*सुसंस्कृति परिहार
साथियों वसंत आते ही प्रेम की व्याकुलता कुलांचे मारने लगती है यह कुदरत का करिश्मा है इससे बचा नहीं जा सकता इसीलिए देश के ग्रामीण अंचलों में मेलों की धूम रहती है झाबुआ के भगोरिया मेले में प्रेमानंद का उत्सव देखते ही बनता है। वहीं इस मादक समय में मादल की स्वर लहरियां बस्तर के घोटुलों में गूंजती हैं और प्रेमातुर जोड़ियां सब भूल छकाछक प्रेमरंग में डूब जाते हैं।लेकिन खुसरो याद दिलाते हैं
ख़ुसरो दरिया प्रेम का,वा की उल्टी धार
जो उतरा सो डूब गया ,जो डूबा सो पार
ठीक इसी तरह किसी शायर ने भी अर्ज़़ किया है वे बताते हैं इश्क़ क्या है-वो एक आग का दरिया है/और डूब के जाना है।इनका आशय बिल्कुल स्पष्ट है कि प्रेम में डूबना ही उसकी नियति है।
आजकल तो प्रेम पर पहरेदारी बढ़ी है विदेश की धरती से उपजा वेलेंटाइन डे मनाना ख़तरे से खाली नहीं।विदेशी से शादी हो सकती है, विदेशी परिधान और तमाम विदेशी चीज़ों से प्रेम हो सकता है किंतु विदेश से आया वेलेंटाइन डे नापसंद है।वहीं दूसरी ओर प्रेम की तासीर भी बदल गई।अब प्रेम पात्र तलाशा जाता है वह स्वाभाविक रूप से मिलता नहीं। महाभारतकाल में सुभद्रा जी कृष्ण का इशारा मिलते ही अर्जुन से प्रेम विवाह हेतु भाग जाते हैं।रामायण की सीता जी राम से प्रेम कर सकती है। राधा कृष्ण जैसे प्रेमी पूज्य हो सकते हैं किंतु उन्हीं के देश में अब। प्रेम करना वर्जित है।
वस्तुत: जो प्रेम आजकल होता है वह आमदनी, और मौजूद सम्पत्ति जानने के बाद ही किया जाता है चेहरा वगैरह बाद में आता है।ये दोनों पक्षों में नज़र आता है।प्रेम अब सौदेबाजी पर टिकने लगा है। संयुक्त परिवार किसी को पसंद नहीं रहे। इसीलिए परिवार टूट रहे हैं हां कुछ संख्या में आज निश्छल प्रेम करने वाले भी मौजूद हैं जो इसमें आपादमस्तक डूबे हुए। कायनात तो ऐसे प्राणियों और जीव जंतुओं की वजह से हरी-भरी है और हमें प्रेम का सुंदर संदेश देती है।
बहरहाल,प्रेम करना आसान और सहज काम हो गया है कानून भी प्रेम करने की इज़ाजत देता है। इसलिए यह धड़ल्ले से होता और टूटता है। गठबंधन कमज़ोर होने लगे हैं ।
गठबंधन से याद आया ।अक्सर आमचुनाव जब आते हैं तो वासंती और फागुनी हवाओं की मस्ती का मौसम रहता है।यह कहना लाज़मी होगा कि इस मौसम में राजनीति से जुड़े लोगों के दिल भी मचलने लगते हैं ठीक आज के प्रेमियों की तरह।वे टटोलने लगते हैं किसके साथ जीवन सुखमय होगा यानि आमदनी ऊपरी कमाई, विलासिता के साथ ऐशो आराम,संरक्षा वगैरह।ये मिलने की उम्मीद उन्हें नए प्रेम की ओर ले जाती है। पुराने गठबंधन टूटने लगते हैं।अकेले अकेले पुराने प्रेम का विसर्जन दिल को कचोटता है इसलिए कुछ अपने साथियों सहित जाने में यह सहज हो जाता है।किसी तरह की शर्मिंदगी भी नहीं आती।वैसे राजनीति में इन चीज़ों का अब कोई मूल्य नहीं रहा।ऐसी ही वृत्ति अब समाज की होती जा रही है।
इसी तरह कुछ प्रेम राजनीति में भी जबरिया किए जाते हैं मसलन अपहरण करके,पकड़ुआ और डरा धमकाकर। कुछ कमज़ोर दिल दहशत में ही समर्पण कर देते हैं और कुछ अपने पुराने बदबूदार कारनामों की कलई ना खुले इसके लिए मौका मिलते ही अंगड़ाई ले लेते हैं। बदलाव की आहट मिलते ही ये दीवानगी का आलम नज़र आने लगता है। आजकल यह फिसलन बढ़ गई है।
लेकिन जैसा की ख़ुसरो साहिब ने कहा है कि इस प्रेम के दरिया की उल्टी धार है तो इसमें अब आपको डूबना ही होगा यही आपकी नियति होगी।इसके बाद वापसी की कोई उम्मीद नहीं रह जाती। इसलिए प्रेम करने निकलें तो इसका ताबीज बांध लें।ये वसंत और फाल्गुनी दिन ज़्यादा नहीं टिकते।जीवन इतना आसान नहीं है।ज़मीर बड़ी चीज़ है और प्रेम गली अति सांकरी है।आइए मौसम का इशारा समझें और सबको मोहब्बत का पैगाम दे लेकिन विचलन से दूर रहें। खूब खूब सबको प्यार दें।ए मोहब्बत ज़िंदाबाद।