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‘इमरजेंसी’ के प्रचार में भाजपा को डुबो देंगी कंगना

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पिछले कुछ दिनों से भाजपा ने बेहद कुशलतापूर्वक अपने लिए नारी सुरक्षा का मुद्दा हथियाया हुआ था।  इसके लिए उसने कड़ी मशक्कत की, और टारगेट को पश्चिम बंगाल और ममता बनर्जी से हटने नहीं दिया था। लेकिन बुरा हो भाजपा की मंडी सांसद कंगना रनौत की डिब्बे में बंद फिल्म इमरजेंसी का, जिसकी रिलीज का वक्त 6 सितंबर आ गया। 

नतीजा यह हुआ है कि भाजपा की नवोदित सांसद और बॉलीवुड सिने अभिनेत्री को अपने निर्देशन में बनी फिल्म के मुफ्त में प्रचार के लिए उसी तरह से मीडिया में जाकर प्रचार करना पड़ रहा है, जैसे लोकसभा चुनावों में अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए पीएम मोदी को 80 से ज्यादा प्रायोजित इंटरव्यू करने पड़े थे। 

लेकिन एक फर्क है। नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू प्रायोजित होते थे, विभिन्न मीडिया चैनलों को उनका भोंपू बनना होता था।  स्वाभाविक तौर पर इसका उन्हें व्यावसायिक लाभ मिलता है।

लेकिन कंगना रनौत कोई ऐसी हस्ती नहीं हैं जो इन मीडिया चैनलों को आर्थिक लाभ दिला सकें, हां विवादास्पद बयान से इन चैनलों को सुर्खियां बटोरने और भीड़ को अपनी ओर खींचने का मौका तो पक्का मिलेगा, और दर्शकों की भीड़ और मीम्स बनने से आर्थिक लाभ चैनल अवश्य उठा रहे हैं।

सबसे पहला स्कूप दैनिक भास्कर ने 5 दिन पहले किया, जिसमें बॉलीवुड के अभिनेताओं-अभिनेत्रियों के बारे में टिप्पणी करते हुए कंगना रनौत बोल पड़ीं कि ये दिन-रात नकली सेट और नकली माहौल में रहते हैं कि इन्हें वास्तविकता का कभी कोई अंदाजा ही नहीं रहता। 

कंगना ने आगे बताया कि जो बांग्लादेश में रातोंरात तख्तापलट की घटना हुई है, वह हमारे देश में भी हो चुका होता ये तो भला है कि हमारे देश का नेतृत्व सशक्त हाथों में है।  

लेकिन कंगना बांग्लादेश पर ही नहीं रुकीं। उन्होंने आगे कहा, “यहां पर जो किसानों का विरोध प्रदर्शन हुआ, वहां पर लाशें लटकी हुई थीं। वहां पर रेप हो रहे थे और जब वो किसानों के हितों वाले बिल वापिस लिए गये थे, तो पूरा देश चौंक गया था।  लेकिन वो किसान आज भी वहां पर बैठे हुए हैं, क्योंकि उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था कि ये बिल कभी वापस भी हो सकता है।

वो बड़ी लंबी प्लानिंग थी, जैसा बांग्लादेश में हुआ है। तो इस तरह के षड्यंत्र? क्या आपको लगता है कि ये किसानों के द्वारा किया जा रहा है? इसके पीछे चीन और अमेरिका है। इस तरह की जो विदेशी शक्तियां हैं, वो यहां पर काम कर रही हैं, और इन फ़िल्मी लोगों को लगता है कि इनकी दुकान चलती रहेगी, देश जाए भाड़ में।” 

अब इस विवादास्पद बयान पर बॉलीवुड की ओर से तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन किसान संगठनों और विपक्षी दलों की ओर से आना स्वाभाविक था। ऊपर से हरियाणा में विधानसभा चुनाव भी सिर पर हैं, जहां भाजपा पहले ही पसीने से तरबतर हो रखी है। ऐसा अनुमान है कि इस बार भाजपा पिछली बार के 40 सीट का आधा भी पा जाये तो गनीमत होगी।

लेकिन अब भाजपा सांसद कंगना रनौत के विवादास्पद बयान के बाद तो पीएम मोदी के लिए भी चुनावी रैली कर पाना दुष्कर हो चला है। 

नतीजा यह हुआ कि कंगना रनौत के बयान से भाजपा ने पल्ला झाड़ लिया है। इसके लिए भाजपा मुख्यालय की ओर से एक लिखित बयान जारी कर देश को बताया गया है कि कंगना रनौत सिर्फ सांसद हैं, लेकिन वे पार्टी की अधिकृत प्रवक्ता नहीं हैं।  उनके बयान को पार्टी का अधिकृत बयान न समझा जाये। 

इतनी घोर बेइज्जती की हकदार कंगना रनौत निश्चित रूप से नहीं थीं, क्योंकि उन्होंने तो पिछले 3 वर्षों से पार्टी सर्किल और आईटी सेल के माध्यम से जो सुन रखा था, वही बोल रही थीं। उनकी गलती सिर्फ यह है कि ये बातें मुखर रूप से किसानों के आंदोलन से पहले बोली जा रही थीं, ऐन चुनाव के वक्त बोलने से फायदा होने के बजाय वे पार्टी का बंटाधार कर रही हैं, इतनी राजनीतिक समझ उनके पास नहीं है। 

उन्हें नहीं पता कि सिनेमा जगत में उनकी सफलता और उनके विवादास्पद बयानों और हिन्दुत्वादी राष्ट्रवाद के कॉकटेल का इस्तेमाल कब और कैसे किया जाता है। वे कल तक एक मोहरा थीं, लेकिन आज पार्टी की जिम्मेदार सांसद और कानून निर्माता भी हैं। 

वे शायद देश की पहली कानून निर्माता हैं, जिन्हें एक लोकसभा क्षेत्र की जनता ने भारी मतों से जिताया लेकिन उसके चार दिन के भीतर ही देश के दूसरे हिस्से में गलतबयानी के लिए थप्पड़ खाना पड़ा। लेकिन इसमें भी गलती कंगना की नहीं है, क्योंकि उनकी मानसिक बुनावट को ही हमारे देश के दक्षिणपंथी विचारधारा के खैवेयों ने ऐसा बुना है कि वे और उनके जैसे लाखों भक्त भिन्न तरीके से सोचने की ताकत ही नहीं रखते हैं।  

यही वजह है कि कल जब न्यूज़ 24 में मानव गुप्ता जैसे चतुर एंकर ने बिना यह जताते हुए कि वे सांसद कंगना रनौत को कितनी समझदार/मूर्ख समझ रहे हैं, कई ऐसे विवादास्पद प्रश्नों पर फिर से वो सारी बातें बुलवा लीं, जिसे भाजपा के अति लोकप्रिय सांसद को नहीं बोलना चाहिए था, वे सारी बातें एक बार फिर से कंगना रनौत ने उलटी कर दी हैं।

1947 में मिली देश को मिली आजादी को असली मानें या नहीं, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु थे या सुभाषचंद्र बोस, इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व को लेकर वो तमाम बातें जो अभी तक स्वंय नरेंद्र मोदी कहने की हिम्मत नहीं जुटा सके। यही नहीं, इंदिरा गांधी के साथ कंगना ने संजय गांधी पर भी टिप्पणी कर डाली है, जिससे भाजपा ने हमेशा किनारा किया हुआ था।  

जाहिर सी बात है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व, जिसे पहले ही 4 जून के बाद से सशक्त विपक्ष का सामना करना पड़ रहा है।  ऊपर से पहली बार अपने पितृ संगठन आरएसएस के हमलों से भी अपना बीच-बचाव करना पड़ रहा है, और साथ ही अगले हर विधानसभा या उप-चुनाव में हार की आशंका, अल्पसंख्यक बहुमत के फिसलने की संभावना को तेज कर देता हो, वहां पर कंगना रनौत के मुहं से सरपट निकलते बयान पार्टी के भविष्य को गुड़-गोबर करने वाले साबित हो रहे हैं।

इसी को ध्यान में रखते हुए कल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जी ने कंगना को पार्टी मुख्यालय बुलाकर नसीहत दी है।  इसमें डांट-डपट कितनी है और नसीहत का पुट कितना है, यह तो नहीं पता लेकिन कंगना रनौत ने इस बैठक से पहले ही इतने इंटरव्यू दे डाले हैं कि वे जैसे-जैसे एक-एक कर बाजार में आ रहे हैं, भाजपा के लिए धमाके और विपक्ष के लिए बैठे-बिठाये भाजपा को घेरने के काम अवश्य आ रहे हैं। 

इसमें सबसे विवादास्पद इंटरव्यू तो लगता है आजतक के यूट्यूब चैनल, लल्लन टॉप के साथ कंगना रनौत की मुलाक़ात का है। जिसका टीजर ही आज सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। सौरभ द्विवेदी के साथ साक्षात्कार में कंगना रनौत ने जातिगत जनगणना को लेकर भी अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त किये हैं।

उनका साफ़ कहना है कि जातिगत जनगणना बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए। सौरभ ने जब affirmative action के बारे में सवाल किया तो कंगना को समझ ही नहीं आया कि क्या पूछा जा रहा है। 

सौरभ ने जब मंडल कमीशन, काका कालेलकर कमीशन इत्यादि के बारे में बताया तो कंगना का साफ़ जवाब था, कि हमारे पीएम मोदी जी ने गरीब, किसान और महिलाओं के तौर पर देश में तीन का उद्धार इसीलिए तो कहा है। अब, जब यह इंटरव्यू पूरा देश सुनेगा तो भाजपा के नेता कहां मुंह छिपाएंगे, कहा नहीं जा सकता।  

इतना ही नहीं दलितों के उद्धार पर बोलते हुए कंगना रनौत तो यहां तक कह गईं कि पीएम मोदी जी ने तभी तो दलितों, हमारे प्रधानमंत्री जी ने ‘राम कोविड’ जी को देश का पहला दलित राष्ट्रपति बनाया। पहले दलित राष्ट्रपति वो बने। सौरभ द्विवेदी ने कंगना को टोकते हुए बताया कि वे दूसरे राष्ट्रपति थे, पहले दलित राष्ट्रपति के आर नारायणन थे।

जिसपर कंगना ने झट से माफ़ी मांगते हुए अपनी भूल सुधारते हुए कहना जारी रखा, “हमारी पहली आदिवासी जो महिला… राष्ट्रपति…। जिसे सौरभ ने यह जानते हुए कि मौजूदा राष्ट्रपति की शान में भी ये कोई गुस्ताखी न कर दें, वाक्य पूरा किया महामहिम द्रौपदी मुर्मू।  जिस पर कंगना रनौत ने झट से कहा, Yes…।  

लेकिन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ‘राम कोविड’ कहना, जिसे एंकर सौरभ द्विवेदी ने भी ध्यान नहीं दिया, अपने आप में हैरान करने वाला है। इसी प्रकार, एक तरफ आरक्षण पर अपनी पार्टी की नीतियों को पूरी तरह से मानते हुए कंगना रनौत ने जातिगत आधार पर आरक्षण के बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत कर डाली। 

उन्हें तो यह भी पता नहीं है कि जिस आरजी कर मेडिकल कालेज की पीड़ित महिला डॉक्टर के पक्ष में वो बयान दे रही हैं, उनकी सामजिक पृष्ठभूमि क्या है। कंगना रनौत का यह इंटरव्यू न सिर्फ भाजपा बल्कि अति पिछड़ों एवं अति दलितों की नुमाइंदगी करने वाले एनडीए के घटक दलों के लिए भी बड़ा झटका साबित होने जा रहा है।  

कंगना की फजीहत पर स्मृति ईरानी का अनोखा दांव 

कंगना रनौत के विवादास्पद बयानों और इमरजेंसी फिल्म में सिख संप्रदाय के बारे में जिस प्रकार से दर्शाया गया है, उसको लेकर भी पंजाब के विभिन्न धार्मिक संगठनों सहित विदेशों से भी फिल्म को प्रतिबंधित किये जाने की मांग की जा रही है।

कुलमिलाकर स्थिति यह है कि इधर कंगना रनौत का एक नया इंटरव्यू जारी हो रहा है, उधर भाजपा के लिए नया सिरदर्द खड़ा होता जा रहा है। वैसे ही मोदी-शाह और नड्डा जी को अभी आरएसएस को जवाब देना है कि कैसे अब भाजपा इतनी मजबूत हो गई है कि उसे अब अपने पितृसंगठन की जरूरत ही नहीं रही।  

शायद इसी मुसीबत और संकट को देखते हुए, अभी तक भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के लिए बड़ी महिला नेत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के बारे में बिल्कुल ही अलग टिप्पणी कर भाजपा की मुसीबत को और बढ़ा दिया है। 

एक इंटरव्यू में उनका साफ़ कहना था कि ये वो वाले राहुल गांधी नहीं रहे, इनके द्वारा जातिगत जनगणना का मुद्दा हो या सदन के भीतर टी शर्ट पहनकर आना, ये सब उनके व्यापक राजनीतिक लक्ष्यों को ध्यान में लेकर उठाया गया कदम है। कल तक पीएम नरेंद्र मोदी के लिए बैटिंग करने वाली स्मृति ईरानी को अमेठी में कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता के हाथों मिली करारी हार के बाद से भाजपा ने कोई भाव नहीं दिया है।

यह पहली बार है कि स्मृति ईरानी के पास न तो राज्य सभा की सांसदी है और न ही मंत्रिमंडल में कोई स्थान। चर्चा है कि पीएम मोदी का गुणगान करने वाली और चहचहाने वाली एक नई बॉलीवुड अभिनेत्री आ गई है, लेकिन जिसके पास राजनीति की समझ शून्य ही नहीं बल्कि कई मामलों में नकारात्मक भूमिका है। 

इसे भांपते हुए ही स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के बारे में पहली बार सकारात्मक टिप्पणी करते हुए भाजपा की कतारों में संशय, विभाजन और नेतृत्व को आड़े हाथों लेने का काम किया है। देखना है कि पहले से संकट में घिरा भाजपा का नेतृत्व अब इन दो-दो पॉजिटिव-नेगेटिव ऊर्जा से कितने 2AB बनाता है?

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