनाएं तैयार करते थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने उन्हें यह सब सुविधाएं उपलब्ध कराई और अपने पत्र को क्रांति का उदघोश बनाया। गणेश शंकर विद्यार्थी सांप्रदायिकता और जातिवाद का खुलकर विरोध करते थे। 
उनका अखबार प्रताप सांप्रदायिक एकता का सबसे अच्छा नमूना था इसी के जरिए वे हिंदू मुस्लिम एकता की बात करते थे, सांप्रदायिकता के परखच्चे उड़ाते थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने एक अखिल भारतीय संस्था का निर्माण किया था जिसमें जातिवाद और सांप्रदायिकता का विरोध करने की बात कही गई थी, जनता की जनवादी अधिकार दिलाने की मांग की गई थी और भारत की गुलामी का जोरदार विरोध किया गया था।

अपने इन विचारों के कारण गणेश शंकर विद्यार्थी अंग्रेजों की आंखों में कांटे की तरह चुभते थे। उनके पत्र प्रताप को कई बार जप्त किया, उस पर बंदिशें लगाई गईं, उस पर तमाम तरह के अंकुश लगाने की कोशिश की गई, मगर यह गणेश शंकर विद्यार्थी की जीवटता और प्रतिबद्धता का कमाल था कि वह बार-बार जुर्माने भरते रहे, पत्र की जब्ती सहते रहे मगर उन्होंने अपनी पत्र को कभी बंद होने नहीं दिया और उसे जनता की आवाज और आजादी का वाहक ही बना कर रखा।
गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारों के पितामह थे, एक महान पत्रकार थे अगर किसी को पत्रकारिता करनी है और सीखनी है तो वह गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र का अध्ययन करे, उसका जज्बा देखे, उसके तेवर देखें और पत्रकारिता के पेशे में आए। गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने पत्र को कभी भी मुनाफे का अड्डा नहीं बनाया।
उन्होंने अपने पत्र में जनता की बात की, शोषण जुल्म अन्याय गैरबराबरी का विरोध किया और अपनी पत्र प्रताप के माध्यम से एक ऐसे समाज की कल्पना की कि जिस में सब को रोटी मिले, सबको रोजी मिले, सबको शिक्षा मिले, सबके स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए, सब को रोजगार मिले, भूमि पर जोतने वाले को अधिकार मिले। चारों ओर समता, समानता, भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता, जनवाद, गणतंत्र और समाजवाद का साम्राज्य कायम हो। ये सब मांगे गणेश शंकर विद्यार्थी अपने पत्र प्रताप के माध्यम से उठायी।
गणेश शंकर विद्यार्थी आज के पत्रकारों की तरह गोदी पत्रकार नहीं थे। उन्होंने कभी भी जमीदारों का या अंग्रेजों की सहायता नही ली। वे हमेशा अंग्रेजों की गुलामी की, जमीदारी प्रथा की खिलाफत में करते रहे और अपने पत्र को आजादी का दीवाना और पत्रकारिता का प्रकाश स्तंभ बनाए रखा।
हमारे देश और समाज को आज भी हजारो गणेश शंकर विद्यार्थी ओं की जरूरत है जो समाज को सत्ता को असली आइना दिखा सकें और उनके पंजों का शिकार न बने, उनके शोषण में शामिल ना हों।

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