कोलकाता में एक जगह है कुमारतुली। कुमार मतलब ‘कुम्हार’ और तुली यानी ‘लोकैलिटी’। मतलब कुम्हारों के रहने का ठिकाना। जहां सालभर सिर्फ मूर्तियां बनाई जाती हैं। यहीं ये लोग रहते, खाते-पीते और काम करते हैं।
आप जैसे ही कुमारतुली में घुसेंगे तो छोटी-छोटी गलियां नजर आएंगीं। इन गलियों में दोनों तरफ कुम्हारों की वर्कशॉप हैं। वर्कशॉप के अंदर उघाड़े बदन, लुंगी पहनकर मूर्तियां तैयार करते कुम्हार दिखते हैं।
भोला पाल यहां बीते 53 सालों से मूर्तियां बना रहे हैं। यह उनकी पांचवी पीढ़ी है। जब हम उनसे मिले, तब भी वो गणेश जी की एक छोटी मूर्ति हाथ में लिए उसमें रंग भर रहे थे। भोला सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक काम करते हैं। बीच में दो घंटे का लंच ब्रेक लेते हैं।
आखिर कुमारतुली में ऐसा क्या है, जो यहां की मूर्तियां इतनी फेमस हैं? भोला से हमने यह सवाल पूछा तो बोले- यहां की शिल्पकला कहीं और नहीं मिलेगी। यह हाथों की कारीगरी है। मशीन से नहीं, हाथों से मूर्तियां बनाते हैं। वे बोले- यहां ऐसे-ऐसे आर्टिस्ट हैं जो आपकी भी हुबहू मूर्ति बना दें।
भोला इस बार खुश हैं क्योंकि दो साल से कोरोना के चलते कामकाज बंद था। इस बार मार्केट खुला है और ऑर्डर भी जमकर मिल रहे हैं, लेकिन रॉ मटेरियल महंगा होने से मूर्तियों की कॉस्ट बढ़ गई है। जबकि ऑर्गेनाइजर चाहते हैं कि उन्हें पुरानी कीमत में ही मूर्तियां मिल जाएं। थोड़ी कश्मकश है, लेकिन बातचीत से भाव तय हो रहा है।
300 साल पहले बसा, 90 से ज्यादा देशों में जाती हैं मूर्तियां
300 साल पहले बसे कुमारतुली से 90 से ज्यादा देशों में मूर्तियां जाती हैं। इसमें मां दुर्गा की मूर्ति की सबसे ज्यादा डिमांड होती है। कुमारतुली मूर्ति समिति के ट्रेजरर सुजीत पाल कहते हैं- गणेश जी और दुर्गा जी की मूर्तियां कई दिनों पहले ही फॉरेन जा चुकी हैं।
ढाई से तीन फीट ऊंची अधिकतर मूर्तियां अमेरिका, फ्रांस, यूके और स्विट्जरलैंड गई हैं। फॉरेन कंट्रीज में जो इंडियन कम्युनिटी रहती है, वही मूर्तियां ऑर्डर करती है। अधिकतर मूर्तियां शिप से जाती हैं। कुछ फ्लाइट से भी भेजी जाती हैं। फॉरेन जानी वाली मूर्तियों की कीमत लाखों में होती है।
कुमारतुली से गणेश जी की करीब 5 हजार छोटी-बड़ी मूर्तियां बिकेंगीं। वहीं दुर्गा जी की करीब 4 हजार मूर्तियां यहां बेचने के लिए तैयार की जा रही हैं। गणेश जी की सबसे महंगी मूर्ति का ऑर्डर इस बार बंगाल के ही मेदिनीपुर से है। 14 फीट ऊंची भगवान गणेश की मूर्ति 1 लाख रुपए में बुक की गई है।
कुमारतुली में लगभग हर घर में आपको लोग मूर्ति बनाते हुए दिख जाएंगे। कई लोग तो पीढ़ी दर पीढ़ी ये ही काम कर रहे हैं।
कुमारतुली में कैसे तैयार होती हैं मूर्तियां…
- मूर्तियां पकी हुई मिट्टी से नहीं बनाई जातीं, बल्कि धूप में सूखी हुई मिट्टी से बनती हैं।
- सबसे पहले बांस और सूखे भूसे से इनका ढांचा खड़ा किया जाता है। इससे मूर्ति को एक शुरुआती शेप मिलता है। इसके लिए एक खास तरह का बांस सुंदरबन से लाया जाता है।
- ढांचा खड़ा होने के बाद उसके ऊपर नरम मिट्टी लगाई जाती है। मिट्टी की एक के बाद एक कई परतें चढ़ाई जाती हैं। कई बार मिट्टी को एक खास शेप में रखने के लिए कपड़े के साथ भी चिपकाया जाता है।
- मूर्ति में खास तौर से दो ही तरह की मिट्टी इस्तेमाल होती है। इसमें एक चिपचिपी काली मिट्टी और दूसरी गंगा मिट्टी होती है। यह सफेद रंग की सॉफ्ट मिट्टी होती है। इन दोनों तरह की मिट्टी के साथ हाथों से तैयार थोड़ी गोंद भी मिलाई जाती है। इसके बाद सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है।
- सूखने के बाद सफेद पेंट की पहली लेयर का लेप लगाते हैं। फिर सूखने के लिए छोड़ देते हैं। इसके बाद अलग-अलग रंग से रंगाई होती है।
- कुमारतुली की खास बात ये है कि अधिकतर आर्टिस्ट यहां नेचुरल कलर का ही इस्तेमाल करते हैं। कुछ आर्टिस्ट अपना ब्रश भी खुद ही तैयार करते हैं। हालांकि नए आर्टिस्ट अब रेडीमेड पेंट और पेंटब्रश ही ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं।
- मूर्तियों की रंगाई होने के बाद फिर इन्हें डेकोरेट करने का काम शुरू होता है। साड़ी, धोती और दूसरे कपड़े पहनाए जाते हैं। तब जाकर कहीं फाइनल मूर्ति तैयार होती है।
सालाना बिजनेस 5 करोड़ रुपए का
कुमारतुली में कुम्हारों के करीब 250 परिवार रहते हैं। वहीं करीब 400 आर्टिस्ट हैं, जो मूर्ति बनाते हैं। कुम्हारों के कई परिवार अब बंगाल के ही कृष्णानगर और नबाद्वीप में शिफ्ट हो चुके हैं। इसलिए इन दोनों शहरों में भी देश-विदेश से लोग मूर्तियों के ऑर्डर देने पहुंचते हैं।
कुमारतुली का सालाना बिजनेस 5 करोड़ रुपए का है। इसमें सिर्फ मूर्ति बनाने वाले कुम्हार की शामिल नहीं हैं, बल्कि मूर्ति को सजाने के लिए आभूषण बेचने वाले दुकानदार, मूर्ति को पहनाने के लिए धोती-साड़ी बेचने वाले दुकानदार भी शामिल हैं।
मूर्ति तैयार करने वाले मेन कारिगर 1500 रुपए प्रतिदिन चार्ज करते हैं, जबकि हेल्पर को 800 रुपए मजदूरी मिलती है। सुजीत पाल कहते हैं, देश में शायद गणेश जी की सबसे बड़ी और महंगी मूर्तियां यहीं तैयार हो रही हैं। कोरोना के बाद यह पहला सीजन है जिसमें एक लाख रुपए कीमत तक की गणेश मूर्ति का ऑर्डर मिला है। यह मूर्ति तैयार होकर क्लाइंट तक पहुंच भी चुकी है।