संजय रोकड़े
भारतीय राजनीति में हर नेता का अपना एक चरित्र हुआ है और उसी चरित्र के अनुरूप उसके काम करने का तरीका भी हुआ है। इस बात को गंवई या देशी बोली में कहे तो कह सकते है कि सब कोई अपनी तरह के गिरगिट हुए है। कब कहां कौन सा रंग बदलना है आसानी से बदल लेते है। राजनीतिक गिरगिटों की जमात में हाल ही एक नया नाम तेजी से उभर कर सामने आया है। इसे हम अरविंद केजरीवाल के नाम से जानते है। इस चालाक चतुर बनिये ने जिस तरह से अपना राजननीतिक रंग बदला है उसे देखकर बेचारे गिरगिट भी खुद इतनी धीमें तरीके से रंग बदलने पर शर्मिंदा होते होगें।
गिरगिटों के इतर अरविंद की हरकतों को लेकर वे लोग भी खुद का खासे ठगे महसूस कर रहे हरेगें जिनने आप को वोट देते समय ये विश्वास जताया था कि वे अपना कीमती वोट आम आदमी पार्टी को देकर भाजपा की हिंदूवादी राजनीति में मजबूती से कीला ठोकने जा रहे है। अरविंद ने ऐसे लोगों की उम्मीदों पे भी पानी फेर दिया है। वे सब खुद को ठगा- ठगा सा महसूस कर रहे है।
माना के राजनीति में वक्त काल स्थिति-परिस्थति के चलते पार्टी की नीतियों से समझौता करना पड़ता है लेकिन अरविंद ने जिस तरह से नीति और नीयत के मामले में खुद को दूसरों के सामने घुटनों के बल लाकर खड़ा कर दिया है वह बड़ा ही शर्मिंदगी वाला काम है। अतीत इस बात का गवाह है कि किसी भी राजनीतिक दल या राजनेता को राजनीति में मुकाम हासिल करने के लिए कुछ समय तक यात्रा तय करनी होती है। कह सकते है कि सफलता अर्जित करने के लिए चार कोस चलना पड़ता है लेकिन इस आदमी ने तो चार कदम चलना भी गंवारा न समझा। ये जिस तरह की अवसरवादिता के घोड़े पर सवार है वह तो चिंता का ही सबब बन पड़ी है। ये जनाब अपनी राजनीतिक विचारधारा से इतनी जल्दी रंग बदल लेंगे इस बात का तो किसी को इल्म भी नही रहा होगा। हाल तो ये कि केजरीवाल जिस तरह की राजनीति करने लगे है उसे देखकर आमजन ये भी कहने लगे है कि उनकी अपनी तो कोई राजनीतिक विचारधारा थी ही नही और नही है।
सच तो यह है कि विकल्प की बात कह कर राजनीति में आई आम आदमी पार्टी कांग्रेस व भाजपा की बनाई जमीन की परजीवी हो चुकी है। इसलिए एक राज्य का भूगोल बदलते ही उसकी विचारधारा भी बदल जाती है। जब तक वह भाजपा की ‘बी’ टीम के आरोप के साथ कांग्रेस की जमीन हथिया रही थी तब तक तो ठीक था। मुश्किल गुजरात जैसे राज्य में है जहां भाजपा की हिंदूवादी जमीन पर सेंध लगा कर वह वहां टीम ‘अ’ बनना चाहती है।
दरअसल, देश और गुजरात की जनता को जब हिंन्दूत्व के घोड़े पर ही सवार होकर चलना होता तो भाजपा क्या बुरी थी। अरविंद केजरीवाल के पास तो हिंदूत्व को लेकर कहीं कोई तजुर्बा भी नही है। न ही कोई कट्टर हिंदू नेटवर्क जो आमजन को यह विश्वास दिला पाए कि आम आदमी पार्टी हिंदूत्व के मामले में भाजपा से कहीं अधिक बड़ी है। बहराहल, अरविंद और उनकी टीम सत्ता के मद में आकर ये भूल गए है कि अब जो नेता जनता को मामू बनाने की कोशिश करेगें जनता उनको मामू बनाने में देर नही करेगी।
काबिलेगौर हो कि दिल्ली में हुए बौद्ध सम्मेलन के बाद से सोश्यल मीडिय़ा में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री व भाजपा के नेता देवेंद्र फड़णवीस का एक वीडिय़ो तेजी से वायरल हो रहा है। वे इस वीडिय़ों में बाबा साहेब अंबेडक़र द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा के दौरान दिलाई गई 22 प्रतिज्ञाओं का जिक्र और महत्व समझा रहे है। फडऩवीस का यह वीडिय़ो नागपुर में इसी साल धम्म प्रवर्तन दिवस पर दिए गए भाषण का है। वे इस भाषण के दौरान यह भी कहते सुने जा सकते है कि जाति उन्मूलन में बाबा साहब का बड़ा महत्व है।
गर, बाबा साहेब की विचारधारा के कट्टर विरोधी माने जाने वाले दल के नेता इस तरह की दलीलें देकर उनके काम की प्रशंसा कर सकते है तो फिर अरविंद को ये बात क्यूं समझ नही आई की बाबा साहेब द्वारा ली गई प्रतिज्ञाओं के दोहराने पर अपने मंत्री का इस्तीफा क्यूं लूं। सच तो ये है कि बाबा साहेब के मामले में अरविंद की पार्टी का कोई रिसर्च नही है। बाबा साहेब को लेकर आम आदमी पार्टी का रिसर्च मजबूत होता तो अरविंद अपने ही मंत्री का इस्तीफा लेने की बजाय उनकी पीठ थपथपाते।
असल में इस तरह की हरकत करने के बाद अरविंद ये साबित नहीं कर पाए कि उनके पास रीढ़ की हड्डी भी है। भारतीय राजनीति में जिस नेता के पास रीढ़ की हड्डी नही होती है वह जनता के बीच लंबे समय तक नही चल पाता है। अरविंद शायद इस बात को भूल गए या जानबुझ कर नजरअंदाज कर गए, पता नही। ये माना के नेता में कंइयांपन होना जरूरी होता है। धूर्तता भी चाहिए। पर डेरिंग यानी साहस और दुस्साहस भी तो कोई चीज होती है। ये भी तो राजनीति में जरूरी होती है न।
सच पूछें तो इस तरह का साहस तो सिर्फ और सिर्फ मोदी में ही है, जिनको अरविंद पानी पी पी के गरियाते है। साहस के मामले में तो केजरीवाल, मोदी के पैरों की धुल भी नही है। मोदी जब ठान ले कि अपने किसी का बाल भी बांका नही होने देना है तो कोई ताकत नही है जो उसे उसके विचार से ड़ीगा सके। वे अपने लोगों के बचाव के लिए ढ़ाल की तरह काम करते है। इस तरह का माद्दा केजरीवाल में कहां। आम आदमी पार्टी के किसी नेता में वो कुबत नही जो अपने लोगों को बचा सकें। वरना वह भाजपा की बी टीम बन कर नही रह जाते।
सच तो ये है कि अरविंद के वैचारिक ढुलमुलपन की तरह मोदी और आरएसएस की कोई साफ्ट हिंदू विचारधारा भी नही वे सीधे-सीधे गैर हिंदूओं को अपनी विचारधारा के अनुरूप ट्रीट करते है ऐसे में दोगलेपन के हिंदुत्व पर कोई क्यूं भरोसा करने लगा। अरविंद को चाहिए गिरगिटेपन को थोड़े धीमे-धीमे बदले बरना वक्त से पहले ही मैदान से बाहर हो जाएंगे।
नोट- लेखक द इंडिय़ानामा पत्रिका का संपादन करने के साथ ही देशभर के समाचार पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन करते है। वे दिल्ली, मुंबई व इंदौर से प्रकाशित मुख्य हिन्दी अखबारों के संपादकीय विभाग में अहम पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके है।