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कैलाश मानसरोवर :औरंगज़ेब,बाजबहादुर, जवाहरलाल नेहरू और नरेंद्र मोदी

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भारत में सनातन धर्म के मानने वालों में शिव जी की पूजा और आस्था रामचंद्र से अधिक यूँ है कि जितने मंदिर और मुर्तियाँ शिव जी और शिवलिंग की इस देश या विदेश में है उतनी रामचंद्र जी की नहीं।

धार्मिक महत्व की बात करूँ तो शिव को ईश्वर माना गया है और रामचंद्र जी को ईश्वर का अवतार पुरुषोत्तम अर्थात पुरुषों में सर्वोत्तम अर्थात मनुष्य।

रामचंद्र जी के इसी धरती पर कम से कम 12 जगह जन्म लेने की मान्यता के आधार पर रामजन्म भूमि मानकर मंदिर बनाया गया और आज भी पूजा जाता है जिनमें 5 स्थान तो आज की अयोध्या में ही है , शेष कुरुक्षेत्र , कंबोडिया , पाकिस्तान और थाईलैंड में हैं।

कहने का अर्थ यह है कि रामचंद्र जी के जन्म को लेकर सनातनी ही एकमत नहीं हैं जबकि शिव के वास वाले “कैलाश मानसरोवर” को लेकर सभी एकमत हैं और किसी तरह का कोई विवाद कभी नहीं रहा। आज भी नहीं है।

मैं आश्चर्यचकित हूँ कि आजतक भारत या भारत सरकार या 800 साल बाद बने शुद्ध हिन्दू शासक ने कभी कैलाश मानसरोवर को चीन के कब्ज़े से ना तो मुक्त कराने की कोई कोशिश की ना कैलाश मानसरोवर को चीन की कैद से मुक्त कराने के लिए कोई आंदोलन हुआ।

अर्थात शिव जी के निवास स्थान को चीन ने कब्ज़ा किया हुआ है और उसे मुक्त कराने की आजतक किसी सरकार ने कोई कोशिश नहीं की जबकि 12 जगह जन्म की मान्यता वाले रामचन्द्र जी के जन्मस्थान पर देश में पूरी महाभारत हो चुकी है और हो रही है।

चलिए आपको एक सच बताता हूँ

आज़ादी के बाद चीन ने “कैलाश पर्वत व कैलाश मानसरोवर” और अरुणाचल प्रदेश के बड़े भूभाग पर जब कब्ज़ा कर लिया तो देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी UNO पहुंचे की चीन ने ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा कर लिया है, हमारी ज़मीन हमें वापस दिलाई जाए।

इस पर चीन ने जवाब दिया कि हमने भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया है बल्कि अपना वो हिस्सा वापस लिया है जो हमसे भारत के एक शहंशाह ने 1680 में चीन से छीन कर ले गया था। यह जवाब UNO में आज भी ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में मौजूद है।

जानते हैं चीन ने किस शहंशाह का नाम लिया था ? “औरंगज़ेब” का।

दरअसल चीन ने पहले भी इस हिस्से पर कब्ज़ा किया था, जिस पर औरंगज़ेब ने उस वक़्त चीन के चिंग राजवंश के राजा “शुंजी प्रथम” को ख़त लिख कर गुज़ारिश की थी कि कैलाश मानसरोवर हिंदुस्तान का हिस्सा है और हमारे हिन्दू भाईयों की आस्था का केन्द्र है, लिहाज़ा इसे छोड़ दें।

लेकिन जब डेढ़ महीने तक किंग “शुंजी प्रथम” की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो औरंगजेब ने चीन पर चढ़ाई कर दी जिसमें औरंगजेब ने साथ लिया कुमाऊँ के राजा “बाज बहादुर चंद” का और सेना लेकर कुमाऊँ के रास्ते ही मात्र डेढ़ दिन में “कैलाश मानसरोवर” लड़ कर वापस छीन लिया।

ये वही औरंगज़ेब है जिसे की कट्टर इस्लामिक बादशाह और “हिन्दूकुश” कहा जाता है, सिर्फ उसी ने हिम्मत दिखाई और चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी थी।

इतिहास के इस हिस्से की प्रमाणिकता को चेक करना हो तो आज़ादी के वक़्त के UNO के हलफनामे देख सकते हैं जो आज भी संसद में भी सुरक्षित हैं।

और आप हिस्ट्री ऑफ उत्तरांचल :-ओ सी हांडा
तथा द ट्रेजेड़ी ऑफ तिब्बत :– मन मोहन शर्मा
भी पढ़े

Jagmohan Malkoti जी।।

( व्हाया:आनंद कुमार :समता मार्ग)
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