अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

हमारी स्मृतियों में जिंदा रहेंगे कुलदीप नैयर

Share

अनिल सिन्हा

यह अस्सी के दशक की बात है। मैं गांधीवादियों, समाजवादियों और आंबेडकरवादियों के विभिन्न आंदोलनकारी समूहों को साथ लाने की कोशिश का हिस्सा बन गया था। इस काम में दिल्ली के विजय प्रताप, पटना के रघुपति और भागलपुर के अनिल प्रकाश जैसे लोग मुख्य भूमिका में थे। तीनों जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले चौहत्तर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा चुके थे। इस काम में उन्हें सिद्धराज ढड्ढा तथा ठाकुरदास बंग जैसे बुजुर्ग गांधीवादियों के साथ-साथ जिन वरिष्ठ लोगों का सहयोग प्राप्त था, उनमें प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता जस्टिस वीएम तारकुंडे तथा पत्रकार कुलदीप नैयर शामिल थे।

इसी सिलसिले में एक बैठक के लिए हम लोग दिल्ली में थे तो रघुपति जी के साथ नैयर साहब के घर गए। वह उन दिनों सुंदरनगर के सरकारी आवास में रहते थे। उनके घर पर यह पहली मुलाकात थी। संपूर्ण क्राति मंच के नाम का वह संगठन तो ज्यादा असर नहीं बना सका, लेकिन उनके आत्मीय व्यवहार का आकर्षण ऐसा रहा कि उसके बाद कभी दिल्ली रहा और उनसे मुलाकात न हो, ऐसा नहीं हुआ।

मुझे लगता है कि नई पीढ़ी को उनकी दिलचस्प रूटीन के बारे में भी बताना चाहिए। शाम के समय वह कम से कम एक घंटा जरूर टहलते थे। सुंदरनगर की उस पहली मुलाकात में भी जब हम लोग उनके घर पहुंचे तो वह टहलने के लिए गए हुए थे। हमें कुछ देर इंतजार करना पड़ा था। 

उनसे पहली मुलाकात के समय तक यह पक्के तौर पर तय नहीं हो पाया था कि मैं पत्रकारिता ही करूंगा। पत्रकारिता को आजीविका का साधन बनाने का फैसला करने तथा इसमें अपनी छोटी जगह बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही। लोग यह सवाल कर सकते हैं कि क्या यह संस्मरण सिर्फ अहसान के बोझ को उतारने की कोशिश तो नहीं है? लेकिन मैं यह विश्वास दिलाना चाहता हूं कि सिर्फ यही बात होती तो मैं यह लेख नहीं लिखता।

पत्रकारिता और व्यक्तिगत स्तर पर मदद करने वाले लोगों की एक लंबी फेहरिश्त है और उनके अहसान चुकाने के मौके को मैं शायद ही गंवाऊ। लेकिन नैयर साहब को श्रद्धांजलि देने के पीछे मेरा उद्देश्य लगातार पतन की ओर जाती पत्रकारिता के मौजूदा दौर में उस दौर को याद करना है जो अभी-अभी गुजरा है लेकिन ऐसा महसूस होता है जैसे बरसों बीत गए हों। लगता है कि अब वह दौर तथा वे लोग कभी वापस नहीं आएंगे।

क्या इन दिनों हम सोच सकते हैं कि कोई बड़े ओहदे पर काम करने वाला पत्रकार इस वजह से जेल चला जाए कि उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगी पाबंदी नामंजूर हो? जब कुलदीप नैयर को इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तार किया गया तो वह एक्सप्रेस न्यूज सर्विस के संपादक थे। वैसे उन्होंने अपनी आत्मकथा में इमरजेंसी के सामने पत्रकारों तथा अखबारों के हथियार डालने की शिकायत की है।

वह व्यक्तिगत बातचीत में उस समय के नामचीन पत्रकारों के खामोश होने की चर्चा करते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में भी इसका विस्तार से जिक्र किया है। लेकिन आज के दौर से इसकी तुलना करें तो वह खामोशी मौजूदा चाटुकारिता के सामने क्रांतिकारी ही दिखाई देती है। विरोध की अभिव्यक्ति काफी मुखर थी। आजादी भी इतनी जरूर थी कि दुष्यंत कुमार को लोग गुनगुनाते रहते थे।

कभी-कभी अचरज होता है कि कुलदीप नैयर की पीढ़ी इतनी सकारात्मक कैसे थी? भारत-पाकिस्तान विभाजन की विभीषिका उन्होंने देखी थी। उन्हें और उनके परिवार को स्यालकोट छोड़ना पड़ा और घर छोड़ते वक्त उन्हें भरोसा था कि वे लौट कर आएंगे, भले ही मन में एक आशंका जरूर थी। उन्होंने नरसंहार और पलायन का भयानक मंजर देखा था। भाई-भाई बन कर रहने वाले हिंदुओं तथा मुसलमानों को एक-दूसरे का दुश्मन बनते देखा था। लेकिन भारत आने के बाद वह आरएसएस या हिंदू महासभा के समर्थक नहीं बने। पूरी उम्र सेकुलरिज्म के समर्थक ही नहीं, उसके लिए संघर्षरत रहे। मानवाधिकार तथा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे।

मैं 2007 में जब हैदराबाद के एक टीवी चैनल की नौकरी छोड़ कर आया और दिल्ली में दैनिक भास्कर में काम करने लगा तो उन्होंने कहा कि सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी को फिर से सक्रिय करना चाहिए क्योंकि मानवाधिकारों तथा लोकतांत्रिक अधिकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं। यह ध्यान दिलाना जरूरी है कि उस समय यूपीए की सरकार थी और मनमोहन सिंह से उनके पारिवारिक संबंध थे।

यह उन लोगों को भी बताने के लिए है जो यह आरोप लगाते हैं कि जब कांग्रेस की सरकार थी तो सेकुलर बुद्धिजीवी कहां थे? उन्हें बताना जरूरी है कि राजिंदर सच्चर, कुलदीप नैयर तथा एनडी पंचोली जैसे अनेक लोग अपना बहुत सारा वक्त गांव-कस्बों में हो रहे दमन के खिलाफ आवाज उठाने में देते थे। वे सांप्रदायिक नफरत मिटाने की कोशिश में रहते थे।

मुझे याद है कि जब शाम की सैर के वक्त वह वसंत विहार के पार्क में होते थे तो निराशा में डूबा उनका वाक्य होता था-कुछ भी कहो, मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बन चुके हैं। उन्होंने अपनी यह हैसियत स्वीकार कर ली है। हमने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि हमारा मुल्क ऐसा बन जांएगा।’’ वह गांधी की हत्या के दिन दिल्ली में थे और बताते थे कि गांधी ने अपनी जान देकर इस मुल्क को सांप्रदायिक होने से बचा लिया था। वे मानते थे कि जवाहरलाल नेहरू ने भारत के सेकुलर राष्ट्र की नींव रखी। नैयर साहब जैसे लोगों की सकारात्मकता का स्रोत आजादी के आंदोलन का विचार था।

यहां एक वाकया सुनाना उचित होगा। पूर्व विता मंत्री अरूण जेटली उनके पारिवारिक मित्र थे। वह 2014 में अमृतसर से लोकसभा के उम्मीदवार थे। एक पारिवारिक समारोह में कुलदीप नैयर को उन्होंने अपने घर बुला लिया। कुछ पत्रकारों ने उनसे पूछ लिया कि जेटली के बारे में उनकी क्या राय है। उन्होंने उनकी तारीफ कर दी।

यह कुछ चैनलों पर चलने लगा और पीटीआई ने भी खबर जारी कर दी। मुझे पीटीआई से एक मित्र, जो नैयर साहब को भी करीब से जानते थे, ने निराश होकर फोन किया और पूछा कि नैयर साहब जेटली का समर्थन कर रहे हैं। दूसरे दिन अखबारों में भी खबर थी। मैं और एनडी पंचोली भागे-भागे उनके घर गए क्योंकि वह सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष थे। वैसे भी उनके पास भी लगातार फोन आ रहे थे। सभी हैरत में थे।

उनसे मिला तो वह भी अपराध-भाव से ग्रस्त थे। हमने तय किया कि एक बयान जारी कर बात साफ की जाए कि चुनावों में वह भाजपा को हराना चाहते हैं। जेटली की व्यक्तिगत तारीफ का मतलब चुनावों में उनका या भाजपा का समर्थन नहीं है। यह बयान तुरंत जारी किया गया। अपने व्यक्तिगत संबंधों को विचारों के लिए दांव पर लगाने वाले लोग आज कितने हैं?

प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर का आज सौवां जन्मदिन है। 14 अगस्त, 1924 को पाकिस्तान के स्यालकोट में वह पैदा हुए थे। 23 अगस्त, 2018 को दिल्ली में उनका निधन हुआ। कुलदीप नैयर हमारी स्मृतियों में जिंदा रहेंगे।

(अनिल सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें