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सादगी और ईमानदारी के प्रतीक कर्पूरी ठाकुर

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अरुण पांडे,

कर्पूरी ठाकुर ने बिहार की राजनीति में समाजवादी विचारों का समावेश किया और अपनी नीतियों से राज्य को नए मुकाम तक पहुंचाया. कर्पूरी ठाकुर के फैसले आज भी प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं, और उनके बताए रास्ते पर चलकर बिहार ने सफलता की ऊंचाईयां हासिल की हैं. कई राजनेता उनके आदर्शों का अनुसरण करने का प्रयास करते हैं. कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग बनाती है.

डॉ. लोहिया और कर्पूरी ठाकुर 

 : 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितोझिया गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने डॉ. राम मनोहर लोहिया के आदर्शों को अपनाया. डॉ. लोहिया ने कर्पूरी ठाकुर को हमेशा जननायक कहा और उनकी राजनीति को देश के लिए बदलाव का प्रतीक माना. लोहिया का मानना था कि अगर उन्हें पांच कर्पूरी ठाकुर मिल जाएं, तो देश में बदलाव आ जाएगा. कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में दो कार्यकाल पूरे किए, पहले दिसंबर 1970 से जून 1971 तक, और फिर जून 1977 से अप्रैल 1979 तक. उनके कार्यकाल में लिए गए कई निर्णय जनहित में थे, जिसके कारण उन्हें जननायक की उपाधि प्राप्त हुई.

जननायक कर्पूरी ठाकुर

जननायक कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर की गरीबी और जनहित में नीतियां

 : कर्पूरी ठाकुर का जीवन बेहद साधारण था. विधायक बनने के बाद, उनके माता-पिता उन्हें 25 पैसे दिया करते थे. एक बार जब उनके पिता के पास पैसे नहीं थे, तो कर्पूरी ठाकुर घर से बाहर चले गए, ताकि उन्हें शर्मिंदगी न हो. इस घटना ने उन्हें वृद्धावस्था पेंशन लागू करने के लिए प्रेरित किया, जिससे गरीब वृद्धों को वित्तीय मदद मिल सके.

सादगी और ईमानदारी के प्रतीक कर्पूरी ठाकुर :

 कर्पूरी ठाकुर सादगी के प्रतीक थे. एक बार पटना में जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में कर्पूरी ठाकुर टूटी चप्पल और फटे कुर्ते में पहुंचे थे. इस पर चंद्रशेखर ने उनका कुर्ता दान में देने की अपील की, और एक बड़ा धनराशि इकट्ठा हुआ. लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने वह पैसा मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करने का प्रस्ताव दिया, जिससे उनकी ईमानदारी और सादगी का उदाहरण सामने आय

Karpuri Thakur Jayanti

सभा में कर्पूरी ठाकुर 

इंदिरा गांधी के ऑफर को ठुकराना : 

1974 में जब कर्पूरी ठाकुर के बेटे का चयन मेडिकल में हो गया, और वह हार्ट सर्जरी के लिए बीमार थे, तो इंदिरा गांधी ने सरकारी खर्च पर उनका इलाज कराने का प्रस्ताव दिया. लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने इसे ठुकरा दिया और कहा कि वह अपने बेटे का इलाज सरकारी खर्च पर नहीं कराएंगे. इस घटना के बाद, जयप्रकाश नारायण ने पैसे की व्यवस्था की और बेटे का इलाज न्यूजीलैंड में कराया.

कर्पूरी ठाकुर की विधानसभा में संघर्ष :

 कर्पूरी ठाकुर विधानसभा में अपनी बात को मजबूती से रखते थे. एक बार एचईसी के मुद्दे पर उन्होंने रात भर विधानसभा में धरना दिया, और सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया. इसके अलावा, उन्होंने सबसे पहले अंग्रेजी की बाध्यता को हटाया, जिससे लोग बिना अंग्रेजी के भी मैट्रिक पास कर सके.

Karpuri Thakur Jayanti

शपथ लेते कर्पूरी ठाकुर (दाएं से) (ETV Bharat)

”कर्पूरी ठाकुर बेहद विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे और किसी से मिलने के बाद पहले वह हाथ जोड़ लेते थे उन्हें पैर छूने की परंपरा बिल्कुल पसंद नहीं थी. बिहार विधानसभा में भी वह अपनी बात मजबूती से उठते थे एच् ई सी के मुद्दे पर उन्होंने रात भर विधानसभा में धरना दे दिया और सरकार को झुकना पड़ा था. मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले अंग्रेजी की बाध्यता को हटाया था अंग्रेजी के बगैर भी लोग मैट्रिक पास करने लगे थे.”- 

भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख और महिलाओं के लिए आरक्षण :

 कर्पूरी ठाकुर ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और भ्रष्ट अधिकारियों को “भटियारा” शब्द से संबोधित किया, जिससे विधानसभा में हंगामा मच गया. महिलाओं को आरक्षण देने का श्रेय भी कर्पूरी ठाकुर को जाता है. उन्होंने पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को आरक्षण का लाभ देने का काम किया. इसके अलावा, उन्होंने गैर सिंचित जमीन का लगान माफ करने का भी निर्णय लिया.

Karpuri Thakur Jayanti

शपथ लेते कर्पूरी ठाकुर 

”विधानसभा में कर्पूरी ठाकुर के बयान पर खूब हंगामा हुआ था भ्रष्टाचार को लेकर कर्पूरी ठाकुर बड़े सख्त हुआ करते थे भ्रष्ट अधिकारियों को लेकर कर्पूरी ठाकुर ने उनके बारे में भटियारा शब्द कहा था जिसके बाद खूब है तौबा मचा था.”

अरुण पांडे, वरिष्ठ पत्रकार

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