अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

कार्तिक मास का समापन : कृष्ण आराधना के पाँच महत्वपूर्ण दिन से

Share

डॉ. रीना मालपानी

कार्तिक मास समापन की ओर अग्रसर है। कृष्ण (नारायण) आराधना के पाँच महत्वपूर्ण दिन शेष है। एकादशी के दिन नारायण योगनिद्रा से जाग्रत अवस्था में आ जाते है एवं सृष्टि के संचालन की बागडौर अपने हाथों में ले लेते है। हम सभी नैन बिछाए कृष्ण (नारायण) के जागने का इंतज़ार कर रहे है। कृष्ण सदैव धर्म के सूर्य को उदित कर सुंदर भोर को प्रसारित करते है। हमारे पुराणों में भी उल्लेखित है कि जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत की प्राप्ति तो बाद में हुई सर्वप्रथम कालकूट विष निकला, यानि जीवन में हमें सबसे पहले विष को ग्रहण करना सीखना होगा तभी हम अमृत को गृहण करने योग्य होंगे। कलयुग में निंदा, आलोचना, कटाक्ष, उपहास इत्यादि सभी विष का स्वरूप है। अमृत के रसास्वादन से पहले हमें इनको गृहण करना होगा और वही हमारे लिए हितकारी भी होगा। परमेश्वर, परब्रह्म, अनादि और अनंत है श्रीकृष्ण। सर्वस्व कलाओं से परिपूर्ण है श्रीकृष्ण।। बंसी बजैय्या, शांतचित्त स्वरूप है श्रीकृष्ण। प्रेम के अनूठे और सच्चे उपासक है श्रीकृष्ण।।

कृष्ण कितने अनूठे भगवान है, वस्त्र चोर कहे जाने वाले कृष्ण द्रौपदी की करुण पुकार सुनकर वस्त्र का अंबार लगा देते है और भक्त के मान-सम्मान की रक्षा करते है। कहते है ईश्वर निराकार है, पर भक्त के मनोरथ की पूर्ति के लिए अनूठी और अलौकिक लीलाएँ करते है।

कभी बालक, कभी माखन चोर, कभी रणछौड़, कभी ग्वाला, कभी सारथी का रूप धारण करते है। जो कृष्ण हर बंधन से परे है वे कृष्ण ही मईया के हर बंधन को सहर्ष स्वीकार करते है। भक्ति के अधीन होकर भगवान क्या-क्या नहीं करते। कृष्ण का स्मरण जीवन को वात्सल्य और प्रेम से भर देता है। गजेंद्र मोक्ष की कथा में भी हमने देखा कि जब गज ने पूर्ण समर्पण से नारायण को पुकारा तो नारायण त्वरित उसकी सहायता के लिए प्रत्यक्ष हुए। कृष्ण को केवल हमारा अटूट विश्वास चाहिए। द्रौपदी को पहले विश्वास था कि सभा में मौजूद पाँचों पांडव उसकी रक्षा करेंगे एवं भीष्म पितामह व गुरु द्रौण भी उसे सुरक्षा प्रदान करेंगे, पर उसका भ्रम टूट गया और अंत में उसने पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से कृष्ण का स्मरण किया और फिर उसका कोई संदेह नहीं रहा। कल्याण और हित का पर्याय है श्रीकृष्ण। अदम्य साहस के संचारक है श्रीकृष्ण।। भक्तो के लिए सदैव तत्पर रहते है श्रीकृष्ण। गौमाता के सेवक, असाध्य को साध्य बनाते है श्रीकृष्ण।।

कलयुग में हम अविश्वासी दुनिया में जी रहे है, जिसमें हमें अपने कुटुंब, अपनी माया एवं अपने झूठे मान पर विश्वास है, परंतु वह सर्वथा निरर्थक है। कठिन परिस्थिति में सच्चा सहाय केवल ईश्वर है। इसलिए मनुष्य योनि में उस ईश्वर को प्रत्येक स्थिति में स्मरण करते रहें। यहाँ भगवान के नाम जप की प्रधानता को बताया गया है। छोटे-छोटे उत्सव, त्यौहार हममें आध्यात्मिक ऊर्जा संचारित करने के लिए सम्मिलित किए गए है। कृष्ण नाम तो कल्याण का स्वरूप है जिसका स्मरण भक्त को दुनिया के प्रपंचों एवं चिंताओं से मुक्त कर देता है। कृष्ण अपने संदेश में हमें संशय से मुक्ति एवं कर्म की प्रधानता को ज्ञात कराते है।

कलयुग में हमारी जीवन-शैली, परिस्थितियाँ और परिवेश सब कुछ विषम है, जिसके कारण कभी-कभी मन में संशय एवं तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, परंतु इस तनाव में हम कभी भी अपना विश्वास कृष्ण भक्ति अर्थात अपने आराध्य की भक्ति से डगमग न करें। ईश्वर प्रत्येक परिस्थिति में हमारा स्मरण चाहते है। सुख-दु:ख, लाभ-हानि, यश-अपयश के बीच कृष्ण को नहीं भूलना है। ईश्वर की भक्ति के अलावा सब कुछ अस्थायी है। एकादशी से नारायण निद्रा से जागेंगे और हम भी अपने जीवन में भक्ति के सूर्य को देदीप्यमान करेंगे और इस भागती-दौड़ती दुनिया में कुछ क्षण ही सही पर ईश्वर से एकाकार करेंगे।

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें