इस चुनाव में मोदी का जादू गायब है, इसीलिए मोदी जी टेलीविज़न न्यूज़ चैनल के एंकरों को बुला-बुलाकर अपने मन-मुताबिक इंटरव्यू दे रहे थे। लेकिन इसके बाद भी बात नहीं बन रही थी। ध्यान से देखेंगे तो आप पायेंगे कि आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं गृह मंत्री अमित शाह को छोड़ शायद ही भाजपा का कोई शीर्ष नेतृत्व इस चुनाव में ईमानदारी के साथ अपना पसीना बहा रहा है। ऐसा लगता है भाजपा नेतृत्व भी पिछले 10 वर्षों में एक व्यक्ति के प्रभामंडल के भीतर भाजपा के अस्तित्व के खत्म हो जाने की आशंका से ग्रसित हैं। ऐसे में अचानक पांचवें चरण के चुनाव के बाद प्रशांत किशोर मीडिया के सामने आकर भविष्यवाणी करने लगते हैं, जिसमें गोदी मीडिया के सभी चैनलों और बरखा दत्त को दिया गया इंटरव्यू काफी चर्चित रहा।
अपने इंटरव्यू में प्रशांत किशोर मोदी की गिरती लोकप्रियता को प्रमुखता से उठाते हैं, लेकिन अंतिम निष्कर्ष में वे भाजपा को 300 पार ले जाते हैं। भारतीय मिडिल क्लास और फ्लोटिंग वोटर, जिसे इंडिया गठबंधन की रैलियों और जमीन पर बहुसंख्यक समाज से कोई सीधा सरोकार नहीं है, के लिए प्रशांत किशोर का बयान आश्वस्त करता सा लग सकता है। अपने इंटरव्यू में पीके के द्वारा योगेन्द्र यादव को उद्धृत करते हुए यह बताना कि वे भी भाजपा को 265 तक दिखा रहे हैं, यह बताता है कि विपक्षी गठबंधन ने नरेंद्र मोदी के सामने विकल्प नहीं देकर इस बार भी आम लोगों के लिए मोदी के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि इस चुनाव में भाजपा सामूहिक रूप से नहीं लड़ रही है, और उसके पास बौद्धिक विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए योग्य लोग नहीं बचे हैं, या पिछले 10 वर्ष में टीवी चैनलों पर आकर वे इतने अधिक एक्सपोज हो चुके हैं कि उनके वश में भाजपा के नैरेटिव को आगे ले जाने का माद्दा नहीं बचा था। ऐसे में पीके का मीडिया चैनलों के सामने अवतरित होना, और साफ़-साफ़ बताना कि तीसरी बार भी भाजपा की सरकार बनने जा रही है।
पीके के मुताबिक मोदी ने 400 पार का नारा देकर विपक्ष और मीडिया को उलझा दिया है, और वे यही साबित करने में जूझ रहे हैं कि एनडीए को इससे काफी कम सीटें मिलने जा रही हैं। लेकिन सरकार बनाने के लिए तो 272 सीट की ही जरूरत होती है, और पीएम नरेंद्र मोदी ने ऐसा कर एक बड़ी कूटनीतिक चाल चल विपक्ष को अपने जाल में उलझा दिया है।
प्रशांत किशोर के द्वारा रचे गये इस नैरेटिव का शहरी मतदाता पर अच्छा-ख़ासा प्रभाव भी पड़ रहा था, लेकिन अति-आत्मविश्वास में वे कल द वायर में करण थापर को इंटरव्यू दे बैठे, और उनके सारे किये-कराए पर पानी फिर गया। कल से सोशल मीडिया में प्रशांत किशोर को लेकर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। इंटरव्यू के दौरान एक पल ऐसा भी आया, जब प्रशांत हत्थे से उखड़ गये, और जवाब देने के बजाय तू-तू मैं-मैं पर उतर आये। ऐसा होना स्वाभाविक था, क्योंकि करण थापर इसकी तैयारी के साथ आये थे।
लेकिन उस घटना पर आने से पहले एक नजर उन तथ्यों पर डाल लेते हैं, जिनके सहारे प्रशांत किशोर अपने नैरेटिव को अभी तक सफलतापूर्वक आगे बढ़ा रहे थे। अपने मीडिया इंटरव्यू में वे बार-बार कहते हुए सुने जा सकते हैं कि वे भारतीय आम चुनाव को भौगोलिक तौर पर दो हिस्सों में बांटकर देखते हैं। एक में वे उत्तर-पश्चिम भारत को रखते हैं, जिसमें वे कर्नाटक (पता नहीं क्यों) को भी शामिल कर लेते हैं। इसमें वे 250 सीटों को रखते हैं, और दूसरे खाने में पूर्वी एवं दक्षिण भारत को रखते हैं, जिसमें बिहार, बंगाल से लेकर तमिलनाडु की लगभग 250 सीटों को जोड़ते हैं। करण थापर के साथ अपनी बातचीत के पहले दौर में उनका तर्क इसी बात पर रहा कि भाजपा को उत्तर-पश्चिमी भारत से अधिकतम 50 सीटों के नुकसान का अनुमान है। लेकिन कमोबेश इतनी सीटें वह देश के दूसरे हिस्से से हासिल करने जा रही है।
करण थापर चाहते तो यहीं पर पीके को घेर सकते थे, लेकिन उन्होंने उन्हें अपनी बात कहने का मौका दिया। असल में वे उत्तर-पश्चिमी भारत में 50 सीटों के अधिकतम नुकसान की बात कर रहे थे, उसमें कर्नाटक को उन्होंने सफाई से गुल कर दिया। बाद में बिहार, असम, बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से उसकी भरपाई भी कर ली।
जनचौक ने प्रशांत किशोर के उत्तर-पश्चिमी भारत की सीटों का विश्लेषण किया तो पाया कि 282 सीटें होती हैं।
UP | 80 |
Karnatak | 28 |
Delhi | 7 |
Haryana | 10 |
Punjab | 14 |
Uttarakhand | 5 |
Himachal | 4 |
J&K | 6 |
Rajasthan | 25 |
MP | 29 |
Gujrat | 26 |
Maharashtra | 48 |
कुल योग | 282 |
इसी प्रकार बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ से लेकर तमिलनाडु की सीटों का कुल योग 261 होता है। अकेले राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र से एनडीए को कम से कम 50 सीटों का नुकसान हो रहा है। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हिमाचल और पंजाब को जोड़ दें तो यह आंकड़ा 70-80 तक पहुंच जाता है। फिर बिहार में भाजपा और एनडीए की सीटें पीके को कैसे बढ़ती नजर आ रही हैं, जब पहले से 2019 में 40 में से 39 सीटें एनडीए के पाले में थीं? बिहार में एनडीए को इस बार कम से कम 14 सीटों का नुकसान होने जा रहा है, भले ही इसमें से अधिकांश सीटें भाजपा के साझीदार दलों के खाते से कम हो रही हों।
इसी तरह पश्चिम बंगाल को लेकर प्रशांत किशोर पहले ही दावा कर चुके थे कि इस बार भाजपा को भारी लाभ होने जा रहा है। 2014 में 2 सीट वाली भाजपा को पहले ही 2019 में 18 सीट के साथ बंपर फायदा मिल चुका था। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में 200 सीट जीतने का दावा करने वाली भाजपा की क्या गत बनी, प्रशांत किशोर खुद इस बात का गवाह रहे, क्योंकि तब वे तृणमूल कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार की भूमिका अदा कर रहे थे। संदेशखाली वाले मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा बनाकर भाजपा ने खुद को बंगाल में मुख्य विपक्षी की भूमिका में भले ही खड़ा कर दिया हो, लेकिन वह अपनी 18 सीटों को भी बरकरार रख सके, इसी में उसकी जीत होगी।
हां ओडिशा और आंध्र प्रदेश में निश्चित रूप से वह लाभ की स्थिति में दिखती है। लेकिन यहां पर भी इसका मुख्य फायदा बीजू जनता दल और तेलगू देशम पार्टी को होने जा रहा है। भाजपा और एनडीए यदि 240-250 सीटों पर अटकती है, तो यकीनी तौर पर नहीं कहा जा सकता कि ये दल नरेंद्र मोदी के साथ जायेंगे। आंध्र में पहले साढ़े चार साल जगन मोहन रेड्डी की सरकार के साथ लुकाछिपी के खेल के बाद चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ कार्रवाई, कारावास और उसके बाद चुनावी गठबंधन में सबके लिए राजनीतिक अवसरवाद किसी से छिपा नहीं है। तमिलनाडु में अधिक से अधिक एक सीट के अलावा क्या पीके असम और पूर्वोत्तर राज्यों की 25 सीटों में भाजपा के लिए क्लीन स्वीप की उम्मीद पाले हुए हैं? जाहिर है बिहार में भाजपा को 3-4 और एनडीए को कम से कम 14 सीटों का नुकसान होने जा रहा है। ऐसे में पूर्वी-दक्षिणी भारत से भाजपा को अधिकतम 10 सीट से अधिक लाभ की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश और बिहार को क्लब कर प्रशांत किशोर ने एक और झूठ बोला, जिस पर ध्यान देना चाहिए। 2014 और 2019 चुनाव की तुलना करते हुए प्रशांत किशोर ने अपने बयान में कहा कि भाजपा पहले ही 2019 में 25 सीटें इन दो राज्यों में गँवा चुकी थी। उनका इशारा 2014 में बिहार में भाजपा को हासिल 22 सीटें 2019 में घटकर 17 हो गई थी। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के कारण 2019 में भाजपा को 11 सीटों के नुकसान के साथ 62 सीटें हासिल हुई थी। लेकिन कुल योग तो 16 बनता है फिर प्रशांत किशोर किस आधार पर 25 सीटों के नुकसान की बात कर रहे हैं?
असल में प्रशांत किशोर 2014 चुनाव में बिहार से भाजपा को 32 सीटों पर जीता हुआ बता रहे थे, जबकि उस चुनाव में भाजपा 30 सीटों पर ही अपने उम्मीदवारों को उतार पाई थी, और शेष 10 सीटों पर एनडीए के साझीदार दलों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। इसके पीछे की एक वजह यह समझ आती है कि प्रशांत किशोर शायद इसके जरिये भाजपा को होने जा रहे संभावित नुकसान को कम से कम दिखाना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार का रण अभी भी काफी कुछ शेष है, और पूर्वांचल और भोजपुर में भाजपा को संभावित भारी डैमेज को रोकना इस समय भाजपा और उनके पक्षकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है।
ये वे तथ्य हैं, जिनपर करण थापर ने अपने शो में प्रशांत किशोर को आसानी से बचकर जाने दिया। लेकिन थापर ने आगे ट्रैप तैयार कर रखा था। थापर ने पीके के उत्तर-पश्चिम में भाजपा के संभावित 50 सीटों के नुकसान को शेष भारत से भरपाई कर लेने के सवाल पर केंद्रित रहते हुए ही पीके को असहज स्थिति में ला दिया था। इसके बाद थापर ने प्रशांत किशोर के पुराने दावों का हवाला देते हुए भाजपा के 300 पार की हवा निकाल दी, जिससे पीके पूरी तरह से हक्का-बक्का रह गये।
हुआ यूं कि करण थापर ने जब बार-बार पीके से जानना चाहा कि वे उत्तर-पश्चिम भारत से भाजपा के नुकसान की भरपाई को लेकर कितना आश्वस्त हैं, तो पीके इधर-उधर की बात करने लगे। तभी गुगली डालते हुए करण थापर ने घोषणा की कि मई 2022 में पीके ने कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर के दौरान ट्वीट कर भविष्यवाणी की थी कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ होने जा रहा है, जो हिमाचल प्रदेश के संबंध में पूरी तरह से गलत साबित हुआ। असल में प्रशांत किशोर की चोरी पकड़ी गई। लेकिन प्रशांत किशोर किसी ढीठ की तरह उल्टा करण थापर पर ही आग-बबूला हो उठे।
गुस्से में लाल प्रशांत किशोर ने लगभग धमकाने वाले अंदाज में कहना शुरू कर दिया, “मैंने अगर ऐसा कुछ कहा है तो मुझे इसका वीडियो प्रमाण दिखाइये। अगर आप दिखा सकते हैं तो आज ही मैं अपने इस प्रोफेशन से अलविदा ले लूँगा, वर्ना करण थापर आपको सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगनी होगी।”
इसके बाद तो प्रशांत किशोर ने अपने बचाव में कई और आरोप लगाने शुरू कर दिए, जिसमें “मुझे धमकाने की कोशिश न करें, आप चालाक पत्रकार बनने की कोशिश मत करो, मैं आपको वो मौका नहीं दूंगा जिसमें आप कह सको कि बीच इंटरव्यू से पीके भाग गया, मैं आप और आप जैसे चार पत्रकारों से निपट सकता हूँ” जैसे बचकाने जवाब सुने जा सकते हैं। जाहिर सी बात है, प्रशांत किशोर उस इंटरव्यू का हवाला दे रहे थे, जिसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना करण थापर से हुआ था, और गुजरात नरसंहार पर कुछ सवाल पूछने के बाद ही पानी पीकर मोदी इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर चले गये थे।
यहां पर करण थापर के पत्रकारिता का विशाल अनुभव और परिपक्वता नजर आती है और प्रशांत किशोर का ओछापन, जब प्रश्नकर्ता के यह पूछने पर कि क्या वे इंटरव्यू को आगे जारी रखना चाहते हैं या यहीं पर खत्म करना चाहते हैं, पर पीके आपा खो देने की वजह से गलत सुन लेते हैं और करण थापर के कहे को रिवाइंड कर सुनाने की मांग करते हैं। करण थापर ठीक इस बिंदु पर जान रहे थे कि पीके एक के बाद एक गलती करते जा रहे हैं, जिसे पीके ने जल्द ही समझ लिया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। आज इस यूट्यूब को लाखों दर्शक देख चुके हैं। कई अन्य यूट्यूबर इस घटना पर मिर्च मसाला लगाकर अपना-अपना चैनल चला रहे हैं।
हकीकत तो यह है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की हार की भविष्यवाणी प्रशांत किशोर अपने ट्विटर हैंडल पर आज भी सहेजकर रखे हुए हैं, जिसका लिंक ये है:
यही नहीं प्रशांत किशोर के द्वारा पिछले वर्ष तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीआरएस की जीत की भविष्यवाणी की गई थी। इसमें भी कांग्रेस और विशेषकर राहुल गांधी के खिलाफ व्यक्तिगत वैरभाव अब किसी से छुपा नहीं है।
आज भी प्रशांत किशोर तमाम मीडिया चैनलों पर जमकर टिप्पणी कर रहे हैं। इसमें 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जनसुराज को पूर्ण बहुमत के दावे के साथ-साथ तीसरी बार नरेंद्र मोदी की सत्ता में वापसी पर चार बड़े फैसलों को लेकर पीके की भविष्यवाणी बता रही है कि करण थापर के शो से उनके शीशे के महल में जो बड़ी दरार पड़ी है, उसे छिपाने के लिए वे बुरी तरह से हाथ-पाँव मार रहे हैं।
लेकिन इतना तय है कि कैमरे के सामने सफेद झूठ बोल ढीठता दिखाते हुए भी प्रशांत किशोर जिस प्रकार पानी पीकर गला तर करते देखे जा सकते हैं, वह करण थापर के विवादास्पद पुराने शो की याद ताजा करा देती है। मीडिया के जानकारों के बीच प्रशांत किशोर की सच्चाई तो पहले ही बेपर्दा हो चुकी थी, लेकिन कैमरे के सामने उनके झूठे चुनावी भविष्यवक्ता और रणनीतिकार की कलई पहली बार देश के सामने आई है, जो बेहद जरुरी था।