अग्नि आलोक
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सोते रहिए सामान्य सी बात है

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🙏 पं लखन शास्त्री गुना

देश की श्रद्धा काट दी गयी है!
पैंतीस टुकड़ों में जानवरों को बाँट दी गयी है!
आप अभी आराम कीजिए बहुत रात है!
सोते रहिए सामान्य सी बात है!
आफ़ताब तो सूरज है!
श्रद्धा ही अंधी है!
गंदी है!
श्रद्धा आपकी न बेटी है, न सम्बन्धी है!
उसके लिए क्यों नींद ख़राब की जाए!
आइए जश्न मनाया जाए,
शराब पी जाए!
आफ़ताब ने श्रद्धा को श्रद्धा से काटा है
तभी तो कितना सन्नाटा है
न कोई अवार्ड वापसी!
न कोई मोमबत्ती जुलूस!
श्रद्धा थी ही मनहूस!
तभी तो
कोई भी सेक्युलरस्टि!
अथवा कम्युनिस्ट!
देता हुआ संविधान की दुहाई!
सड़क पर नहीं दिया दिखाई!
नजारा है कितना अजीब!
अफीम खाकर बेहोश पड़ी है
गंगाजमुनी तहज़ीब!

श्रद्धा के कत्ल में असहिष्णुता भी कहीं किसी बुद्धिजीवी को नजर नहीं आई!
मेरे भाई!
आग लग चुकी है आ रही है
बढ़ती हुयी आपके द्वार पर !
आप इसे बुझाने की जिम्मेदारी,
छोड़िये सरकार पर!
क्योंकि
अग्निशमन आपका नहीं शासन का काम है!
आपका काम तो आराम है!
कम्बल खींचीए चैन से सोइए!
किस किस को याद करिए,
किस किस को रोइए??
सो जाइए अभी बहुत रात है!
सोते रहिए यह सामान्य सी बात है! 🙏 पं लखन शास्त्री गुना

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